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एक दामाद होने के नाते तुम्हारे भी तो कुछ फ़र्ज़ हैं…

कहाँ था अमन का वो उत्साह जो उसके खुद के मम्मी-पापा आये थे तब था। खुद रिया ने कितने खुले दिल से उनका स्वागत किया था। तो अब ऐसा व्यवहार क्यूँ?

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कहाँ था अमन का वो उत्साह जो उसके खुद के मम्मी-पापा आये थे तब था। खुद रिया ने कितने खुले दिल से उनका स्वागत किया था। तो अब ऐसा व्यवहार क्यूँ?

आज रिया बहुत ख़ुश थी। शादी के बाद पहली बार उसके मम्मी-पापा उसके घर आ रहे थे। रिया और अमन की शादी को एक साल हुआ था। दोनों बहुत ख़ुश थे एक दूसरे के साथ। थोड़े समय पहले रिया के सास-ससुर भी आये थे मिलने दोनों के घर।

रिया ने खूब खातिरदारी की थी अपने सास ससुर की। अमन भी जल्दी ऑफिस से आ जाते और रोज़ कहीं ना कहीं घूमने का प्रोग्राम बन जाता। रिया अपनी सास को कोई काम नहीं करने देती थी और पूछ-पूछ के रोज़ उन दोनों के पसंद का खाना बनाती। अमन के मम्मी-पापा बहुत ख़ुश थे रिया जैसी बहु पा कर। अमन से खूब तारीफ की दोनों ने रिया की और ढेरों आशीर्वाद दे वापस अपने घर चले गए थे।

बहुत दिन हो गए थे अपने घर गए तो ज़िद कर रिया ने अपने पापा (रमन जी) और मम्मी (रमा जी) को  बुला लिया अपने घर। सोचा इसी बहाने वो थोड़ा घूम भी लेंगे और कुछ दिन वो भी साथ रह लेती।

“अमन दो दिन बाद मम्मी-पापा आ रहे हैं, तो मुझे कुछ सामान लेना है शाम को मार्किट चलें?” जब रिया ने कहा तो अमन ने साफ मना कर दिया, “मैं बहुत बिजी हूँ पास से स्टोर से ले आओ सामान।”

रिया को बुरा तो लगा लेकिन फिर लगा कि हो सकता है काम हो तो रिया ने खुद ही सारा काम कर लिया। इस बीच में एक बार भी अमन ने ना ही पूछा की कब ट्रेन है और ना ही फ़ोन कर रिया के मम्मी-पापा से बात ही की।

रिया को बहुत बुरा लगा,  क्यूंकि जब अमन के मम्मी-पापा आ रहे थे, तब तो अमन हर घंटे फ़ोन करता और उनसे पूछता रहता, “ट्रेन कौन से स्टेशन पे है, अच्छे से आना आप दोनों।”  इस बार अमन का इतना ठंडा उत्साह देख रिया का मन खट्टा हो गया। एक बार सोचा मम्मी को मना कर दे, फिर मम्मी क्या सोचेंगी ये सोच चुप हो गई।

जैसा अनुमान हो रहा था रिया को मम्मी-पापा को रिसीव करने के टाइम भी अमन ने बहाना बना दिया। खुद की गाड़ी होते हुए भी रिया को कैब से उन्हें बुलाना पड़ा। मम्मी-पापा के गले लग रिया की ऑंखें भर आयी। सारी बातें भुला खुशी-खुशी अपना घर दिखाया। मम्मी जो सामान लायी थीं सब देख रिया बहुत ख़ुश हुई।

“बेटा! दामाद जी कब आयेंगे?” जब रमन जी ने पूछा तो रिया को ध्यान आया। घड़ी देखी तो सात बज रहे थे। अमूमन तो पांच से छः के बीच अमन आ जाता है आज क्यूँ देर हो गई? ये सोच रिया ने कॉल किया तो पहली बार अमन ने फ़ोन उठाया ही नहीं। दूसरी बार में उठाया, “अमन कहाँ हो तुम? मम्मी-पापा कब से पूछ रहे हैं तुम्हारे बारे में। खाना भी नहीं खाया अभी तक।”

रिया ने पूछा तो अमन ने रुखा सा ज़वाब दिया। “अरे मुझे लेट होगा मेरा वेट मत करो”, कह फ़ोन काट दिया। रिया ने काम का बहाना बना मम्मी-पापा को खिला-पिला के सुला दिया और खुद इंतजार करने लगी अमन का। दस बजे अमन आया।

“इतनी देर क्यूँ की तुमने? पापा खाने पे इंतजार कर रहे थे।”

“अरे बोला तो था मत  करना इंतजार मुझे लेट होगा”, इतना कह अमन सोने चला गया।

अमन के व्यवहार से रिया को बहुत बुरा लगा। एक बार भी नहीं पूछा अमन ने मम्मी-पापा के बारे में। फिर भी बात ना बढ़े इस लिये चुपचाप रिया सो गई। अगले दिन सुबह मम्मी-पापा उठ के हॉल में बैठे थे। अमन बाहर आया और औपचारिकतावश हल्का सा झुक के पैर छू लिये तो पापा ने गले लगा लिया अमन को। मम्मी भी जल्दी से अमन के लिये लाये सारे गिफ्ट अमन को दिखाने लगी अमन देख तो रहा था लेकिन वो उत्साह नहीं था जो वो अपने मम्मी के साथ दिखाता था।

संडे का दिन था तो रिया ने प्लान बनाया कहीं घूमते हैं। अमन को कोई बहाना नहीं सूझा तो जाना पड़ा, लेकिन पूरे रास्ते जितना पापा पूछते बस उठना ही ज़वाब देता अमन और कभी-कभी ना सुनने का नाटक भी करता। पीछे बैठी रिया कभी अपने पापा का मायूस चेहरा देखती, तो कभी अमन का दोगला चेहरा देखती।

कहाँ था अमन का वो उत्साह जो उसके खुद के मम्मी-पापा आये थे तब था। खुद रिया ने कितने खुले दिल से उनका स्वागत किया था। तो अब उसके पापा मम्मी के साथ ऐसा व्यवहार क्यूँ?

चार दिनों के लिये रिया के पापा-मम्मी आये थे और उन चार दिन अमन का ऐसा ही व्यवहार रहा।  खाने के टेबल पे अमन फटाफट खाता खाता और उठ जाता, इतनी तमीज भी ना दिखाता की पूछे पापाजी आप एक रोटी और लो या फिर उनका खाना ख़त्म होने का इंतजार करता। बस खाया और रूम के अंदर।

मौका देख एक बार मम्मी ने पूछा भी, “दामाद जी नाराज़ है क्या रिया?”

“नहीं तो मम्मी! ऐसा तो कुछ भी नहीं है, बस थोड़ा काम ज्यादा है ऑफिस में”, झूठ बोल रिया ने।  अपने पति की हरकतों पे पर्दा डाला और अपनी माँ का दिल रख लिया। लेकिन उसका खुद का ह्रदय रो रहा था, अपने माता पिता का अपमान देख।

अब तो ऐसा लगने लगा रिया को कब ये चार दिन बीते और इस अनकही बेइज्जती से छुट्टी मिले मेरे पापा-मम्मी को। वापसी के दिन बहुत रोई रिया पापा के गले लग। अमन को गले लगा पापा भी भावुक हो गए। एक बेटी का पिता सौ गलतियां करने पे भी दामाद को देवता ही समझता है। रिया के पापा भी कुछ ऐसे ही थे।

ट्रेन में बिठा भारी मन से रिया घर आयी। आज अमन वापस अपने पुराने मूड में वापस आ गया था।  रिया बहुत आश्चर्य से अमन को देख रही थी। कैसा इंसान है ये? आज अपने ही पति से नफ़रत सी होने लगी थी।

“अमन तुम मेरे पापा से बात क्यूँ नहीं करते थे?”  रिया ने गुस्से से पूछा तो अमन ने बेपरवाह हो कहा, “करता तो था बात। अब दामाद हूँ, इससे ज्यादा क्या बात करुँगा अपने ससुर से?”

रिया को बहुत गुस्सा आया, “अमन इतना पढ़ना-लिखना बेकार है तुम्हारा जब तुम अपनी सोच को नहीं बदल सकते।”

“जब तुम्हारे पापा-मम्मी आये थे जब मुझे क्या पड़ी थी दिन भर चक्करघनी की तरह उनकी सेवा करने की? लेकिन मैंने की क्यूंकि मैंने उन्हें अपना माना। लेकिन तुमने तो मेरे मम्मी-पापा को कुछ समझा ही नहीं। कैसा मायूस चेहरा हो जाता था दोनों का जब तुम ज़वाब नहीं देते थे उनकी बातों का। सोचो अगर मैं ऐसा करती तब तुम्हें कैसा लगता?” इतना कह रोती हुई रिया सोने चली गई।

अमन को अपनी गलती का आभास हो गया था पर अब क्या किया जा सकता था। अगले दिन रिया उठी तो अमन फ़ोन पे बात कर रहा था, “कहाँ ट्रेन पहुंची घर जा कर मुझे कॉल कीजियेगा और जल्दी प्लान कीजियेगा आने का इस बार बहुत कुछ रह गया घूमने को।” रिया समझ गई कि अमन उसके पापा से बात कर रहा है।

रिया को अच्छा लगा कि अमन को अपनी गलती महसूस तो हुई, पर वह उसे अनदेखा कर रसोई में चली गई। पीछे से अमन आया सॉरी रिया मैंने अपने घर पे ऐसा ही देखा था, “जब मामा और नानू आते तब पापा को, और जब भाभी के पापा और भाई आते तब भैया को।

“मैं समझ ही नहीं पाया कि तुम्हें या पापाजी-मम्मीजी को कितना बुरा लगा होगा। आज समझ आया भाभी क्यूँ इतना रोती थी। उस समय तो उनकी बात तो मैं समझ नहीं पाया और ना ही भैया को इन खोखली मानसिकता से आजाद कर पाया, लेकिन मैं प्रॉमिस करता हूँ कि आगे से तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा।”

अमन को पछताते देख रिया ने भी अमन को माफ़ कर दिया।

मूल चित्र : Dinesh Kumar from Getty Images via CanvaPro 

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