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कोर्ट ने यह साफ़ किया है कि पत्नी का न सिर्फ अपने पति की संपत्ति पर अधिकार है, परन्तु ससुराल की संपत्ति और साझा संपत्ति पर भी उसका अधिकार है।
2005 के घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की विस्ताररपूर्वक चर्चा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले में 2006 के अपने ही एक पुराने फैसले को बदलते हुए कोर्ट ने यह कहा है कि बहु को सास ससुर के घर में रहने का अधिकार है।
तरुण बत्रा केस के में है यह फैसला लिया गया था कि घरेलु हिंसा अधिनियम के तहत महिला को अपने पति की संपत्ति पर अधिकार है अपने ससुराल वालों की या फिर साझा संपत्ति पर उसका कोई अधिकार नहीं है।
एक बहुत ही प्रगतिशील फैसले में कोर्ट ने यह साफ़ किया है कि पत्नी का न सिर्फ अपने पति की संपत्ति पर अधिकार है परन्तु ससुराल की संपत्ति और साझा संपत्ति पर भी उसका अधिकार है। अतः घरेलु हिंसा अधिनियम को विस्तार करते हुए यह कहा गया है कि बहु को सास ससुर के घर में रहने का अधिकार है।
कोर्ट ने फैसला सुनते हुए कहा कि एक समाज की प्रगति उसकी महिलाओं की प्रगति पर निर्भर करती है और संविधान में महिलाओं और पुरुषों को सामान अधिकार देना उस प्रगति की शुरुआत थी। यह फैसला बहुत ही सराहनीय है और महिला अधिकारों को बढ़ावा देता है।
भारत में घरेलु हिंसा का बहुत ज्यादा फैलाव है। यह जुर्म समाज में इतना गहरा बैठा हुआ है कि कई लोग तो इसे जुर्म भी नहीं मानते। 2005 में घरेलु हिंसा अधिनियम आने से मामलों में बेहतरी आयी है परन्तु आज भी बहुत से महिलाएँ घरेलु हिंसा का शिकार बनती हैं। अधिनियम आने के बाद भी बहुत से जगह सामाजिक विचारधारा में बदलाव न आने के कारण महिलाओं पर ज़्यादती होती रहती है।
घरेलु हिंसा का घर में हो रही हिंसा। किस्सों और कहानियों में अक्सर हम पढ़ते हैं घर का मर्द दारु पीकर आता है और अपनी पत्नी के साथ मार पीट करता है। टीवी पर कई धारावाहिकों में भी इस मुद्दे को उठाया गया है। इस हिंसा का एकमात्र कारण है सत्ता थोपना। हिंसा के सहारे औरत को यह याद दिलाया जाता है कि वह मर्द से कमतर है और पुरुष का उस पर स्वामित्व है। अपना वर्चस्व और अभिमान पुष्ट करने के लिए पुरुष हिंसा का माध्यम अपनाते हैं और महिलाओं को अपनी बात मनवाने के लिए डराते-धमकाते हैं।
घरेलु हिंसा अधिनियम से कुछ बदलाव अवश्य आया है, परन्तु आज भी घरेलु हिंसा के किस्से कई पढ़े-लिखे घरों में भी देखे जाते हैं। इसका मुख्य कारण है महिलाओं को अपनी जायदाद समझना और उस पर रौब चलाने की कोशिश करना। महिलाओं की आर्थिक परतंत्रता के कारण आज भी बहुत सी महिलाएँ घरेलु हिंसा का शिकार होने के बाद भी उसके खिलाफ अपनी आवाज़ नहीं उठाती। हमारे सामाजिक परिवेश में पति परमेश्वर होता है और ऐसे में पति के किसी भी करणी पर सवाल उठाना नामुमकिन है। साथ ही साथ पति पर आर्थिक रूप से निर्भर होने के कारण पत्नियाँ इसकी शिकायत नहीं लिखवाती।
सामाजिक और आर्थिक कारणों से महिलाएँ जब रिपोर्ट नहीं लिखवाती तो पुरुष उनपर अत्याचार करते रहते हैं। हमारे समाज का लड़कियों को पराया धन मानने के कारण मायके के दरवाज़े भी शादी के बाद बंद हो जाते हैं। ऐसे में चुप-चाप सहन करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं होता। इस फैसले के अंतर्गत महिला को केवल अपने पति की संपत्ति पर ही नहीं अपितु अपने ससुराल की संपत्ति पर भी अधिकार है। इससे महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिल सकती है और वह गलत के खिलाफ आवाज़ उठा सकती हैं।
फैसले में महिलाओं के उत्थान लिए सकारात्मक उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि महिला का अपने सास ससुर की सम्पति, साझा संपत्ति अथवा ऐसी कोई भी संपत्ति जहाँ वो अकेली अथवा अपने पति के साथ रहती हों या रह चुकी हैं, उसपे पूरा अधिकार है। ऐसी संपत्ति से घरेलु हिंसा अधिनियम के तहत उसे निकला नहीं जा सकता। कोर्ट के इस फैसले का सभी सामाजिक संस्थाओं ने खुले दिल से समर्थन किया है और कहा है कि यह घरेलु हिंसा के खिलाफ महिलओं की आवाज़ बुलंद करेगा।
मूल चित्र : Canva Pro
Political Science Research Scholar. Doesn't believe in binaries and essentialism. read more...
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