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मैं रंजनी(आनंदित) हूँ, रजनी(रात)नहीं, मैं, अब सिर्फ मैं हूँ, किसी की अब मैं कोई प्रवंचना नहीं। मैं राही हूँ अपने ही मंज़िल का...
मैं रंजनी(आनंदित) हूँ, रजनी(रात)नहीं, मैं, अब सिर्फ मैं हूँ, किसी की अब मैं कोई प्रवंचना नहीं। मैं राही हूँ अपने ही मंज़िल का…
सफ़र है सुहाना, पथरीली डगर है, पर मंज़िल अभी तुम नहीं हो। राहो में है कांटे, पैरों में मधुर लहू बहे, पर मंज़िल अभी तुम यहां नहीं हो।
मंजर है साफ कहीं दूर है लेकिन, आज भी आंखो में बस दूर तुम कहीं और खड़े हो, धूधली सी है छाया, कैसी है यह माया, सब कुछ है पर अभी भी तुम पास नहीं हो।
मंज़िल को खोजते निकले थे छोटे रास्तों पे, पता ना था यह मिलो दूर का चयन जो, वो खुद का बहम था पर वो अभी तुम नहीं हो। थक हार बैठ, उदास बैठ, आंखो में हो रहे ओझल कई जिंदगी के सवाल ले बैठा।
मैं पार्थी हूं किस राही का, जो मुझे कोहरा सा दिख रहा, ना दिखती मिलो रोशनी अब बस अंधेरा सा दिखा रहा, हराता हूँ, टुटता हूँ, बिखरता हूँ, मैं, अब खुद का ही मैं जाने क्यों काल निकला।
याद आई जब प्रथम चरण की फिर वही आगाज़ निकला, मैं हूँ, अपने कुल श्रेष्ठ का जिम्मा, जिसका मैं हमेशा बन के अभिमान निकला, हर घड़ी में उसके ही प्रतिनिधित्व का मान निकलना।
हारूँ कैसे, रोऊं कैसे, रुक जाऊं कैसे, यह प्रथा मेरे कुल की कभी नहीं थी, मैं गर्जना हूँ, याचना नहीं, मैं उमंग हूँ, मै कोई दुखी वेदना नहीं हूँ।
मैं वीर रस हूँ, अब मैं कोई विरह वेदना नहीं, मैं रंजनी(आनंदित) हूँ, रजनी(रात)नहीं, मैं, अब सिर्फ मैं हूँ, किसी की अब मैं कोई प्रवंचना नहीं।
मैं राही हूँ अपने ही मंज़िल का, सारथी हूँ अपने ही सवारी का, मैं अहंकार हूँ, मैं ही ललकार हूँ, मैं था समस्या अब मैं खुद ही उसका समाधान हूँ, मैं पार्थी हूण अपने ही मंज़िल का, मैं अभिमान हूँ अपने ही कूल का।
मूल चित्र : Karthik Pillai via Pexels
Occupation -Lawyer , Blogger, Author, Social activities, " If my view at any one person to intratect and understanding my inner surface how to I explained and why I explained this is too much for me" ((कोई भी बदलाव एक ही दिन नहीं होता, उसके लिए सदिया जगनी पड़ती है)) ।।रंजनी श्रीमुख शांडिल्य।। read more...
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