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एशना कुट्टी का बिंदास और अल्हड़ 'ससुराल गेंदा फूल' हमारे अंदर के संवेदनशील कलात्मक मन को झकझोरता है जो हमेशा खुश रहना चाहता है।
एशना कुट्टी का बिंदास और अल्हड़ ‘ससुराल गेंदा फूल’ हमारे अंदर के संवेदनशील कलात्मक मन को झकझोरता है जो हमेशा खुश रहना चाहता है।
कुछ दिनों पहले इन्ट्राग्राम पर एशना कुट्टी का साड़ी, हूला-हूप और स्नीकर्स का एक डांस विडियों फिल्म दिल्ली-6 के गाने ‘सैंइया छैड़ देवे, ननद चुटकी लेवे, ससुराल गेंदा फूल’ के साथ आया और सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर छा गया। जिस किसी ने भी उस विडियों को देखा उसके अंदर आनंद की एक लहर ने हिलोर जरूर मारा होगा, मुझे पक्का यकीन है।
उस विडियों में क्या था ऎसा जो पहली ही नज़र में मन का हर पोर भिगो दे रहा था? सीधे मन के सुप्त हो चुके हर तार को अचानक से झकझोर दे रह था? कुछ तो होगा जो सीधा-सीधा हम सबसे से संवाद कर रहा था। मुझे लगता है उस विडियों में एक बिंदास इंसान के जीवन की उमंग थी जो हर एक इंसान पाने की चाहत रखता है पर पा नहीं सकता है? उसमें एक मस्ती थी, एक अल्हड़पन था, जो आनंद के झरने में भिगने के लिए बुला रहा था। उसमें इस शरीर में छुपी तृष्णाओं और साहसिक सौंदर्य के बीच का वह सत्य था जिसको हमको चकित कर दे रहा था।
एशान कुट्टी ने बीबीसी के साथ अपने इंटरव्यू में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “लोगों को शायद खुशी चाहिए, एक तरह की ब्रेफ्रिकी वाली आज़ाद ख्याली चाहिए या उसी के आस-पास का कुछ, इसलिए लोगों को यह बहुत पसंद आ रहा है और ये वायरल हो रहा है। उसके साथ-साथ और भी प्रैक्टिस विडियो लोग देख रहे हैं।”
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वास्तव में नृत्य की कोई भी प्रस्तुती जब अपनी तय की गई शास्त्रीय सीमाओं को तोड़कर कुछ नया अनगढ़ सा भी गढ़ लेती है, तब वह रचनात्मकता के दायरे से उन्मुक्त हो जाता है उसमें सह्दयता का एक समन्दर जैसा कुछ होता है जो केवल बह रहा होता है। एक सीमा पर वह अपने साथ अपने सकारात्मक प्रभाव को चारों तरफ फैलाना शुरू करती है उसकी गति इतनी तेज होती है कि निराश व्यक्ति में भी सकारात्मक ऊर्जा बहने लगती है।
मशहूर नृत्यांग्ना इज़ाडोरा डंकन जो अपने मौत के बाद अपनी किताब ‘माई लाइफ’ के प्रकाशन से, नारीवादियों के कतार में जा खड़ी हुई थी, कहती हैं, “संगीत को अपनी आत्मा के माध्यम से सुनने की कोशिश करो। क्या अब संगीत सुनते हुए तुम्हें नहीं लग रहा है कि तुम्हारे अंदर कुछ जाग रहा है कि इसी से शक्ति पाकर तुम अपना सर उठाते रह हो, अपनी बांहे ऊपर फैलाते रहे हो और एक रोशनी की तरफ बढ़ते रहे हो। यह नृत्य के साथ मिलकर तुम्हें जागृत कर देगी।”
एशना कुट्टी कि वायरल प्रस्तुती भी इज़ाडोरा के इस अभिव्यक्ति की सही उदाहरण के तरह का लगता है। यह शुरू तो होता है अपनी मस्ती और अल्हड़ता के साथ पर जैसे-जैसे संगीत के साथ आगे बढ़ता है साड़ी में कैद देह की लय, हूलाहूप और स्नीकर्स के साथ आजाद होने लगती है। वह असंभव कल्पना के तरह थिरकने लगती है जो सुप्त आत्मा को जागृत करती है, देह की लय और अप्रत्याशित लोच प्रेम और आनंद के सरोबर में बहा कर ले जाती है।
इज़ाडोरा डंकन के ही शब्दों में “कला मानवीयता की आध्यात्मिक मदिरा है, जो आत्मा के विकास के लिए बहुत जरूरी है।” कला आज हमारे जीवन में खत्म हो चुकी है तो आध्यात्मिक मदिरा और आत्मा का विकास हमारे जीवन के सिलेबस से आल्ट शिफ्ट डिलीट हो गया है। जब संवेदना ही खत्म हो चुकी है तो कोई भी साकारात्मक संवेदना हमारे मन की दबी-छुपी संवेदना को हिलोर मारने का काम करेगी ही। शायद यही काम एशना कुट्टी के इस अल्हड़ और बिदांस विडियो ने भी किया है। ये हमारे अंदर की संवेदनशील कलात्मक मन को झकझोरा है जो हमेशा खुश रहना चाहता है।
मूल चित्र : Eshna Kutty, Instagram
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