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लड़कियों पर पाबंदी लगाने से अच्छा है कि…

वे लोग जब मेला में घूम रही थीं तो भैया को अपने दोस्तों के साथ लड़कियों पर कमेंट्स करते देखा। उसके भैया सामने बहनों को देख अचंभित थे।

वे लोग जब मेला में घूम रही थीं तो भैया को अपने दोस्तों के साथ लड़कियों पर कमेंट्स करते देखा। उसके भैया सामने बहनों को देख अचंभित थे।

राधिका बचपन से ही अलग सोच रखती थी। जब लड़कियों से कहा जाता था कि बाहर अकेले मत जाओ। खिड़की के पास खड़े मत रहो। छत पर अकेले मत घूमो। ऐसे कपड़े मत पहनो। ऐसे जोर जोर से मत बोलो। ऐसे चलो वैसे नहीं। राधिका का मन विद्रोही हो जाता था।

वह सोचने लगती थी कि सारी पाबंदियां लड़कियों पर ही क्यों? लड़कों पर सिर्फ इतनी सी पाबंदी कि रात होने से पहले घर चले आओ। अगर लड़कों को बचपन से ही सिखाया जाय कि लड़कियों की इज्ज़त करो तो क्या लड़कियों पर पाबंदी लगाने की ज़रूरत होगी?

वह अक्सर माँ से कहती थी कि औरतें पति को परमेश्वर क्यों समझती हैं? क्या पति में कोई दोष नहीं होता? मर्द होने के कारण वह दोषरहित हो गया? माँ मुस्कुरा कर रह जाती। क्योंकि उसके पास जिंदगी का एक लंबा अनुभव था।

वह पुरुषसत्तात्मक समाज को अच्छी तरह जानती और समझती थी। उसके मन में भी ये सब भाव आते होगें। पर उसने परिस्थिति से समझौता कर लेना ही बेहतर समझा। पर राधिका समझौता करना नहीं चाहती थी। ऐसा नहीं था कि जब उसे भी पाबंदियों में रहना सिखाया जाता, वह बड़ों की बात नहीं मानती। वह बड़ों की हर बात उनका मान रखने के लिए मान लेती थी। पर उसके मन में विचारों का अंधड़ चलता रहता था।

उसकी सहेली ने बताया था कि उसके भैया उसे और उसकी बहन को बाहर घूमने यानि शौपिंग करने या सहेलियों के घर आने जाने नहीं देते थे। उन दोनों बहनों पर बहुत पाबंदियां लगाते थे।

एक बार उसकी दीदी की कुछ सहेलियाँ दुर्गा पूजा में मेला घूमने के लिए बुलाने आयीं। सहेली के पापा ने उन दोनों बहनों को मेला घूमने की इजाजत दे दिया। वे लोग जब मेला में घूम रही थीं तो भैया को अपने दोस्तों के साथ लड़कियों पर कमेंट्स करते देखा। उसके भैया सामने बहनों को देख अचंभित थे। बहनों के सामने लज्जित होने की जगह घर आकर उसने बहनों को खूब डाँटा, “तुम लोगों को मना करता हूँ कि बाहर ज्यादा मत घूमो। तब तुम लोग क्यों गई थी?” ये सरासर ज्यादती है।

राधिका का पति उस पर शासन करने वाला नहीं, उस पर पाबंदियां लगाने वाला नहीं, बल्कि उसे हमसफर मानने वाला मिला। राधिका ने पति को परमेश्वर नहीं, दोस्त माना और अपने मन की हर बात वह पति को बेधड़क बता कर निश्चिंत हो जाती। उसके पति पत्नी की बात का सम्मान करते और उस पर भरोसा करते। दोनों के गृहस्थी की गाड़ी प्यार से आगे बढ़ती रही। उसे रिश्ते को निभाने के लिए समझौता नहीं करना पड़ता।

लड़कियों पर पाबंदी लगाने से अच्छा है कि लड़का और लड़की में भेदभाव खत्म करो। बेटा और बेटी दोनों को समान परवरिश देनी चाहिए। धीरे धीरे ये बदलाव आ रहा है। पर अभी भी बहुत जगह लड़कों को सब करने की छूट है वहीं लड़कियों पर पाबंदियों का ताला लगाया जाता है। विचारों में बदलाव लाना अभी भी बहुत जरूरी है।

मूल चित्र : DrRave from Getty Images Signature via Canva Pro

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