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एक बुरे बाप से कहीं बेहतर है एक अकेली माँ…

अपने घर में नेहा ने ना कभी ऐसा देखा, ना सुना। पापा और भाई दोनों कितने सलीके से पेश आते माँ और भाभी के साथ। लेकिन यहां तो...

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अपने घर में नेहा ने ना कभी ऐसा देखा, ना सुना। पापा और भाई दोनों कितने सलीके से पेश आते माँ और भाभी के साथ। लेकिन यहां तो…

“क्या है ये!  ढंग का खाना भी बनाने नहीं आता? ऐसे बनते है परांठे? आलू के बोले थे ना? फिर सादा परांठा क्यों बनाया?” एक परांठे के ऊपर नितिन ने नेहा की अच्छे से क्लास ले ली।

आज भी नेहा की सुबह वैसी ही थी, जैसी पिछले एक साल से थी। वही रोज़ रोज़ की बेइज़्ज़ती। थक चुकी थी तन और मन दोनों से। अपनी भड़ास नेहा पे निकाल नितिन निकल गया ऑफिस।

‘अब और बर्दाश्त नहीं होता। क्या कसूर है मेरा जो किस्मत मे एक दिन भी सुख का नहीं लिखा?’ यही सोचती रहती।

नितिन के स्वाभाव को एक साल से समझने की कोशिश में लगी थी नेहा। जब अपनी इच्छा होती मूड अच्छा होता तो बहुत अच्छे तरीके से पेश आता और जब मूड ख़राब हो तो वही गन्दी भाषा। अपने घर में नेहा ने ना कभी ऐसा देखा, ना सुना। पापा और भाई दोनों कितने सलीके से पेश आते माँ और भाभी के साथ।

शादी के पहले नेहा बहुत ही हसमुँख प्यारी सी लड़की थी, पढ़ाई मे होशियार घर के कामों मे होशियार। बहुत देख-सुन कर पापा ने शादी की थी। अच्छा घर परिवार और अच्छी नौकरी करता लड़का और क्या चाहिए होता है एक बेटी के पिता को।

शादी हो गई और पहली ही रात नितिन के स्वाभाव से नेहा का परिचय हो गया। जब सास से कहा तो उनका ज़वाब था, “बहु आदमी तो थोड़े गुस्से वाले होते ही हैं। नितिन दिल का बुरा नहीं है, सिर्फ थोड़ा गुस्सा जल्दी आता है।” अपनी सास की बात सुन चुप रह गई नेहा।

सास ने नितिन के साथ भेज दिया जहाँ वो नौकरी करता था। दो मीठे बोल को भी नेहा के कान तरस जाते। हर वक़्त तनाव का माहौल रहता। घर घर नहीं जेल लगता। ना जाने कितने सपने संजोये थे नेहा ने अपने भावी पति और भावी जीवन के लेकिन वो सब एक भ्रम निकला था।

आज सुबह भी नेहा को बुरा भला बोल नितिन ऑफिस चला गया बिना ये सोचे की नेहा पे क्या बीतेगी। कुछ दिनों से तबीयत भी कुछ ठीक नहीं रह रही थी हर वक़्त थकावट और चक्कर आते।

कुछ सोच कर अपनी दोस्त को फ़ोन किया जो एक डॉक्टर थी। सारी बातें सुन उसने कुछ सवाल किये और टेस्ट करवाने को कहा। टेस्ट की रिपोर्ट से पता चला कि नेहा माँ बनने वाली है।

माँ! ये शब्द हथोड़े के तरह नेहा के दिमाग़ पे चला ये तो सोचा ही नहीं था।  पूरा दिन कुर्सी पे बैठ सोचते निकल गया। बिलकुल भी तैयार नहीं थी नेहा ऐसे माहौल में इस बच्चे के जन्म के लिये। अभी तो मैं खुद नितिन के साथ ताल मेल नहीं बिठा पा रही और ये जिम्मेदारी!

शाम को नितिन आये तो नेहा ने कहा, “मैं माँ बनने वाली हूँ लेकिन मैं बच्चे को इस हाल में जन्म नहीं दे सकती…”

नितिन चौंक गया, “क्यों नहीं जन्म दे सकती इतनी बड़ी ख़ुशी आयी है और तुम कह रही हो जन्म नहीं दोगी दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया तुम्हारा?” नितिन गुस्से से चीखा।

आज नितिन के चीखने का कोई असर नहीं हुआ। नेहा शांत भाव से बैठी रही जैसे कुछ सुना ही ना हो।

“अब बोलती क्यों नहीं? पुतले की तरह चुप क्यों हो?” गुस्से से पागल सा हो गया था नितिन।

“यही तो प्रॉब्लम है तुम्हारी नितिन। ना सुनते हो ना समझते हो, सिर्फ बोलते हो। आज भी मेरी पूरी बात सुने बिना ही चीखना चिल्लाना  शुरू कर दिया”, बिलकुल शांत स्वर में नेहा ने कहा। नितिन एकटक नेहा को देखे जा रहा था।

“मैंने कहा मैं यहाँ इस बच्चे को जन्म नहीं दे सकती। बच्चा गिरा दूँ ऐसा नहीं कहा लेकिन इस माहौल में मैं इसे जन्म हरगिज़ नहीं दूंगी। कल भाई आ रहे है, मैं उनके साथ जा रही हूँ। तलाक के कागज आपको मिल जायेंगे।” एक स्वर में नेहा ने नितिन को कह दिया।

“लेकिन क्यों ऐसा क्या हो गया अचानक? सब कुछ तो दिया है तुम्हें? घर, पैसा, कपड़े,  गहने और इससे ज्यादा एक औरत क्या चाहती है?” नितिन ने कहा।

“इज़्ज़त नितिन,  इज़्ज़त… ”

“सबसे पहले इज़्ज़त। जो इंसान अपनी पत्नी की इज़्ज़त नहीं करता वह अपने बच्चे का क्या भविष्य देगा? अपनी माँ को रोज़ घुट-घुट के जीते देख अपमानित होता देख क्या सीखेगा? मुझे इसे दूसरा नितिन नहीं बनाना।”

नेहा की बात सुन नितिन ने व्यंग से हॅंस कर कहा, “अकेली पलोगी क्या?”

“बिलकुल नितिन! एक बुरे बाप से कहीं बेहतर एक अकेली माँ होती है।”

नितिन के पास कोई ज़वाब नहीं था। ऐसे ज़वाब की आशा ही नहीं थी नितिन को नेहा से। आज नेहा ने साबित कर दिया था जब बात अपने बच्चे पे आती है तो कोई माँ चुप नहीं रहती।

सुबह होते ही भाई के साथ नेहा निकल गई अपने होने वाले बच्चे का सुखद भविष्य बनाने को।

मूल चित्र : pixelfusion3d from Getty Images Signature via Canva Pro

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