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और अब बस कहने का समय आ गया था…

शादी की पहली रात, एक लम्बे इंतज़ार के बाद पतिदेव ने कमरे में लड़खड़ाते हुए कदम रखा। नमिता के तो डर के मारे होश उड़ गए।

शादी की पहली रात, एक लम्बे इंतज़ार के बाद पतिदेव ने कमरे में लड़खड़ाते हुए कदम रखा। नमिता के तो डर के मारे होश उड़ गए।

नोट : विमेंस वेब की #अबबस मुहिम के चलते हमने आपसे अप्रकाशित कहानियां मांगी थीं, उसी श्रृंखला की चुनिंदा कहानियों में ये कहानी है समिधा नवीन की !

नमिता ने राहत की साँस ली जब लड़के वालों ने नमिता के माँ बाप से कहा कि आपकी नमिता हमें पसन्द है। नमिता को लगा कि शादी से पहले का जीवन भले ही यातनाओं से भरा हो पर शादी के बाद का जीवन तो अच्छा होगा। नमिता अपने अतीत में चली गई।

जब से नमिता ने होश सँभाला, लड़की होने का ताना उसको और लड़की पैदा करने का ताना उसकी माँ को दिया जाता। घर के काम, अपनी पढ़ाई के साथ वह छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती। नमिता ने ग्रेज्यूशन कर लिया था। बात बात पर पिताजी का माँ पर हाथ उठ जाना, बिना गालियों के बात न करना, यही सब था नमिता की अब तक की जिन्दगी का निचोड़।

खैर… विवाह हुआ और नई जिन्दगी के सुनहरे सपने लिए नमिता ने ससुराल में कदम रखा। ससुराल में शादी की खुशी का माहौल, रिश्तेदारों की गपशप।

शादी की पहली रात, एक लम्बे इन्तज़ार के बाद पतिदेव ने कमरे में लड़खड़ाते हुए कदम रखा। नमिता के तो डर के मारे होश उड़ गए। नमिता के लाख विरोध के बावजूद नमिता के शरीर व आत्मा को एक शराबी ने रात भर कुचला। सुबह जब अधमरी सी नमिता बाहर आई तो पति और सास ससुर के चेहरे विजयी मुस्कान से चमक रहे थे।

जैसे तैसे दिन गुजरा और नमिता अपने कमरे में रात के विषय में सोच दहशत से घबरा ही रही थी कि दरवाजा खुला और इस बार कमरे में प्रवेश हुआ लड़खड़ाते हुए ससुर का। नमिता के तो पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। पर अब नमिता घबराई नहीं। उसने ठान लिया कि #अबबस और नहीं।
शराबी ससुर को अपनी ओर आते देख नमिता उठी और ससुर को जोर से धक्का दिया और कमरे से बाहर आ गई।

नमिता के मन में भय, घबराहट का घमासान युद्ध चल रहा था। पर कहीं न कहीं उसके मन में एक आवाज़ उठ रही थी… ‘अब बस नमिता, अब और नहीं।’

उसने अपना सूटकेस उठाया और ऑटो करके अपने मायके पहुँच गई। सुबह-सुबह बेटी को दरवाजे पर खड़ी देखकर, वो भी अकेले, माँ-बाप के तो मानो होश उड़ गए। सारी बात बताकर जब नमिता ने ससुराल न जाने का अपना फैसला सुनाया कि तो उसके माँ-बाप भी नमिता के फैसले से सहमत थे।

नमिता ने फिर से ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। कई बार ससुराल वालों की तरफ से बुलावा आया लेकिन नमिता और उसके माँ-बाप ने साफ इन्कार कर दिया। नमिता ने एक समाजसेवी संस्था में सम्पर्क किया। वहाँ उसे अनाथ बच्चों को पढ़ाने की नौकरी मिल गई।

उस संस्था की हैड इंचार्ज मंजूषा जी नमिता के स्वभाव और बच्चों को पढ़ाने की लगन को देखकर नमिता को बहुत प्यार करती थी। एक दिन मंजूषा जी से बात करते करते ही नमिता को चक्कर आए और वह गिर पड़ी। डॉ ने जांच करने पर बताया कि नमिता माँ बनने वाली है। नमिता के दिमाग में डॉ के ये शब्द हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे। उसे लगा कि मुसीबतों का अभी अन्त नहीं हुआ है।

मन ही मन उसने निश्चय किया कि वह इस बच्चे को जन्म नहीं देगी। तभी उसे मंजूषा जी की प्यार भरी आवाज़ सुनाई दी, “क्या सोच रही हो बेटा? क्या इस दुविधा में हो कि इस बच्चे को जन्म दूँ या नहीं?” नमिता ने हाँ में सिर हिलाया। उसकी आंखों से आँसू बहे जा रहे थे।

नमिता को मंजूषा जी ने समझाया, “सोचो इतना करने के बाद तुम कमजोर नहीं हो, तुम अगर चाहो तो तुम इस बच्चे को जन्म दे सकती हो।”

मंजूषा जी के स्नेहमयी हाथों के स्पर्श ने मानो एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया। मंजूषा जी और नमिता में एक ऐसा रिश्ता कायम हो गया जो शायद माँ-बेटी के रिश्ते से भी कहीं ऊपर था।
“बेटा, तुम चाहो तो मेरे साथ संस्था के कमरे में भी रह सकती हो”, सुनकर नमिता की आँखों से लुढ़के आँसू ने स्वीकृति दे दी।

अब मंजूषा जी नमिता को हर काम में अपने साथ साथ रखती। नमिता सीख रही थी कि मंजुषा जी कैसे किसी महिला का मनोबल बढ़ाती हैं? कौन कौन सी बातें घरेलू हिंसा के अर्न्तगत आती है? कोई महिला अगर घरेलू हिंसा का शिकार है तो उसे क्या कदम उठाने चाहिए? महिलाओं के क्या-क्या अधिकार हैं? उन्हें कैसे जागरूक किया जाए?

समय बीतता गया, नमिता ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। मंजूषा जी ने नमिता के माथे को सहलाते हुए पूछा, “कैसी हो बेटा?”

“माँ, मैं आपकी तरह एक मजबूत माँ बनूँगी।”

अब नमिता पहले की तरह डरी, सहमी सी लड़की नहीं थी। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक देखकर मंजुषा जी मन्द-मन्द मुस्कुरा रही थीं।

मूल चित्र : mantosh from Getty Images Signature via CanvaPro 

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Samidha Naveen Varma

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