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ये कैसी संस्कृति है? एकलव्य से इस बेटी तक, कुछ नहीं बदला। तब उस का अंगूठा काटा, तो अब इस की जीभ? सदियों से कुछ नहीं बदला।
एकलव्य से इस बेटी तक, कुछ नहीं बदला। तब उस का अंगूठा काटा तो अब इस की जीभ, सदियों से कुछ नहीं बदला।
ये कैसी संस्कृति है? पाखंडी की भी सीमा होती, नवरात्रि आती तो फिर नौटंकी शुरू होती! माता रानी की जय हो चिल्लाते शरम नहीं आती तुम लोगों को, और कितना गिर जाओगे?
दिल्ली से गल्ली तक द्रौपदी से इस बेटी तक बस एक ही कथा, एक ही व्यधा, किसी का चीरहरण तो किसी का मानहरण। किस मूर्ख ने सिखाया कि ये मर्दांगी है?
यमपाश भी किसे छूने से मूंह फेरती है? ऐसे लोगों को पाल पोस कर बड़ा किया? कितनी बद्नसीब मिट्टी हूं मैं।
आज तक मैं अपनी बेटियों की शिक्षा की चिंता कर रही थी, लेकिन आज पता चला मैं कितनी गलत थी। मेरी रानी बेटियों को नहीं बल्कि मेरे मूर्ख बेटों को शिक्षा की सख्त जरुरत है। बेटा पढ़ओ, दुनिया बचाओ।
मूल चित्र : Bhupi from Getty Images Signature Canva Pro
Home maker at present. Worked as English teacher. My short stories and poems are published on platforms like saranga and pratilipi. read more...
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