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घबराई सी पहुंची कहने जो अपनी बात, सभी के आंख के इशारे कहने लगे मानो चुप रह, सह, कह नहीं सकते हम ये किसी से...
घबराई सी पहुंची कहने जो अपनी बात, सभी के आंख के इशारे कहने लगे मानो चुप रह, सह, कह नहीं सकते हम ये किसी से…
तू ही दुर्गा, तू ही भवानी, मरियम, बीबी मजीदा, बेबे नानकी, राधा, सीता, गंगा और माता साहिब कौर…. सुन सबकी अमिट कहानी सोचा मैं भी देखूं जन्म लेकर एक औरत का हर्ष उल्लास गर्व फैला दू मैं भी चारों ओर!
जन्म लिया पहली किलकारी जब गूंजी मेरे मां-बाप को अफसोस भरी सांस से ये सुनने को मिला, “लड़की हुई है…” घबराई हुई मेरी मां ने उठा लिया मुझे गोद में छुपा लिया अपने आंचल में, तेज सांसे, धड़कता हुआ दिल महसूस किया मैंने पहली बार, अच्छा ऐसा होता है बेबसी का एहसास!
चल पड़ी मैं नन्हे कदमों से जिंदगी की ओर खुश थी मस्त थी बेबाक थी झरने से अविरल बहती मैं चंचल चिड़िया सी चहकती, गिलहरी सी फुदकती अपने आंगन में, एक परिचित के अनजान से स्पर्श ने खत्म कर दिया सब कुछ मानो एक ही क्षण भर में। घबराई सी पहुंची कहने जो अपनी बात सभी के आंख के इशारे कहने लगे मानो चुप रह, सह, कह नहीं सकते हम ये किसी से, छुपा ले, सीख ले दबाने अपने जज्बात।
टूट गया मेरे अंदर मानो कुछ… अच्छा तो ये है वो बेबसी का एहसास, जिसने तोड़ दिया मेरा वजूद, मेरा आत्मविश्वास… उस दिन से मन ही मन कहना, खुद को समझाना, सीख लिया…
हाँ ये मुझे छू सकते हैं क्योंकि बेबस हूँ मैंं!
कब बचपन गया कब आने लगी जवानी मैंने जाना तब जब लोगों की ललचाए नजर मैंने अपने शरीर पर पड़ती हुई पहचानी। स्कूल का साथ में पढ़ने वाला वह लड़का या बस में सफर करता हुआ वो अधेड़ व्यक्ति जो छू लेता मेरी गर्दन, कंधा या कमर बार-बार… भीतर ही भीतर टुकड़े चुभते हैं पर फिर भी मैंने खुद को समझाया
स्कूल-कॉलेज की गलियों से निकलकर कब पिया की गली पहुंच गई पता ही ना चला, प्यार मोहब्बत, घर के कामकाज, नया था मेरा पूरा संसार। खुश थी जिंदगी ऐसे भी दिन दिख लायेगी सोचा ना था। चल पड़ी मैं फिर से तभी दूर का एक देवर, रिश्ते में लगता कोई ससुर, एक पड़ोसी, सोशल मीडिया पर करते फब्तियां, होली के बहाने मेरी आत्मा को तोड़ती मेरे शरीर पर रगड़ थी वो गंदी सोच वाली हथेलियां… उनकी नजरें और हरकतें बोली फर्क नहीं पड़ता आज तेरी मांग में सिंदूर है…
हो कभी ऐसी परिस्थिति कर लूँ अगर अपने पति से तलाक लेने का फैसला? दोस्त, परिवार तो शायद साथ देगा भी नहीं और दुनिया को लगेगा अब आसान हो गया मेरा दामन करना मैला… आवाज़ उठाने की हिम्मत करूंगी जो मैं, तो कहता है मुझे सारा जमाना, तू कल भी हमारे लिए मसलने की वस्तु थी और आज भी सिर्फ एक शारीरिक भोग है तू, अगर यह सोचेगी, लोग मान लेंगे जो तू कहेगी…
समाज देगा तुझे कोई प्रतिक्रिया? अरे तेरे तो खुद जात वाली कहेंगी ये औरत तो बड़ी निर्लज्ज, गिरी हुई, बहुत ही चरित्रहीन है, कुल्टा, ना जाने दिन रात क्या क्या है करती, देखो मर्दों को रिझाने के लिए करती कैसी-कैसी अठखेलियां!
सोच में हूँ किनसे मांगती हूँ मैं सहारा? जब जिंदगी भर मैं रही अबला, लाचार तो मेरी जैसी जिंदगी जीने वाली कहां से लाएंगे मुझे बचाने का हौसला? शायद वो भी जी रही हैं जिंदगी अपनी खुद को ये कहते-कहते…
क्या अजब सा है यह सिलसिला जो तोड़े से भी टूटता। नहीं समान अधिकार तो छोड़ो मुझे तुम्हारे समाज में कोई इंसान तक समझता नहीं तो लो टूट कर, बिखर कर कहती हूं आज फिर कहती हूं मैं…
मूल चित्र : rahhal from Getty Images via CanvaPro
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