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अब बस भी करो ससुराल के नाम पर मुझे डराना…

हमें एक घर चाहिए, एक ऐसा घर जिसे इस बात से फर्क नहीं पड़े कि वह मायका है या ससुराल लेकिन इस बात से फर्क पड़े कि मैं वहां मैं बन कर रह पाऊँ।

हमें एक घर चाहिए, एक ऐसा घर जिसे इस बात से फर्क नहीं पड़े कि वह मायका है या ससुराल लेकिन इस बात से फर्क पड़े कि मैं वहां मैं बन कर रह पाऊँ।

बात बस इतनी सी ही थी। माँ चाहती थी कि मैं उनके साथ बाज़ार जाऊं और मैंने उनसे कहा कि मैं थक गयी हूँ। उनका जवाब था, “अच्छा देखती हूँ, ससुराल जाती हो तो ज़रा से काम के लिए कैसे कहती हो कि थक गयी हूँ।”

बात बस इतनी सी ही थी। लेकिन इस इतनी सी बात ने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया। तो क्या ससुराल ऐसी जगह है जहाँ थकना भी मना है? हमें बचपन से इतना डराया क्यों जाता है ससुराल के नाम पर? गोया ससुराल न हुआ बामशक्कत कैद की सजा हो गयी! रोजमर्रा की बातचीत में इतने तरह के जुमले सुनने को मिलते हैं जिनका जवाब नहीं!

  • इतनी देर से सोकर उठती हो, ससुराल में कैसे संभालोगी सब?
  • दो घंटे से टी वी देख रही हो? देख लो, देख लो! ये सुख ससुराल में नहीं मिलने वाला। 
  • हर बात का तुरंत पलट कर जवाब देती हो? ससुराल में कैसे खपोगी?
  • जितना पढ़ना है अभी पढ़ लो। शादी के बाद पढ़ने का मौक़ा नहीं मिलेगा। 
  • रंग ढंग तो देखो इस लड़की के! ससुराल में नाक कटा देगी हमारी!

मतलब शादी के बाद मैं पढ़ नहीं सकती, सो नहीं सकती, टी वी नहीं देख सकती, गुस्से या दुःख का इजहार नहीं कर सकती तो फिर ससुराल जाना ही क्यों है?

जिन्दगी का मतलब यह तो नहीं होता कि कोल्हू के बैल की तरह दिन रात मशक्कत करते रहो।  सुकून से बैठ कर सुस्ताना, अपने शौक पूरे करना, अपने पसंद के काम करना कोई पाप तो नहीं है।

ये मैं हूँ, एक जीती जागती इंसान। हवा में सांस लेती, लोगो से बातें करती, लिखती पढ़ती, जिन्दगी के तमाम थपेड़ों से जूझती ये मैं हूँ। मेरे अपने ख्वाब हैं, अपने शौक हैं, जीने का अपना तरीका है, अपना सलीका है। अपनी अनगढ़ता, अपनी लापरवाही और अपने बेलौसपन के साथ ये मैं हूँ।

मेरा अस्तित्व शादी, पति या ससुराल के पहले है। दुनिया को ऐसा क्यों लगता है कि सात फेरे लेते समय मुझे उस हवन कुंड में खुद को और खुद के वजूद को भी स्वाहा करना होगा और  फेरों के बाद जो लड़की पति के साथ गठबंधन किये ससुराल जायेगी वह लड़की नहीं बल्कि एक कोडेड सॉफ्टवेर होगी जो अपने काम में एकदम माहिर होगी।

जाने इस एक बद्ख्याली का खामियाजा कितनी लड़कियों को भुगतना पड़ता है। भाई माफ़ करो मुझे तो। बाज़ आऊँ मैं तो ऐसे ससुराल से जहाँ सांस लेना भी मुश्किल लगे। अब बस भी करो घर को सुधार गृह और ससुराल को मिलिट्री कैम्प बनाना।

यकीन मानें हमें एक घर चाहिए, एक ऐसा घर जिसे इस बात से फर्क नहीं पड़े कि वह मायका है या ससुराल लेकिन इस बात से फर्क पड़े कि मैं वहां मैं बन कर रह पाऊँ। अगर आप वह घर नहीं दे पा रहे हैं, तो कम से कम हमें बेकार की नसीहतें और फिजूल के डरावने सपने तो न दिया करें।

मूल चित्र : rvimages from Getty images Signature via Canva Pro

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