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घरेलु हिंसा कभी किसी का ‘निजी मामला’ नहीं हो सकता…

हम सब को ये समझना है कि घरेलु हिंसा निजी मामला नहीं है बल्कि पुरुषवादी समाज की एक चाल है जिससे पीड़ित महिला को कोई मदद न मिल पाए।

हम सब को ये समझना है कि घरेलु हिंसा निजी मामला नहीं है बल्कि पुरुषवादी समाज की एक चाल है जिससे पीड़ित महिला को कोई मदद न मिल पाए।

हमारे समाज में घरेलु हिंसा एक बहुत प्रचलित जुर्म है। भारत में महिलाओं पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए पुरुष उन पर हिंसा करके उन्हें दबाने का प्रयास करते रहे हैं।

घरेलु हिंसा को अधिकतर नज़रअंदाज़ किया जाता है और यह माना जाता है कि यह पति-पत्नी का निजी मामला है या फिर किसी का घरेलु मामला है। ऐसा मानने से हम बहुत बार सक्षमता होने पर भी घरेलु हिंसा की पीड़िता की मदद नहीं करते और उसका साथ नहीं देते। घरेलु हिंसा को निजी मामला समझना पुरुषवादी समाज की एक चाल है जिससे पीड़ित महिला को कोई मदद न मिल पाए।

हमारे समाज में अक्सर लोगों को ऐसा लगता है कि घरेलू हिंसा से लड़ने की ज़िम्मेदारी सिर्फ पीड़ित महिलाओं की होती है। हमें लगता है कि घरेलू हिंसा एक निजी मामला है, और हमें इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, परन्तु ये सत्य नहीं है। हो सकता है कि घरेलू हिंसा एक निजी या पारिवारिक मामले जैसा लगे, लेकिन ऐसा है नहीं। बल्कि, यह एक मानवाधिकार उल्लंघन है जिसमें हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है ताकि हिंसा के चक्र को तोड़ा जा सके।

विमेंस वेब पर चल रहा अब बस नाम का घरेलु हिंसा के खिलाफ अभियान से जुड़ा एक प्रश्न हमने अपने पाठकों से किया। तो क्यों न देखा जाए कि घरेलु हिंसा को रोकने के लिए पीड़िता के अलावा औरों के प्रयास पर हमारे पाठकों का क्या कहना है? 

आपके जवाब देखकर हमें यह लगा कि भारत का समाज बदलाव की ओर अग्रसर हैं परन्तु मंज़िल अभी दूर है। इन्हीं में कुछ कमैंट्स को चुन कर देश के हर तबके की महिलाओं और लड़कियों की बात आप तक पहुंचा रहे हैं। घरेलु हिंसा के खिलाफ समाज के बदलते नज़रिये को ज़रूर पढ़ें और बदलाव का हिस्सा बनें।

आइये जानते हैं कि भारत की नारी घरेलु हिंसा होती देख क्या कदम उठाएगी।

सुनीता मोहन शर्मा का कहना है

“हिंसा चाहे कोई भी हो किसी भी प्रकार की हो, वो व्यक्तिगत मामला हो ही नहीं सकता। किसी भी प्रकार की हिंसा हमारे मानवाधिकारों का हनन है। जब तक हम इसे व्यक्तिगत और पारिवारिक मामला मानेंगे तब तक इसे रोकना असम्भव ही होगा।”

कृति मांडवी के अनुसार

“महिला एवं उसके परिवार से बात करके समझायेंगे। अगर वो फिर भी दुरव्यवहार करते रहे, तो महिला थाना मे उनके खिलाफ एक शिकायत डालेंगे और अपने आसपास की महिलाओ को जागरूक करेंगे। ”

ज़ारा हुसैन ने उठाया एक कदम

“कुछ समय पहले एक आदमी अपनी पत्नी को सड़क पर मार रहा था और लोग मज़े ले रहे थे। मैंने उसे जाकर रोका और उसकी सास को सुनाया तो लोगों ने मुझे कहा कि यह उनके घर का मामला है। जब मैंने औरत से शिकायत दर्ज कराने को कहा तो वह भी नहीं मानी। ”
यह है हमारे समाज की सच्चाई कि आज भी महिलाएँ शिकायत करने से कतराती हैं।

नार्वीन गाबा समाज की सच्चाई उजागर करती  हैं

“किस किस की शिकायत करें, यह तो घर घर का मामला है। अगर शिकायत करते हैं तो पड़ोसियों से रिश्ते खराब होते हैं और पीड़िता के मुकरने की सम्भवना भी रहती है।”
आज भी घरेलु हिंसा की शिकार महिलाओं को डराया धमकाया जाता है ताकि वह न्याय तक कभी न पहुँच पाए।

सलमा खान का कहना भी सही है

“हाँ मैं बिलकुल उसकी मदद करुँगी पर सवाल यह है कि क्या वो मेरी मदद चाहती है? कोई भी पीड़ित महिला किसी की मदद नहीं लेती और कह देती है कि यह उसका घरेलु मामला है और हमें  इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए। पर वो ऐसा इसलिए कहती है कि हम उसकी सही से मदद नहीं कर पाते और उसे बद से बदतर हाल में पंहुचा देते हैं।”

नेहा तंवर ने एक पहल की

“मेरी कॉलोनी में ऐसा केस था और मैंने लोकल एनजीओ से बात की थी। और उस एनजीओ ने आगे कदम भी उठाया था पर आखिर में पीड़िता ने इसे अपना घरेलु मामला बताकर बात खत्म कर दी।”
इससे यह पता चलता है कि भारत में न्याय तक पहुंचना आसान नहीं है।

सपना गर्व गुजराती कहती हैं

“बहुत सी महिलाओं को यह पता भी नहीं होता कि घरेलु हिंसा क्या होती है। वह लगभग रोज़ इसे झेलती हैं और फिर भी यह समझने में देर लगती है। ”
इसका सीधा सम्बन्ध इस समाज की सोच से है जो महिला को पुरुष से कम मानता है और इसी कारण महिलाओं को यह लगने लगता है कि घरेलु हिंसा में कुछ गलत नहीं है।

कविता वर्मा का जज़्बा है

“सरकार ने महिलाओं और बच्चों को घरेलू हिंसा से संरक्षण देने के लिये घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 को संसद से पारित कराया है। घरेलू हिंसा का कारण पता लगने के बाद महिला के परिवारी जन जिन्होंने इस तरीके का काम किया है उनको इस नियम के बारे में बताया जाना चाहिए, कि वह भविष्य में ऐसे दोबारा काम ना कर सके और अगर फिर भी करते हैं तो उन्हें उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए और दूसरी चीज है कि समाज मे और महिलाओं को कानूनी नियम (धारा – 5, 12, 17, 18) आदि के बारे में जागरूक करना चाहिए। जिससे वे हक के लिए लड़ सकें।”

घरेलु हिंसा आज भी हमारे समाज में व्याप्त है। इसे रोकने के लिए हिंसा का चक्र तोड़ना होगा। इसके लिए सबसे ज़रूरी है यह समझना कि घरेलु हिंसा कोई निजी माला नहीं अपितु मानवअधिकार हनन का मामला है जिसमें द्रष्टा को देखना ही नहीं उसके खिलाफ कदम भी उठाने चाहिए। घरेलु हिंसा पुरुषों द्वारा महिलाओं पर अपना सत्ता थोपने का एक तरीका है। यह कटाई स्वाभाविक नहीं है।

आज के समय की ज़रुरत है कि सभी महिलाओं को घरेलु हिंसा अधिनियम से परिचित कराया जाए जिससे वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें और हिंसा के चक्र को तोड़ सके।

मूल चित्र : RantaImages from Getty Images via CanvaPro 

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Sehal Jain

Political Science Research Scholar. Doesn't believe in binaries and essentialism. read more...

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