कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

आज छाया सन्नाटा सब ओर क्यों…

मुखरित था जो घर-आंगन पायल की रुनझुन से कल, आज सन्नाटे से बन उठा सुर-श्मशान क्यूँ? थम जाती कलम भी आज, ठहर जाती उंगलियां भी आज।

मुखरित था जो घर-आंगन पायल की रुनझुन से कल, आज सन्नाटे से बन उठा सुर-श्मशान क्यूँ? थम जाती कलम भी आज, ठहर जाती उंगलियां भी आज।

थम जाती कलम भी आज,
ठहर जाती उंगलियां भी आज।

मैं लिखना चाहती हूँ ‘प्रेम’,
लिख डालती हूँ ‘क्षोभ’
लिखना चाहती हूँ ‘वीरता’,
लिख डालती हूँ ‘कायरता’
मैं लिखना चाहती हूँ ‘उम्मीद’,
फिर यह कैसी नाउम्मीदी।

अंक में भर लेती बार-बार,
उस पीड़ा की कल्पना भी
जड़ कर देती मुझे।

कैसे? कैसे झेली होगी
उसने पीड़ा अपार।

मुखरित था जो घर-आंगन
पायल की रुनझुन से कल,
आज सन्नाटे से
बन उठा सुर-श्मशान क्यूँ?

दूर-दूर तक विस्तृत
व्याप्त तिमिर अज्ञात,
निरवता, शून्यता, अज्ञात
कब तक – कब तक
खंडित होती रहे मर्त्य स्त्री रूप?

मूल चित्र : Canva Pro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Anchal Aashish

A mother, reader and just started as a blogger read more...

36 Posts | 103,306 Views
All Categories