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नहीं मिलता जब तक इंसाफ, कोई चूल्हा नहीं जलेगा…

वहशी खुले घूम रहे, जब यूं गली गली, हमारे सम्मान की चिता, यहां हर रोज़ जली। कह दो जब तक, नहीं मिलता इंसाफ, कोई चूल्हा नहीं जलेगा।

वहशी खुले घूम रहे, जब यूं गली गली, हमारे सम्मान की चिता, यहां हर रोज़ जली। कह दो जब तक, नहीं मिलता इंसाफ, कोई चूल्हा नहीं जलेगा।

हमारा कोइ गुट नहीं है,
क्यों,  हम एकजुट नहीं हैं।
धर्म, जाति, मजदूर, आदमी
सबके ठेकेदार हैं।

बस एक औरत की आबरू,
दुनिया में ज़ार ज़ार है।

वहशी खुले घूम रहे,
जब यूं गली गली,
हमारे सम्मान की चिता,
यहां हर रोज़ जली।

इन झूठों वादों-इरादों में,
अब कोई पुट नहीं है,
क्यों हम एकजुट नहीं है।

कुछ दिन राजनीति की,
यह बिसात बिछाई जाएगी ।
फिर किसी निर्भया की तरह,
यह भी भुला दी जाएगी।

कोर्ट-कचहरी के अहाते में,
माँ बाबा की उम्र बीत जाएगी।
किस पर यहां यकीन करें,
कौन गिरगिट नहीं है।
क्यों हम एकजुट नहीं हैं।

तुम भी अब हड़ताल करो,
ये ज़ुल्म कब तक चलेगा।
स्त्री गर थम जाएगी,
सृष्टि का पहिया कैसे बढ़ेगा।

ठान लो इस आँचल तले,
कोई दरिंदा नहीं पलेगा।
कह दो जब तक,
नहीं मिलता इंसाफ,
कोई चूल्हा नहीं जलेगा।
कोई चूल्हा नहीं जलेगा।

मूल चित्र : Bhupi from Getty Images Signature via Canva Pro

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