कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

गांधी जयंती पर उनकी अर्धांगिनी कस्तूरबा को भी याद करना ज़रुरी है

गांधी आज जितने गर्व से याद किए जाते हैं, उसमें बा का सबसे ज़्यादा योगदान है क्योंकि गांधी ने महान बनने की सीढ़ी बा के सहारे ही चढ़ी है।

गांधी आज जितने गर्व से याद किए जाते हैं, उसमें बा का सबसे ज़्यादा योगदान है क्योंकि गांधी ने महान बनने की सीढ़ी बा के सहारे ही चढ़ी है।

महात्मा गांधी की जयंती पर लोग महात्मा गांधी को याद तो करते हैं, मगर उनकी जीवनसंगिनी कस्तूरबा को कोई ज्यादा नहीं करता क्योंकि गांधी सबको याद होते हैं, मगर कस्तूरबा का अस्तित्व लोगों की आंखों के सामने धुंधला हो जाता है।

हम यह सुनते आए हैं कि एक सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, मगर हर एक सफल जीवनसाथी को सफल बनाने में उसका जीवनसाथी ही सबसे ज़्यादा त्याग करता है। इसी त्याग की मूर्त का नाम है कस्तूरबा गांधी, जो हम सबके लिए बा हैं।

गांधी बा के लिए अपने महात्मय से नहीं निकल सके

बा ने गांधी को बापू बनने और महात्मा बनने तक देखा है, क्योंकि बा ने हमेशा एक अर्धांगिनी के अर्थ को पूरा किया है, लेकिन गांधी ने बा के कुछ ऐसे सुलूक भी किए हैं, जो बतौर गांधी हम सबके कल्पना से बाहर है। मोहन दास करमचंद गांधी, बापू, महात्मा भले ही अनेकों बार जीते और लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ी मगर बतोर पति गांधी हर बार हार गए क्योंकि उन्होंने कस्तूरबा की ज़िम्मेदारियों को नहीं समझा। एक पुरुष भले ही पूरे संसार के लिए महान हो सकता है, मगर अपनी अर्धांगिनी के लिए उसे अपने महात्मय से बाहर निकलना ही होता है, जिससे गांधी बाहर नहीं निकल सके। गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा भी है कि उन्हें कस्तूरबा के साथ किए बर्ताव पर अफसोस है।

गांधी ने बा पर उठाया था हाथ

गांधी समाज में व्यापत हर वर्जना को तोड़ना चाहते थे। उनका मानना था कि भेदभाव करना, अहिंसा करना गलत है, जिसमें बा ने उनका पूरा साथ भी दिया था मगर गांधी और बा के बीच हर बार किसी-ना-किसी बात को लेकर बहस हो जाया करती थी। एक बार जब गांधी के सचिव महादेव देसाई की पत्नी ने उन्हें जगन्नाथ पूरी मंदिर में पूजा करने के लिए निमंत्रण दिया था, उस वक्त गांधी ने मना कर दिया था क्योंकि उस मंदिर में दलितों के आगमन पर रोक लगी थी। महादेव देसाई को लगा था कि बा उनकी पत्नी को भी वहां जाने से रोक लेंगी मगर बा महादेव देसाई की पत्नी के साथ मंदिर घुम आईं। इसके बाद बा और गांधी में बहस हो गई और बहस इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि गांधी ने बा पर हाथ तक उठा दिया था।

गांधी की पत्नी बनना सबसे मुश्किल

यह वही गांधी थे, जिन्होंने एक बार दलित को अपने घर में आने से मना कर दिया था। बा घर के कामों को करते-करते थक जाती थीं और गांधी भी अपने साथ हमेशा किसी-ना-किसी मेहमान को लेकर पहुंच जाते थे। बा की सेहत पर इन सबका बुरा प्रभाव पड़ रहा था मगर गांधी राज़ी नहीं हुए क्योंकि वह चाहते थे कि बा ही सारे कामकाज करें।
इन सब वाकयों के कारण ही महादेव भाई ने  कहा है कि “गांधी का सचिव होना मुश्किल है मगर गांधी की पत्नी होना दुनिया में सबसे मुश्किल।”
गांधी आज जितने गर्व से याद किए जाते हैं, उसमें बा का सबसे ज़्यादा योगदान है क्योंकि गांधी ने महान बनने की सीढ़ी बा के सहारे ही चढ़ी है।

बा ने ही किया अस्तित्व का विस्तार

महात्मा गांधी को याद करना जितना प्रासंगिक है, उतना ही प्रासंगिक बा को भी याद करना है क्योंकि बिना बा के गांधी केवल गांधी हैं। बा का साथ मिलने से ही गांधी के अस्तित्व में विस्तार हुआ है। गांधी ने इसे अपनी आत्मकथा में कबुला भी है और यह गांधी का महात्मय ही कि उन्होंने बा से साथ किए अपने बर्तावों को सबसे सामने कबुला है।

प्रोफेसर स्टेनले वोलपार्ट ने अपनी किताब में लिखा भी है कि गांधी, बा की मौत के बाद काफी टूट गए थे। अवसाद की स्थिति में गांधी बीच-बीच में खुद को थप्पड़ मारते और कहते थे कि ‘‘मैं महात्मा नहीं हूं। मैं तुम सब की तरह सामान्य व्यक्ति हूं और मैं बड़ी मुश्किल से अहिंसा को अपनाने की कोशिश कर रहा हूं।’’

मूल चित्र : Google 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

62 Posts | 265,995 Views
All Categories