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दीदी से बात होती तो जीजाजी के दोस्त की फैमिली की तारीफ ही करतीं थीं फिर ये सब कैसे हो गया...
दीदी से बात होती तो जीजाजी के दोस्त की फैमिली की तारीफ ही करतीं थीं फिर ये सब कैसे हो गया…
फोन था कि बम प्रिया का तो दिमाग़ ही हिल गया। भला ये कैसे हो सकता था रात को ही तो दोनों की बात हुई थी। सब कुछ ठीक था फिर हो सकता है उससे ही सुनने में कोई गलती हुई हो। ऐसे कैसे हो सकता था। वो बेडरूम से उठकर सीधे बाहर भागी।
फिर पता नहीं क्या हुआ वो चीख़ चीख़ कर रोने लगी। घर वाले उसकी आवाज सुनकर भागकर आ गए। वो कुछ बताने के पोजीशन में नहीं थी। पति नरेंद्र ने उसे पानी लाकर दिया वो एक ही सांस में पानी का गिलास खाली कर गयी। फिर रोने लगी और हिचकियों के बीच बताया कि “उसकी प्यारी लाडली बहन का किसी ने खून कर दिया है। रात में ही तो उनसे बात करके वो सोई थी फिर…”
नरेंद्र ने उसी वक़्त प्रिया के पापा को फोन किया तो पता चला कि बेटी के साथ नाती को भी नहीं छोड़ा है उन दरिंदों ने। शक उन्हीं के साथ रह रहे दामाद के दोस्त पर है।
दीदी को उनके ससुराल वालों ने अलग कर दिया था। उस वक़्त जीजाजी के पास इतना पैसा नहीं था कि अपना खुद का घर लेते और फिर जरूरत सिर्फ घर की नहीं होती जाने कितने चीजों की होती है जो सिर्फ पैसों से आती है। जीजाजी को लगता था अगर उनके पास बहुत अच्छी नौकरी होती खूब पैसे होते तो उनके घर वाले इस तरह खुद से अलग ना करते।
वो भी घर में बराबर के हिस्सेदार थे मगर जब तक शादी नहीं हुई थी तब तक तो घर खर्च में हाथ बटा लेते थे मगर शादी के बाद उनकी और पत्नी के ही खर्च मुश्किल से पूरे होते थे। फिर कहाँ से मां को दे पाते। माँ ने कुछ साल तो बरदाश्त किया फिर फरमान सुना दिया कि छोटे बेटे की शादी करेंगी इसलिए तुम अपना इंतजाम कहीं और कर लो। और कमरा घर में नहीं है।
छोटे बेटे ने इस कमरे को सजाने संवारने में बहुत पैसा लगाया है इसलिए ये उसी का कमरा था। तुम चाहो तो ऊपर वाला स्टोर रुम ले सकते हो। जीजाजी पहली बार खुद को कमज़ोर असहाय महसूस कर रहे थे…. पत्नी भी सीधी सादी थी कोई हाय हल्ला नहीं की और स्टोर को रहने लायक बना लिया।
मगर जीजाजी जब भी पत्नी की तरफ देखते खुद ही उनसे नज़रें नहीं मिला पाते। एक दिन दीदी को बताया कि उन्होंने किराये का मकान ले लिया है हम बहुत जल्द वहाँ चलेंगे। माँ ने सुना तो कुछ नहीं बोलीं।
मगर असली इम्तिहान तो अब शुरू होने वाला था। मकान मालिक महीना पूरा होते ही किराया मांगने पहुँच जाता। किसी तरह किराये का इंतजाम करते तो और जरुरतें मुंह उठा लेंती। दीदी को भी अच्छी गिज़ा की जरूरत थी क्योंकि वो माँ बनने वालीं थीं। फिर बच्चे के आने के बाद तो खर्च बढना ही था।
जीजाजी ने फैसला कर लिया कि वो दूसरे मुल्क कमाने जाएंगे। मगर मसला ये था कि दीदी के साथ कौन रहेगा। उनके जाने बाद कुछ दिन तो दीदी के मम्मी पापा उनके साथ रहने लगे मगर बेटी के घर रहना उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। दीदी ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया था। जीजाजी बहुत खुश थे। जीजाजी की मम्मी भी खुश थीं मगर फिर भी साथ चलने के लिए नहीं बोलीं।
प्रिया की मम्मी या पापा या फिर दोनों आ जाते तो दीदी बहुत खुश और बेफिक्र हो जाती नहीं तो उन्हें रात को ठीक से नींद ही नहीं आती थी।
किसी तरह कुछ साल ऐसे ही बीते। इस बार जीजाजी दो महीने की छुट्टी लेकर आए तो उन्होंने एक घर खरीद लिया। उस दिन सब बहुत खुश थे। प्रिया भी आई थी। उसने पहली बार दीदी को इतना खुश देखा था। उसकी दीदी ने शादी से पहले भी कभी कोई फरमाइश नहीं की थी जितना मिल जाता उसी में खुश हो जातीं।
प्रिया तो शादी के बाद अपने पति के साथ अमेरिका शिफ्ट हो गयी थी। उसकी पूरी फैमली वहीं रहती थी। नरेंद्र से उसने लव मैरिज करी थी। दीदी हमेशा प्रिया को देखकर खुश होतीं कि उसे बहुत अच्छा परिवार और पति मिला है। कभी हसद नहीं किया था। उनको लगता जिसकी किस्मत में जितना लिखा होता है उतना ही उसको मिलता है।
जीजाजी इस बार वापस जाने से पहले दीदी के अकेलेपन को खत्म करने के लिए अपने दोस्त की फैमिली को अपने घर के ऊपर वाला हिस्सा दे दिया। वो लोग बहुत अच्छे थे। मम्मी पापा भी मुतमईन हो गए कि अब भाग भाग कर उन्हें आना नहीं पड़ेगा। मम्मी हंसती कि सब लड़कियां अकेले रहने के लिए परेशान रहतीं है एक उनकी बेटी है अकेले रह ही नहीं पाती।
कहतीं तुम्हारी जगह प्रिया होती तो बड़े आराम से रह लेती तुम पता नहीं इतनी डरपोक कैसे हो गई। दीदी बस मुस्कुरा देतीं।
जीजाजी और प्रिया भी आ गयी थी। वो लोग पकड़े जा चुके थे। जीजाजी की तो दुनिया ही खत्म हो गई थी। इतनी प्यारी मुहब्बत करने वाली साथी चली गई थी और उनका बेटा? नन्हा सा तो था तोतली जबान में उन्हें बुलाता रहता कि वापस आ जाइए। कुछ बातें उनके समझ में आतीं कुछ नहीं आतीं थीं। तब दीदी बताती कि वो क्या बोल रहा है। उसे भी इन लोगों ने…
सख्ती करने पर पता चला कि शुरू में सब ठीक था मगर जब भी जीजाजी पैसे भेजते तो उनके दोस्त की पत्नी रेनू और उनके दोस्त से बहस शुरू कर देती जलन में पागल होने लगती। जीजाजी ने दीदी के लिए कुछ गहने भी खरीद दिए थे और कहते हमेशा पहने रहा करो। पहले तो नहीं बनवा पाया था मगर अब देखना सारे जहाँ की खुशियाँ तुम्हारी कदमों में रख दूंगा। कोई कमी नहीं रखूंगा।
सादा दिल की मालिक दीदी जीजाजी के दोस्त को पत्नी रेनू से सब बता देतीं। उन्हें अपने जेवर दिखातीं, जीजाजी जो पैसे भेजते उनके बारे में बता देतीं। धीरे धीरे वही जलन हसद ने उनके दिल में दीदी के लिए नफरत भर दिया और वो अपने पति से लड़ने लगी थी। पति भी रोज रोज के तानों और लडाई से तंग आ गया था या शायद उसके दिल में भी लालच ने जन्म ले लिया था। उसे भी सबसे आसान लगा वो चोरी कर लेगा। मारने के बारे में तो उसने सोचा भी नहीं था…
जब इस बार जीजाजी ने पैसे भेजे तो दीदी से बोले कि माँ को दे देना दीदी ने बैंक से निकाल कर रख लिया और ये बात लालची लोगों को पता चल गयी। बस फिर क्या उन्होंने प्लान तैयार कर लिया। दीदी जब सो गयीं तब उन ने धावा बोल दिया। दीदी की आंख खुल गई थी और उन्होंने उन दोनों को देख लिया और मुंह से चीख निकल गयी थी। दोनों ने मिलकर उनका मुंह दबाया मगर साथ में नाक भी दब गयी। थोड़ी देर में उन्होंने दम तोड़ दिया। बेटा भी उठ गया था उसने भी देख लिया बस फिर…
जीजाजी खुद को कोस रहे थे कि क्यों उन्होंने दोस्त के ऊपर भरोसा किया। क्यों उनकी पत्नी इतनी मासूम थी मगर कुछ हो नहीं सकता था लालच ने एक परिवार खत्म कर दिया। हसद जलन ने दोस्ती जैसे खूबसूरत रिश्ते को बर्बाद कर दिया। दोस्ती पर से भरोसा उठा दिया था…
मूल चित्र : Saradhi Photography via Unsplash
Arshin Fatmia read more...
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