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वह मेरे सफ़ेद बालों को देखकर आंटी बोलते हैं और शायद उन्हें लगता है कि मुझे उनके लॉरियल में रंगे बालों को देखते हुए उनको बेटा बुलाना चाहिए...
वह मेरे सफ़ेद बालों को देखकर आंटी बोलते हैं और शायद उन्हें लगता है कि मुझे उनके लॉरियल में रंगे बालों को देखते हुए उनको बेटा बुलाना चाहिए…
‘आंटी आप तो अभी भी स्लिम-ट्रिम हैं, क्या कहने! मेरा तो वेट ही नहीं कम होता’, एक पैंतीस वर्षीय सज्जन अपने बारह साल के बच्चे के साथ पार्क में टहलते हुए बोले। मुझे उन सज्जन के मुझे आंटी बोलने से एतराज़ है जो मुझसे मात्र दस साल छोटे हैं। वह मुझे मेरे सफ़ेद बालों को देखकर आंटी बोलते हैं और शायद उन्हें लगता है कि मुझे उनके लॉरियल में रंगे बालों को देखते हुए उनको बेटा बुलाना चाहिए पर मैं उन्हें नाम से बुलाती हूँ।
खै़र आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और शायद आप में से भी कई लोगों के साथ हुई होंगी।
मैं उनसे ज़्यादा एनर्जेटिक, व्यस्त और ख़ुशमिज़ाज हूँ। पार्क के बच्चों के साथ आधा घंटा बैडमिंटन खेलती हूँ जबकि पार्क के एक चक्कर मारने में उनकी साँस फूलने लगती है। मैं मैनोपॉज के दौर में प्रवेश करने को हूँ तो ज़ाहिर है बहुत से हार्मोनल बदलाव के साथ कुछ शारीरिक चुनौतियाँ भी मेरे सामने हैं, पर मैं ख़ुश हूँ।
एजिस्म यानि वृद्धों के प्रति अनुचित व्यवहार। सामान्यतः इसका अर्थ उम्र के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव से है। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले ‘रॉबर्ट नीम बटलर’ ने बुजुर्गों के साथ उम्र और लिंग के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव के लिए किया था। वृद्ध व्यक्ति, वृद्धावस्था और वृद्ध होने की प्रक्रिया; इन तीनों को संयुक्त रूप से मिलाकर बढ़ती उम्र के लोगों के प्रति जो पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार है उसके लिए एजिज़्म शब्द (Agism) प्रयोग किया गया पर ज्यादातर इसके शिकार महिलाएं होती हैं।
‘वृद्धावस्था अभिशाप है’ यह सामाजिक रूप से तभी तय हो गया जब एंटी एजिंग उत्पाद आने लगे। लोगों में संदेश जाने लगा कि बढ़ती उम्र समाज में उन्नति के मार्ग रोकती है। खूबसूरती बढ़ाने और झुर्रियों को रोकने के लिए एक से एक उत्पाद का प्रचार प्रसिद्ध फिल्मी हस्तियों द्वारा किया जाने लगा।
प्राइवेट सेक्टर और बॉलीवुड में महिलाओं की उम्र के आधार पर भेदभाव ज्यादा देखा जाता है। इसमें काम देने वालों का निजी स्वार्थ एवं व्यवसायिक दृष्टिकोण भी शामिल होता है। नैतिक मूल्यों के हनन के चलते भी यह स्थिति देखी जाती है।
एक रोल की खोज में लगी कम उम्र की युवती को भी सीरियल में मां का रोल दे दिया जाता है। कम पैसे में उससे कठिन रोल कराया जाता है। साथ ही उसको जताया जाता है कि वह एक नगण्य रोल कर रही है जो उसकी मजबूरी का फायदा उठाने की तरह है। कभी-कभी यह भी महसूस कराया जाता है कि उसका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म होने को है।
कम उम्र के कलाकार द्वारा बड़ी उम्र के किरदारों को निभाना आज भी प्रशंसा की दृष्टि से नहीं देखा जाता जबकि यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। और यह हमारी समाज की मानसिकता को ही दिखाता है।
समाज में भी लोगों को कहते हुए देखा जा सकता है कि अपना ध्यान रखा करो अभी से बूढ़ी लगने लगी हो यानी स्त्री की बढ़ती उम्र उसके लिए एक खराब स्थिति है जबकि पुरुषों के साथ ऐसा व्यवहार बहुत ही कम किया जाता है।
समाज में स्त्रियों की बढ़ती उम्र के प्रति मानसिकता स्त्रियों में स्वयं भी एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाती है। उनके द्वारा बेतरतीब एंटी एजिंग उत्पादों का प्रयोग इसका प्रमाण है।
बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में एज़जिस्म का मुख्य कारण उनका दायरा संकुचित हो जाना भी है। अक्सर बच्चे बड़े हो जाते हैं और हाऊसवाइफ रही महिलाओं की भूमिका घर की रखवाली तक सीमित हो जाती है। दूसरी तरफ घर के बाहर, कामकाजी (वर्किंग विमेन) महिला रिटायर हो जाती हैं या प्राइवेट सेक्टर में ज्यादातर उन्हें बढ़ती उम्र के साथ अशक्त समझा जाने लगता है और ये दोनों ही तरह की औरतें अवसाद का शिकार हो जाती हैं।
प्रजनन विशेषता के वजह से महिलाओं पर उम्र का प्रभाव शीघ्र पड़ता है। माना जाता है कि स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा जल्दी वृद्ध होती हैं। मेनोपॉज की शुरुआत भी शरीर में हार्मोनल बदलाव लाती है। इसमें महिलाओं को बहुत सी शारीरिक चुनौतियों से जूझना पड़ता है जो उनके शरीर और स्वभाव दोनों में तात्कालिक बदलाव लाता है।
डॉक्टर अवसाद और शरीर में हार्मोन बदलाव से उत्पन्न तनाव का हल कोई दवा नहीं बल्कि सामाजिक होना बताते हैं। ‘अब करना ही क्या है’ के दृष्टिकोण से जीने वाली महिलाएं बढ़ती उम्र के दुष्प्रभावों का शिकार ज्यादा होती हैं। बढ़ती उम्र में हमें चाहिए कि अपनी व्यवहार शैली ऐसी रखें कि हम घर या बाहर एंटीक पीस की तरह न सजाए जाएँ बल्कि हमें समाज में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाए।
अगर आपएजिज़्म का शिकार नहीं होना चाहती तो नए कौशल सीखे, नए दोस्त बनाइए, उनके साथ बाहरी जीवन में घुलिए-मिलिए, पुराने दोस्तों को फिर से ढूंढिए, उन्हें नवजीवन दीजिए।
सुरुचिपूर्ण वेशभूषा मे रहिए, समाज के विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लीजिए, उत्सव मनाइए ,अपनी पसंद ना पसंद को महत्व दीजिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो उम्र आपको कभी हरा नहीं सकती और दूसरा व्यक्ति आपको बढ़ती उम्र की वजह से बेचारे की भावना से नहीं बल्कि आपसे प्रेरणा लेते हुए आपकी उम्र में आप जैसा बनने की सोचेगा। आप उस पर बोझ नहीं बल्कि उसके जीवन को स्वस्थ दिशा देने का कारण होंगी। सबसे महत्वपूर्ण शुरू से ही घर के कामों को केवल अपनी ज़िम्मेदारी न माने, सबका सहयोग लें।
कोई जरूरी नहीं कि हम नौकरी अथवा व्यवसाय ही करें, हम अपने आसपास के समाज में योगदान दे सकते हैं। अपने पसंद का कोई कार्य, अपने शौक को आगे बढ़ा सकते हैं। प्रफुल्लित मन ही प्रफुल्लित तन देता है। आगे बढने और खुश रहने का एक ही मंत्र है।
बढ़ती उम्र उम्र कभी भी बाधा नहीं बल्कि जीवन को और आसानी से तय करने का सफर है। व्यस्त रहें, मस्त रहें।
मूल चित्र : Abhishek Kumar Sah from Getty Images, Canva Pro
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