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अब बस! इसके खिलाफ़ बोलना ज़रुरी है…

अब बस उसका हथियार उसी पर इस्तेमाल करिये। अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाईये। उसके बाद एकदम तो सब ठीक नहीं हुआ पर...

अब बस उसका हथियार उसी पर इस्तेमाल करिये। अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाईये। उसके बाद एकदम तो सब ठीक नहीं हुआ पर…

नोट : विमेंस वेब की घरेलु हिंसा के खिलाफ #अबबस मुहिम की कहानियों की शृंखला में पसंद की गयी एक और कहानी!

और मैनें तय कर लिया कि क्या करना है। मैं तेजी से अपने घर से बाहर आयी और सामने वाले घर की डोर बेल दो तीन बार जल्दी जल्दी बजाई। इसके हर संभव परिणाम के लिए मैं मानसिक रुप से पूरी तरह तैयार थी। पर जैसा मैनें सोचा था, वैसा कुछ न हुआ। कोई बाहर नहीं आया। आवाजें भी बंद हो गयी थी। मैं थोड़ी देर वहीं खड़ी रही फिर वापस घर की और चल दी।

आस पास नजरें घुमा कर देखा, कई जोड़ी आँखे और कान उस घर की दीवारों से चिपके हुए थे। परन्तु सब मौन और दृष्टिहीन, जैसे न कुछ सुना, न कुछ देखा। बस कुछ को एक जिज्ञासा जरुर है कि इस चारदिवारी के भीतर से कुछ मसाला मिल जाये। वैसे हम किसी की जिंदगी में कोई दखलंदाजी नहीं करते और छत पर तो हम टहलने आये थे, आवाजें आयी तो क्या सुनना बंद कर दे। बाकी के लोग, ये तो रोज की कहानी है, कौन इन चक्करो में पड़े।

मैं विचलित सी घर आ गई। पतिदेव तैयार बैठे थे “कर ली मन की, हुआ कुछ। नहीं ना। मैनें तो पहले ही मना किया था पर तुम सुनती ही कहाँ हो।”

“रोनित, प्लीज अब तुम तो शुरू मत हो जाओ। देखने, सुनने की भी एक हद होती है। आखिर कब तक हम इसी तरह मौन रहेंगे। किसी न किसी को तो बोलना ही पड़ेगा। आज शुरुआत की है अब कदम पीछे नहीं लूंगी।” मैं बहुत अपसेट थी।

“लेकिन अगर इससे तुम्हें या हमें कोई नुकसान हुआ तो “रोनित ने अपनी शंका जाहिर की।

“तब की तब देखेंगे” मैं अपने निर्णय पर अडिग थी।

रात हो गयी थी। सब सोने चले गये पर मेरी आँखों से नींद कोसो दूर थी। मैं सामने वाले घर के बारे में ही सोच रही थी।
आंटी और उनके बेटा, बहू और एक प्यारा सा पोता, यही था सामने वाला परिवार। वे लोग कुछ महिनों पहले ही यहाँ आये हैं। मुझे बहुत अजीब लगा था जब आंटी ने बताया कि वे अपना शहर, अपना मकान, सब कुछ छोड़ कर यहाँ रहने आये हैं। होगी कोई बात, मैंने उस वक़्त यही सोचा था। वैसे भी मैं किसी के घर के मामलों में  नहीं पड़ती।

अंकल रिटायरमेंट के बाद स्वर्गवासी हो गये थे। आंटी घर को सम्भालने में बहू की मदद करती थी।बेटा सी. ए. था, अच्छा कमाता था। परन्तु वही सारी समस्या की जड़ भी था। असल में उसे ड्रिंक करने की बड़ी आदत थी वह भी रोजाना। और उससे भी बडी बात ड्रिंक करके वह घर में जो हंगामा करता था। वह बर्दाश्त से बाहर था।

कभी कोई सामान पटकता, कभी अपनी माँ पर  चिल्लाता, कभी अपनी पत्नी को मारने दौड़ता। शुरू शुरू में तो सारा पड़ोस मजे लेकर सारा  तमाशा देखता और कई कई दिनो तक उसके कारनामे की चर्चा रहती। फिर वह बात पुरानी भी न होती की कुछ नया कांड हो जाता। अब तो सिर्फ सब देखते रहते है, जिक्र भी नहीं करते।

बेचारी आंटी और बहू घर से बाहर भी नहीं निकलती। किसके सवालों का क्या जवाब दे। मैनें  भी आज तक बहुत इग्नोर किया है परन्तु आज जब वह अपनी पत्नी को मारने लगा तब मुझसे न रुका गया। पर बात नहीं बनी क्योंकि कोई बाहर ही नहीं आया।

अगले दिन मैं काम खत्म करके, फिर उस घर में गयी। आंटी ने दरवाजा खोला, मुझे देख उन्होंने कोशिश की कि मैं वहीं से वापस चली जांऊ। परन्तु आज तो मेरा इरादा पक्का था। उनका बेटा घर पर नहीं था।
“आंटी मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ, प्लीज मना मत कीजिएगा। बहुत जरूरी है।” मैने प्रार्थना की।

वे मान गयी, थके कदमों से पीछे हट गयी, मैं भी अंदर आ गई।
“आंटी बात क्या है, आपका बेटा ऐसा क्यूँ करता है” मैंने बात शुरू की।
इतना सुनते ही वे फफक कर रो पडी, रोना सुनकर उनकी बहू भी आ गयी। कल की घटना के निशान साफ़ दिख रहे थे। उसकी आँखे  भी भर आयी थी।
हम दोनो ने आंटी को चुप कराया, थोडी देर बाद वे संयत होकर बोली “बेटा, आज पहली बार किसी ने जानने की कोशिश की है तो जरूर बताऊंगी।”

“असल में निखिल मेरा एकलौता बेटा है, पढ़ाई में हमेशा ही बहुत अच्छा था। सी ए भी बन गया परन्तु इस दौरान कुछ ऐसे लोगो के संपर्क में आया जो ड्रिंक करने के शौकीन थे। पहले पहल मजे के लिए ली। पर बाद में लत बन गयी। अब तो कोई दिन नहीं जाता। हालांकि मेरा मानना है जब तक हम खुद न चाहे कोई हमें बिगाड़ नहीं सकता। पता नहीं परवरिश में कहाँ गलती हो गयी।”

“तुम्हारे अंकल इसे जरुरत से ज्यादा प्यार करते थे। हर मांग पूरी करते थे और इसने उसके बदले हमे ये दिन दिखाये। ये सिलसिला शादी के बाद शुरू हुआ वरना मैं तो इसकी शादी भी न करती। बहू की जिंदगी तो खराब न होती। अब तो ये छोटा बच्चा भी है। क्या करूं कुछ समझ नहीं आता। तुम्हारे अंकल भी इसी गम मे चले गये। रह गयी मैं अकेली।”

वे फिर रोने लगी थीं।
“आंटी, आपने निखिल का कोई इलाज नहीं कराया” मैंने जानना चाहा।

“कहाँ बेटा, दवाई लेने को तैयार नहीं। कहता है मुझे कोई बीमारी थोड़े ही है। अब कमाई ज्यादा नहीं होती तो उसका गुस्सा घर का सामान पटक कर निकालता है। जान बूझ कर बाहर आकर चिल्लाता है। हम अपनी इज्जत के लिए  चुपचाप अंदर ही सुनते रहते है इसलिए ही वहाँ से सब  बेच कर यहाँ अजनबी शहर में आ गयी। बेटा अब सहन नहीं होता। बस बहू और बच्चे के बारे में सोच सोच कर ही मेरे प्राण नहीं निकलते” उनके चेहरे पर बेबसी साफ़ दिख रही थी।

“आंटी इसी बात का तो वह फायदा उठा रहा है कि आप पड़ोस से छुपाने की कोशिश करती हो। जबकि सब उसके बारे में जानते हैं। मेरे विचार से तो आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। अगली बार वह जब चिल्लाए तो आप हम लोगों को खुद ही बुला लें। ऐसे लोग दिखावा करते है। जब सब को देखेगा तो फिर शायद कुछ न करे। उसका हथियार उसी पर इस्तेमाल करिये। अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाईये” मैनें कह तो दिया था पर कहीं न कहीं डर भी तब अगर कुछ उल्टा सीधा हो गया तो।

उसी दिन फिर वही ड्रामा शुरु हुआ। निखिल बरामदे में आकर चिल्लाने लगा तभी आंटी बाहर निकल आयी और उन्होने मुझे और पड़ोस के एक दो लोगो को बुला लिया। वे लोग भी सहयोग करने के लिए आ गये। सबने निखिल को धमकाया, “अगर फिर से ऐसा किया यो पुलिस थाने में  शिकायत दर्ज करा देंगे और इस मौहल्ले से भी बाहर कर देंगे।”

इतने में किसी ने सच में ही पुलिस को बुला लिया। अब तो निखिल की हालत खस्ता हो गई। उसने किसी तरह माफी मांग कर अपनी जान बचाई।

मैनें भी समझाया “बूढ़ी माँ को परेशान करने की कानूनी सजा तो तुम्हें शायद पता ही होगी, याद रखना हर कोई गूँगा बहरा नही होता।”

उसके बाद एकदम तो सब ठीक नहीं हुआ पर पहले से हालात काफ़ी हद तक सुधर गये। आंटी और बहू दोनों की आँखो में थोडी उम्मीद दिखाई देती है। मुझे भी उम्मीद है शायद एक दिन सब ठीक हो जाएगा।

मूल चित्र : Prathmesh Wadekar via Unsplash 

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Abhilasha Singh

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