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बल्लभगढ़ हत्याकांड : क्यों पुरुष आज भी महिला की ‘ना’ को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं?

बात चाहे जो भी हो, लेकिन इस पूरे मामले में बात इतनी ज़रूर है कि लड़की ने लड़के को शादी के लिए ना कहा, और ये लड़के से बर्दाश्त नहीं हुआ .

बात चाहे जो भी हो, लेकिन इस पूरे मामले में बात इतनी ज़रूर है कि लड़की ने लड़के को शादी के लिए ना कहा, और ये लड़के से बर्दाश्त नहीं हुआ .

चेतावनी : इस पोस्ट में मर्डर/किडनैपिंग का विवरण है जो कुछ लोगों को उद्धेलित कर सकता है।  

और एक बार फिर एक लड़की की जान सिर्फ इसलिए ले ली गयी क्योंकि उसने ‘ना’ कहा।

फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में एक 21 वर्षीय कॉलेज छात्रा की उसके स्टाकर ने गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना सोमवार को दोपहर 3 बजे की है जब बीकॉम अंतिम वर्ष की छात्रा निकिता तोमर अपना पेपर लिखकर लौट रही थी।

यह घटना अग्रवाल कॉलेज के बाहर हुई। इस घटना का वीडियो तब से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। कोई इसे लव जिहाद का एंगल दे रहा है तो कोई इसमें अपनी अलग पॉलिटिक्स रच रहे हैं। लेकिन बात तो सिर्फ इतनी ही थी ना कि एक लड़की ने ना कहा था? अब उसमे जाति और राजनीती की नीतियाँ क्यों? एक बार खुद भी पूरा केस पढ़ें। शायद आपके मन में भी यही प्रश्न उठेंगे?

बल्लभगढ़ में निकिता तोमर का कार सवार दो युवकों ने अपहरण का प्रयास किया। इसमें नाकाम रहने पर एक युवक ने छात्रा को गोली मार दी। और वहां से फरार हो गया। छात्रा को हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। घटना को अंजाम देने वाले मुख्य आरोपी तौसीफ व उसका साथी रेहान है। यह पूरी घटना CCTV कैमरा में कैद हुई और जब से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।

निकिता के पिता का कहना है कि आरोपी उनकी बेटी को कई वर्षों से परेशान कर रहा है। दोनों एक ही स्कूल से पढ़ें हैं और तभी से आरोपी निकिता को शादी करने के लिए परेशान करता आ रहा है। वहीं आरोपी की माँ भी पिछले दो साल से निकिता पर धर्म परिवर्तन करने का दबाव डाल रही थी। इसके ख़िलाफ़ सितम्बर में पुलिस में FIR बी दर्ज करवाई थी लेकिन समाज के दबाव से वापस ले ली थी।

निकिता की माँ ने NDTV से कहा कि “मुझे मेरी बेटी के लिए इंसाफ़ चाहिए। उन्हें उसी तरह से गोली मार देनी चाहिए जिस तरह से उन्होंने मेरी बेटी को गोली मारी।”

तौसीफ राजनीतिक परिवार से ताल्लुख़ रखता है। इस केस में तीनो को आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

इस हत्याकांड का मामला अब जोर पकड़ता जा रहा है। गुस्सा परिजनों और प्रदर्शनकारियों ने बल्लभगढ़ में नैशनल हाइवे को जाम किया। परिजनों का आरोप है कि आरोपी जबरन लड़की का धर्म परिवर्तन कराना चाहता था और नाकाम रहने पर उसने हत्या कर दी। वही सोशल मीडिया पर भी कई तरह के हैशटैग्स ट्रेंड कर रहे हैं।

बात चाहे जो भी हो, लेकिन इस पूरे मामले में बात इतनी ज़रूर है कि लड़की ने लड़के को शादी के लिए ना कहा। और ये लड़के से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने अपहरण करने की कोशिश करी और जब लड़की ने उसका विरोध किया तो उसकी मौके पर ही गोली मारकर हत्या कर दी गयी।

तो आखिर क्यों आज भी पुरुष ना स्वीकार नहीं कर सकते है?

क्या इसमें पितृसत्ता का योगदान है? या लड़कों की परवरिश ही करी ऐसी करी जा रही है। और क्यों इसका खामियाज़ा हर बार एक लड़की ही भुगते? शायद ऐसा इसलिए क्योंकि आज तक पुरुष अपनी जरूरतों और इच्छाओं को ही प्राथमिकता देते आये हैं। कभी किसी लड़की से उसकी इच्छा के बारे में तो पूछा ही ही नहीं जाता है।

या फिर यूं कहे कि लड़के पूछते भी हैं या सिर्फ अपनी मांग रखते हैं। हाँ, वे वास्तव में पूछ नहीं रहे हैं, वे मांग कर रहे हैं, और इसलिए ना उनकी मांग पूरी न होने के बराबर है। और इसी तरह की मानसिकता के साथ ये दरिंदे पलते हैं जिन्हें और हवा हमारी फिल्में दे रही हैं

आज भी कई फ़िल्मों में ऐसे डायलॉग, लिरिक्स होते हैं जिनमे स्टॉकिंग, बीच सड़क पर छेड़ना, अभद्र कमेंट करना, और ना को हाँ में बदलवाना आदि को बढ़ावा देते हैं। और भारत जैसे देश में जहाँ फ़िल्मों को सबसे बड़ी इंस्पिरेशन की तरह लिया जाता है, वहां इस तरह से केवल ज़ुल्म को बढ़ावा ही मिलता है और पुरुषों को एक आजादी देते हैं। तो ऐसे में सभी का कर्तव्य बनता है कि सही तरह का मैसेज दिया जाए।

आज जब देश में महिलाओं के साथ हो रहे अपराध रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं, तो सरकारों और आम जनता को देखना होगा कि आखिर गलती कहा हो रही हैं। क्यों महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं? और आखिर क्या किया जाएं जिससे हमारे घर, सड़क, शहर, देश भी औरतों के लिए सुरक्षित हो सके।

और आप सभी भी ये जान ले, समझ ले कि बदलाव की शुरुवात घर से ही करनी होगी। अब इसका और कोई रास्ता नहीं है। तो अगली बार महिलाओं को पुरुषों की प्रॉपर्टी कहने से पहले सोचें। क्योंकि यही सब छोटे छोटे इंसिडेंट आगे चलकर एक बड़े अपराध का रूप लेते हैं।

मूल चित्र : leschnhan from Getty Images via CanvaPro

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Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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