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केमिकल कैस्ट्रेशन क्या है और क्या इसका डर बदल पायेगा एक रेपिस्ट के इरादे को?

केमिकल कैस्ट्रेशन क्या है और क्या नहीं है? और क्या इसका डर एक बलात्कारी को आगे बढ़ने से रोक पायेगा? क्या इतना काफी है? आइये डालें एक नज़र...

केमिकल कैस्ट्रेशन क्या है और क्या नहीं है? और क्या इसका डर एक बलात्कारी को आगे बढ़ने से रोक पायेगा? क्या इतना काफी है? आइये डालें एक नज़र…

हाथरस में हुए बर्बर दरिंदगी पर लोगों का गुस्सा सभी के आंखों के सामने है और लोगों का गुस्सा जायज भी है क्योंकि रेप के बढ़ते आंकड़ों और सरकार की चुप्पी ने लोगों के दिलों में आक्रोश को बढ़ा दिया है।

इसी बीच युट्युब पर एक वीडियो सामने आया, जिसमें रेपिस्ट को केमिकल कैस्ट्रेशन देने की बात कही जा रही है। यहाँ रेप के दोषियों को केमिकल कैस्ट्रेशन देने का मुद्दा उठाया जा रहा है। बीबीसी हिंदी द्वारा जारी वीडियो में सबाहत ज़कारिया अपनी बातों को रखती हुई नज़र आ रही हैं। सबाहत एक पत्रकार और ब्लॉगर हैं। वीडियो में वह बताती हैं कि केमिकल कैस्ट्रेशन में पुरुषों के सेक्सुअल चाहत को खत्म कर दिया जाता है। भले ही इससे सेक्स ड्राइव में कमी आए या सेक्स की चाहत खत्म हो जाए मगर पुरुषों की सोच नहीं बदली जा सकेगी।

केमिकल कैस्ट्रेशन क्या है?

आजकल रेप एक कल्चर बन गया है, जिसमें लड़कियों को केवल हवस की नज़रों से देखा जाता है। केमिकल कैस्ट्रेशन का मतलब केमिकल के ज़रिये पुरुषों के सेक्सुअल चाहत को खत्म कर दिया जाता है। इससे हॉइपोथेलेमस में स्थित लीबीडो को निष्क्रिय कर दिया जाता है। केमिकल कैस्ट्रेशन का अर्थ यह बिल्कुल नहीं होता है कि पुरुषों के प्राइवेट पार्ट्स को काट कर हटा दिया जाए।

भारत में भी उठी थी केमिकल कैस्ट्रेशन की मांग

भारत में भी साल 2012 में हुए निर्भया कांड के दौरान केमिकल कैस्ट्रेशन की मांग बढ़ गई थी, जिसमें बलात्कार के दुलर्भ मामलों में दोषियों को रासायनिक प्रक्रिया से नपुंसक बनाने का प्रावधान शामिल करने की बात को उठाया गया था। इसके अलावा ऐसे कई देश हैं जहां केमिकल कैस्ट्रेशन किया जा रहा है। जैसे – अमेरिका में 1950 से ही केमिकल कैस्ट्रेशन का इस्तेमाल हो रहा है। इज़राइल, अर्जेंटीना के साथ ही यूरोप के कई देशों में भी यह लागू है।

इसका पहली बार इस्तेमाल 1944 में हुआ तब डाइथाइलस्टिलबेस्ट्रोल का इस्तेमाल पुरुष के टेस्टोस्टेरॉन लेवल को कम करने के लिए किया गया था।

क्या है पुरुषों के सेक्सुअल डिज़ाइर का महिलाओं पर असर?

हालांकि असल मुद्दे की बात यह है कि पुरुषों को इस प्रक्रिया से गुज़ारने के बाद क्या सच में उनके अंदर की हैवानियत समाप्त हो जाएगी क्योंकि पुरुषों की हैवानियत को केवल सेक्सुअल डिज़ाइर से नहीं जोड़ा सकता है। पुरुषों की आकांक्षाओं और उनके अंदर की सोच केवल केमिकल के प्रयोग से खत्म नहीं हो सकती। जहां महिलाओं के अंगों पर गालियों की भरमार लगती हो, वहां केमिकल प्रक्रिया से भी फर्क पड़ता नज़र नहीं आ रहा।

मानसिकता बदलने की ज़रुरत है

भारत की न्याय व्यवस्था की हालत इतनी ढीली है कि दोषी के सजा काटने और केमिकल प्रक्रिया से गुज़ारने के बाद जब दोषी वापस अपने घरों में आएंगे और सरल जीवन जीने की ओर बढ़ेंगे क्या उस वक्त उन महिलाओं को परेशानी नहीं होगी, जिससे उनका विवाह किया जाएगा। हालांकि यह एक अलग पहलू है, जिस पर चर्चा का माहौल नहीं है।

सबाहत ठीक कहती हैं, भले ही इससे सेक्स ड्राइव में कमी आए या सेक्स की चाहत खत्म हो जाए मगर पुरुषों की सोच नहीं बदली जा सकेगी। केमिकल प्रोसेस के बाद भी केवल पुरुषों के सेक्सुअल डिज़ाइर को खत्म करने की बात है, जिससे रेप के रुकने की सिर्फ उम्मीद लगाई जा सकती है, मगर मानसिकता बदलने में समय का पहिया ना जाने अभी कितने वर्षों का सफर तय करेगा।

मूल चित्र : Canva Pro 

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