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हमारे यहां तो सिर्फ लड़के पैदा होते हैं…

वह घर में हो रही सब नकारात्मक चीजों के लिए खुद को जिम्मेदार समझने लगी। बेमन से खाना बनाती, खिलाती, और अपनी बच्ची को संभालती। 

वह घर में हो रही सब नकारात्मक चीजों के लिए खुद को जिम्मेदार समझने लगी। बेमन से खाना बनाती, खिलाती, और अपनी बच्ची को संभालती। 

“अब तो इस घर की रीति ही बदल गयी, पहला बेटा होता चला आया  है सात पुश्तों से,  मगर बहू ने सब अभिमान चूर कर दिया खानदान का।” शांति देवी आज सुबह से बड़बड़ कर रहीं थीं। नाम शांति था पर आज उल्टा वो अशांति का केंद्र बन गयीं थीं।

बहू शैला की पहली बेटी हुई थी। जबसे शांति जी ने सुना था, अंदर ही अंदर खौल रहीं थीं। शैला ने सुना तो दिल से आहत हुई, क्योंकि जानती थी कि मां जी ने जबसे सुना था कि मेरे पांव भारी हैं, तभी से आने वाले पोते की तैयारी में पागल सी हो गई थीं।

अब बेटी होने की खबर से उन्हे शाॅक तो लगना ही था, पर जाने अनजाने उनका व्यवहार शैला को अवसाद की ओर धकेल रहा था, क्योंकि वह पहले से ही मन ही मन आशंकित रहती थी कि मां जी की ख्वाहिश पूरी ना हुई तो क्या होगा?

हालांकि पति विपुल शैला को ढाढ़स बंधाते, “कोई नहीं मां के लिए पोता अगली बार आ जाएगा। पर इससे शैला को तनिक धीरज नहीं पड़ता था।”

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, शैला की दशा खराब होने लगी। कई-कई दिन बीत जाते वह बालों में कंघी तक न करती। न साज श्रृंगार न गहने जेवर। कोई भी शैला को देखकर अंदाजा नहीं लगा सकता था कि ये एक साल पहले की विवाहिता है।

शैला घर में हो रही सब नकारात्मक चीजों के लिए खुद को जिम्मेदार समझने लगी। बेमन से खाना बनाती, खिलाती, और अपनी बच्ची को संभालती। प्यारी सी बच्ची की नन्ही मुस्कान भी शैला के दिल को सुकुन नहीं दे पाती थी।

धीरे-धीरे शैला को घर के अलावा आस पड़ोस के लोग भी जैसे उलाहना देते ही नज़र आते। शैला इतने अवसाद से घिरने लगी कि मायके जाने या मायके से कोई उससे मिलने आए तो ये बहुत परेशान हो जाती थी।

ऐसे में उसकी सहेली अनु ने जब सुना की उसकी प्रिय सखी को बिटिया हुई है तो उससे मिलने चली आई। शैला को जब अनु ने देखा तो अचंभित रह गई, उसके चेहरे पर अपने आने की भी खुशी ना देखकर अनु समझ गयी कि शैला अवसाद से पूरी तरह घिर चुकी है। अनु ने कुछ दिन शैला के पास ही रूकने का फैसला किया और आसपास घट रही सब चीजों का जायजा लिया।

अनु ने बड़े प्यार से पहले शैला को अपने भरोसे में लिया फिर बेटी पैदा करने के अपराध से ग्रसित शैला को यह विश्वास दिला दिया कि बेटा बेटी प्रभु की इच्छा से है, और सिर्फ तुम इसके लिए जिम्मेदार नहीं। फिर बहुत से नामचीन महिलाएं जो सिर्फ बेटियों की माताएं है, का उदाहरण देकर अनु ने शैला के मन में ये विश्वास जगाया कि बेटी का घर में आना उसका और उसके घर का सौभाग्य है।

कुछ दिनों में ही अनु ने शैला को न केवल अवसाद से आजादी दिलाई बल्कि जीवन की नयी राह भी दिखाई कि अब उसे अपनी बेटी को उत्तम संस्कार देना है जिसके लिए सबसे पहले उसे अपने जीवन को सर्वोत्तम बनाना होगा।

दोस्तों कैसी लगी आपको ये कहानी , क्या आपको भी लगता है कि एक अच्छा दोस्त किसी को अवसाद से बाहर निकाल सकता है?

मूल चित्र : cheekudigital from Getty Images via Canva Pro 

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