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और मेरे घर में एक ही हॉट टॉपिक था…मेरी शादी!

बस मम्मी बस! अब और नहीं। क्या चाहतीं हैं आप? घर का काम करुं? शादी कर लूँ? कब करना है? आज? आपका जब दिल करे, आप करवा दीजिए।

बस मम्मी बस! अब और नहीं। क्या चाहतीं हैं आप? घर का काम करुं? शादी कर लूँ? कब करना है? आज? आपका जब दिल करे, आप करवा दीजिए।

“मम्मी! मम्मी…”, नेहा ने अपने कमरे से चिल्ला कर मम्मी को पुकारा।

“क्या है? मम्मी के बिना एक काम नहीं होता तुमसे। कल को ससुराल जाना, वहाँ भी मम्मी को साथ लेकर जाना, नहीं तो बिना मम्मी के काम कैसे चलेगा तुम्हारा…?”

“मम्मी!”

“क्या मम्मी? बस हर वक़्त मम्मी-मम्मी करती रहना। ये नहीं कि काम में मम्मी का हाथ ही बटा दिया करो। मैडम जी को फुरसत कहाँ हैं? सोकर उठेगी, खाएंगी, सीधे कालेज भागेगी वहाँ से, आएगी तो इतना थकी रहती है कि मानो खेत में हल चला कर आई हो।

मैं तो फालतू हूँ। सारा दिन बैठी रहती हूँ। मुझे तो कोई काम ही नहीं होता। तुम बाप-बेटी के आगे पीछे घूमती रहूँ। पागल हूँ मैं? मुझे तो थकान ही नहीं होती? तुम लोगों की फरमाइश ही पूरी करती फिरूं?”

“बस मम्मी बस! आज प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। आज आप मेरी थोड़ी सी हेल्प कर दीजिए आगे से मैं आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करुंगी। बल्कि मैं क्यों, मेरे प्यारे पापा जी भी करेंगे।”

“बड़ी आई पापाजी से मदद लेने वाली। पहले वो अपना काम कर लें और तुम मुझे बेवकूफ ना बनाओ। बात तुम्हारी हो रही है, ससुराल तुमको जाना है, तुम्हारे पापा जी को नहीं।”

“मम्मी! फिर ससुराल! कभी तो कोई और डायलॉग बोल दिया करिए। अच्छा बताइए इसमें से कौन सा सूट सही है? प्लीज मम्मी और कुछ ना कहिएगा। संजू की सगाई है, आज वहाँ से लौट कर आऊंगी ना, तब जो कहना होगा कह लीजिएगा।”

“क्या संजू की भी सगाई हो रही है?” उनको देखकर ऐसा लगा जैसे नेहा ने बम फोड़ दिए हों।

“क्या हुआ मम्मी?”

“आज संजू की भी सगाई हो जाएगी, कल उसकी शादी हो जाएगी, परसों बच्चे…”, वो वहीं बेड पर बैठ चुकीं थीं।

“इतना फास्ट ना करिये सब मम्मी! वो इंसान है। तीन दिन में तो आपने बच्चे भी ला दिए!” नेहा की हंसी ही नहीं रुक रही थी।

“हाँ तो टाइम लगता है, क्या शादी होने के बाद…लेकिन तू ना करना”, उनका पसंदीदा लेक्चर शुरू होने वाला था, जब नेहा ने कमरे से भागने में ही भलाई समझी।

ये उनका पसंदीदा टापिक था। जब देखो शादी और घर के काम को लेकर चिल्लाना शुरू कर देतीं। और नेहा भी एक नंबर की ढीठ हो चुकी थी। लगता था जैसे उसे उनकी बातों का असर ही नहीं होता। पापा जी भी उसी का साथ देते थे। जहाँ मम्मी कुछ कहतीं, पापा फौरन अपनी लाडो का साइड ले लेते और मम्मी के किए कराए पर पानी फिर जाता।

एक दिन मम्मी और पापा दोनों बैठे थे, मम्मी का चेहरा उतरा था। पापा कुछ बता रहे थे शायद।

“आज मेरी खूबसूरत, प्यारी, इस घर की आन-बान-शान माता श्री कुछ उदास दिख रहीं हैं। क्या हो गया? कोई बात है? पापा जी आपने मेरी मम्मी को कुछ कहा?”

“बहुत गलत टाइम में पूछ लिया बेटा”, उन्होंने नेहा से कहा। फिर बोले, “मैं एक फोन करके आता हूँ, यहाँ नेटवर्क सही से नहीं आ रहा है।”

“बैठिये आप! ये सब आपकी मुहब्बत का नतीजा है। आपकी बेटी बेटी है और तो किसी की बेटियां ही नहीं हैं? जितना प्यार आप अपनी बेटी से करतें हैं, उतना तो दुनिया में कोई करता नहीं? ना खुद डाटेंगे, ना मुझे कुछ कहने देते हैं।”

“आप कुछ नहीं कहतीं?”  नेहा ने कुछ बोलना चाहा तो पापा जी ने मुह पर उंगली रखकर खामोश रहने का इशारा किया।

“सबकी शादियां होती जा रही हैं, इसकी खुद की सहेलियों की शादी होती जा रही है मगर ये ना करेंगी, कैरियर बनाएंगी। अच्छी-खासी खूबसूरत शक्ल है अभी। वक़्त के साथ चेहरे से नूर खत्म हो जाएगा, तो जो अभी रिश्ते आ रहें हैं ना, फिर खुद सबसे कहना पड़ेगा रिश्ते के लिए। ना तेरे कुंडली में कोई दोष है, ना तू अनपढ़ है, फिर भी सारे जहाँ की लड़कियों की शादी हो जाएंगी मगर एक मेरी बेटी की ना होगी।

अरे ना करना शादी बस रिश्ता तय करने दो। कितना कहती हूँ घर का काम सीख लो। क्या पता कैसे ससुराल वाले हों? काम आता रहेगा, तो उनका दिल जीतने में आसानी रहेगी। मगर मेरी बात की अहमियत कहाँ है किसी की नज़र में? बाल खोलकर, बैग लटका कर जो बडे़ अदा से बाहर निकल जाती हो ना…”

“बस मम्मी बस! अब और नहीं। क्या चाहतीं हैं आप? घर का काम करुं? शादी कर लूँ? कब करना है? आज? आपका जब दिल करे, आप करवा दीजिए। आप तो चाहतीं ही नहीं कि मैं आप दोनों के साथ रहूँ। आपके प्यार की वजह से मैं दूसरे शहर पढ़ने नहीं गयी और आप मुझे यहाँ से भगाने का ख्वाब देखती रहती हैं! आपका प्यार कम हो गया है मम्मी। आप मुझसे पहले की तरह प्यार नहीं करतीं।

पहले तो कहतीं थीं, मेरी शादी करेंगी तो मैं ससुराल नहीं जाऊंगी, बल्कि लड़का हमारे घर आकर रहेगा। मगर अब आप हमेशा मुझे भेजने के चक्कर में पड़ी रहतीं है। मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी मम्मी। अरे मेरी उम्र ही क्या है? अभी तो मेरे घूमने टहलने के दिन हैं और आप चाहतीं हैं कि मैं घर की चारदीवारी में कैद हो जाऊँ? और हंसना मुस्कुराना छोड़ दूं? फिर एक दिन आप ही रोएंगी कि इतनी भी जल्दी क्या थी मुझे अपनी बेटी को बिदा करने की। और अगर मेरी अपने ससुराल वालों से ना पटी और उन्होंने मुझे वहाँ से भगा दिया तो?” नेहा ने मम्मी के कंधे पर सर रखकर पापा की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा।

“हाय कैसी बातें कर रही है तू? पागलपंती वाली बातें ना किया कर”, मम्मी ने तो दिल पर हाथ ही रख लिया। “मरे तेरे दुश्मन। जान ना ले लूं मैं उन सब की जिसकी वजह से मेरी बेटी को कोई तकलीफ हो?”

“तुम दोनों माँ बेटी एक जैसी हो। पल में तोला, पल में माशा। कल किसी के रिश्ते के बारे में सुनना तो फिर तुम शुरू हो जाना अपनी गाथा लेकर। थोड़ा सब्र से काम लो सब सही होगा एकदिन। तुम्हारी बेटी की भी शादी होगी, उम्र नहीं निकल गयी उसकी।

पापा की बात पर मम्मी उस वक़्त तो खामोश हो गयीं थीं, मगर उनको पता था कल से या शायद कुछ घंटे बाद ही वो फिर शुरू हो जाएंगी।

मूल चित्र : Canva Pro 

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