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हर्षद मेहता के फर्श से अर्श और अर्श से फर्श की कहानी 'स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी' एक महिला पत्रकार के ज़ज्बे को भी दर्शाती है।
हर्षद मेहता के फर्श से अर्श और अर्श से फर्श की कहानी ‘स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी एक महिला पत्रकार के ज़ज्बे को भी दर्शाती है।
निर्देशक हंसल मेहता, शेयर मार्केट के अमिताभ बच्चन हर्षद मेहता की कहानी दस एपिसोड जो कमोबेश 50 मिनट की है पिछले दिनों सोनी लिव पर रिलीज़ हुई। नामी-गिरामी एक्टरों के जमघट नहीं होने के कारण सीरिज अधिक चर्चा में नही है। जिन्होंने भी इस सीरिज को देखा होगा उनको यह कहानी एक महत्वकांक्षी लड़के हर्षद मेहता की कहानी लगेगी क्योंकि पूरी कहानी उसी के आस-पास चलती भी है।
मुझे यह कहानी केवल हर्षद मेहता की कहानी नहीं लगती है। यह कहानी मुझे उस महिला पत्रकार सुचेता दलाल और देबाशीष बसु की भी लगती है जिनकी किताब ‘द स्कैम’ है। जो आर्थिक पत्रकारिता की दुनिया में आती है और स्कैम शब्द को मुख्यधारा मीडिया का हिस्सा बनाती है। वे हर्षद मेहता पर पहली स्टोरी को ब्रेक करती हैं जिसमें 500 करोड़ की हेराफेरी को उजागर करती है, जिससे दिल्ली की संसद तक हिल जाती है।
वे टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण से सवाल करती हैं ,“कॉमन मैन एक विमेन क्यों नहीं होती है।’ आर के लक्ष्मण थोड़ा रूककर बोलते हैं , ‘विमेन कॉमन नहीं स्पेशल होती हैं ,इसलिए वो कॉमन विमेन नहीं होती है।’
सुचेता दलाल जब हर्षद मेहता के सीबीआई गिरफ्तारी के बाद जब उनकी पत्नी से मिलती हैं, तो वह कहती हैं, “आपको नहीं पता आपके पति को क्यों गिरफ्तार किया गया है?” वह एक आम गृहणी महिला है जिसे अपने पति हर्षद मेहता के हेराफेरी के बारे में कुछ नहीं पता है और वह कहती है, “क्या मेरे पति आतंकवादी या भगौड़े हैं जो सब उसके पीछे पड़े हुए हैं?” यह कहानी उस सुचेता दलाल की भी है जो हर्षद मेहता के साथ स्कैम में साझेदार और सीबीआई के मुख्य गवाह के आत्महत्या या हत्या की खबर जब बधाई के रूप में सुनाती है तो हिल जाती है क्योंकि उसको लगता है इसके पीछे वो जिम्मेदार है।
यकीन मानिए एक महिला पत्रकार के लिए यह बिल्कुल आसान नहीं रहा होगा। वे फिर भी नहीं रूकी और अपने सच को पकड़कर आगे बढ़ती जाती है। वे इस सच को भी सामने लाती है कि कैसे मनी मार्केट और शेयर मार्केट भारतीय नौकरशाही और आरामतलबी का फायदा उठाकर लाखों लोगों के पैसे से अपना व्यारा-न्यारा करती है। इस सबके पीछे सत्ता का एक मजबूत तंत्र भी पीछे से सूत्रधार के तरह काम करता है और हर्षद मेहता जैसे महत्वकांक्षी नवयुवकों के साथ अपना फायदा बनाते हैं।
जिन्होंने सुचेता दलाल और देबाशीष बसु की किताब द स्कैम नहीं पढ़ी है, खासकर पत्रकारों ने, उन्हें स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी ज़रूर देखनी चाहिए कि किस तरह एक महिला पत्रकार पुरुषों के वर्चस्व वाले आर्थिक पत्रकारिता में कदम रखती है और स्ट्रांग गट फिलिंग पर अपने सोर्स पर भरोसा करके सच्चाई के तह तक उतरती है और आर्थिक दुनिया के नामचीन लोगों की सच्चाई का पर्दाफाश करती है। पत्रकारों के लिए यह पूरी सीरिज किसी प्रेरणा से कम नहीं है।
मुझे यह लगता है कि सुचेता दलाल ही वह पत्रकार हैं जो आर्थिक दुनिया में हो रही हलचलों के तरफ आम आदमी का ध्यान ही नहीं लाती है बल्कि अखबार के दसवे-बारहवें पेज की खबर को हेडलाइन तक लाने की सूत्रधार भी बनती हैं। यकीन मानिए यह आसान काम नहीं होता है पत्रकारिता के दुनिया में।
कहा यह भी जा सकता है कि स्कैम 1992 – द हर्षद मेहता स्टोरी भारत के सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की सरकारी तोते या पिजरें में बंद पोपट की भी है। इस स्कैम में प्रधानमंत्री का नाम आता है तो वह चौक जाती हैं और स्वतंत्र जांच एजेंसी होकर भी सरकारी निर्देश पर काम करने लगती हैं। यह भी कह सकते है कि यह वेबसीरीज रिजर्ब बैक आंफ इंडिया की भी कहानी है जो शुरूआत से ही हर्षद मेहता और बैंक के साठ-गाठ से करोड़ों के मुनाफे की सारी कहानी जान रही होती है पर सिर्फ गाइंडलाइन्स जारी करने के अलावा कुछ नहीं कर पाती और सब कुछ होते देखती रहती है।
निर्देशक हंसल मेहता ने स्कैम 1992 – द हर्षद मेहता स्टोरी को इस तरह से पेश किया है कि शेयर मार्केट और मनी मार्केट के बारे में अधिक जानकारी नही होने के बाद भी बांधे रखती है जिससे दर्शको को निराशा नहीं होगी। एक साधारण युवा जिसके पिता कपड़ों के बिजनेस में असफल हो जाते हैं उनके बेटे के सपने बड़े है। वो शेयर मार्केट के तरफ रूख करता है और चीते की तरह छलांग मारता है। फिर एक झटका उसको जमीन पर ला पटक देता है। अपने भाई के साथ मेहता फिर नई शुरूआत करता है। पहले शेयर मार्केट में झंडे गाड़ता है फिर मनी मार्केट में कूदता है। जहां उसको अमिताभ बच्चन, कपिल देव और आंइसटीन तक कहा जाता है।
कामयाबी के रेस में वह सत्ता-व्यवस्था में बैठे लोगों के नज़र में आ जाता है मनी-मार्केट और शेयर मार्केट के दुश्मन तो पहले से थे ही। वह कब नेताओं के हाथ का खिलौना बन जाता है उसे पता ही नहीं चलता, उसके बाद वह अर्श से फर्श पर गिरता है। हर्षद मेहता के फर्श से अर्श और अर्श से फर्श तक के सफर की कहानी दस एपीसोड में हंसल मेहता ने बहुत ही साधारण तरीके से बुनी है जो रोचक होने के साथ-साथ सटीक अभिनय के कारण पसंद आती है। हर एक किरदार अपनी भूमिका मे इतना जीवंत है कि किसी एक का नाम लेना बेमानी है।
अंत में देश के चर्चित और सबसे बड़े वकील स्व.राम जेठमलानी जो कई बड़े मामलों में वकालत करते थे का वीडिओ आता है जो कहता है “यह हर्षद मेहता स्कैम नहीं है, इट्स अ पी.वी. नरसिम्हाराव स्कैम।” हर नागरिक के लिए जरूरी है कि वह देश के इस इतिहास को जाने। गर्व और शर्म के क्षण को महसूस करे, इतिहास सिखाता है, इतिहास के सबक से हम अपने भविष्य को बेहतर बना सकते हैं। आज हमारी पत्रकारिता जैसे हाल में कराह रही है उसके लिए तो यह सीरिज बेमिसाल है जब मात्र आठ सौ शब्दों का एक स्कूप आरबीआई, बैंक और सरकार तक की नींद उड़ा देता है।
मूल चित्र : YouTube, Still from the Series
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