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मेरे लिए शादी सिर्फ एक रिवाज़ या बंधन नहीं…

ऐसा नहीं है कि शादी का महत्व बिलकुल समाप्त हो गया है। बस शादी के मूल्य बदल चुके हैं। आज सिर्फ इज्जत पाने तथा दिखावे के लिए कोई शादी नहीं करना चाहता।

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ऐसा नहीं है कि शादी का महत्व बिलकुल समाप्त हो गया है। बस शादी के मूल्य बदल चुके हैं। आज सिर्फ इज्जत पाने तथा दिखावे के लिए कोई शादी नहीं करना चाहता।

भारतीय समाज में शादी का कितना महत्व है हम सभी जानते हैं। आज भी यहाँ एक अविवाहित व्यक्ति को असफल माना जाता है। हम मैं से कुछ लोगों को यह बात हास्यास्पद लग सकती है लेकिन यह एक सच है। आजकल का युवा इस प्रथा को मानने के लिए तैयार नहीं है और इसीलिए दो पीढ़ियों के बीच विवाद होने लगा है। 

एक समय था जब शादी करना उतना ही महत्वपूर्ण होता था जितना कि खाना लेकिन समय बदला और धीरे धीरे शादी को लेकर लोगों की धारणा में भी बदलाव आया। अरेंज मैरिज की जगह लव मैरिज ने ले ली और लोगों ने शादी के उददेश्य को समझना शुरू किया है। 

अगर आज की बात करते हैं तो आज हाल यह है कि विभिन्न रिसर्च में पाया गया है कि आज कल का युवा शादी को कुछ खास महत्व नहीं देता है। कुछ का कहना है कि शादी एक अनावश्यक बोझ की तरह है और वह भविष्य में कभी भी शादी नहीं करना चाहेंगे और कुछ का मानना है कि आर्थिक रूप से स्थिर होने के बाद ही वो शादी के बारे में विचार करेंगे।

अक्सर हम देखते हैं कि माता पिता आज की पीढ़ी की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है कि आज के बच्चे जिम्मेदारियों से भागते हैं इसलिए वो शादी जैसे बड़े निणय लेने से डरते हैं लेकिन कहीं न कहीं सच्चाई यह है कि उनकी बात सही नहीं है। आज कल के वो युवा, जो 17-18 जैसी आयु में ही अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार हो जाते है उनके लिए यह कहना कि वो जिम्मेदारी से भागते हैं बिल्कुल भी न्यायसंगत नहीं है।

हाँ, यदि वहीं युवा शादी जैसे निर्णय लेने में डरते हैं तो उसके पीछे कुछ कारण हैं।

हमारे यहाँ हमेशा से शादी को एक ज़रूरी प्रथा माना जाता है। न जाने कितने बच्चों ने अपने माँ बाप की असफल शादीयां देखी हैं परंतु उनको यह बताया गया शादी करना समाज में रहने के लिए बहुत आवश्यक है और आज जब वही युवा समाज बना रहे हैं तो वो ऐसी कोई प्रथा नहीं बनाना चाहते जो उनकी आजादी या खुशियों पर बंदिश लगाए।

असल में युवा शादी की उस परिभाषा को बदलना चाहते हैं, वो शादी को एक जबरदस्ती की प्रथा मान कर आगे नहीं बढ़ाना चाहते बल्कि वे उसको एक खुशी का माध्यम बनाना चाहते हैं।

अगर सिर्फ लड़कियों की बात की जाऐ तो ज्यादातर का मानना है कि शादी आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद ही करनी चाहिए। वैसे तो ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिन्होंने शादी के बाद भी अपना करीयर बनाया है और ऊंचाइयों को छुआ है परन्तु यह बात भी कहीं न कहीं सही है कि शादी के बाद एक लड़की की जिम्मेदारीयाँ बढ़ जाती हैं तो वह करीयर पर उतना ध्यान नहीं दे पाती हैं।

दूसरी तरफ आज भी कुछ ऐसी लड़कियां हैं जो अपने करीयर को किनारे रख कर हाउसवाइफ बनना चाहती हैं उनका मानना है कि उनकी डिग्री और उनका टैलेंट कोई नहीं छीन सकता और यदि भविष्य में आवश्यकता पड़ती है तो वह अपने बलबूते पर कुछ ना कुछ अवश्य कर लेंगी।

मुझे लगता है दोनों ही अपनी अपनी जगह सही हैं। नारीवाद या फेमिनिज्म का अर्थ भी यही है। शादी को लेकर सोच में बदलाव आना तो स्पष्ट सी बात है। जहाँ पहले शादी लड़की का भविष्य सँवारने का एक तरीका माना जाता था वहां आज लड़कियां खुद अपने भविष्य बना रहीं हैं।

आज हम उस युग में आ चुके हैं जहाँ शादी किसी के जीवन का उददेश्य तो नहीं हो सकता है। तो कोई भी यूँ ही किसी के साथ शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहते। वो पूरी तरह से आश्वासित होना चाहते हैं कि वो एक सही इंसान के साथ शादी में बंधने जा रहे हैं और उसके लिए लिव इन जैसी प्रथायें ज़्यादा प्रचलित हो रही हैं। 

लेकिन अभी भी ऐसा नहीं है कि शादी का महत्व बिलकुल समाप्त हो गया है। बात बस यह है कि शादी के मूल्य बदल चुके हैं। आज सिर्फ समाज में इज्जत पाने तथा दिखावे के लिए कोई शादी नहीं करना चाहता।

युवा शादी की कोई एक उम्र नहीं मानते। उनको लगता है कि शादी तब ही करनी चाहिए जब वो व्यक्ति खुद तैयार हो। और वैसे भी बाघी स्वभाव कहिए या कुछ और लेकिन आज कल की जेनेरेशन खुद को समाज के बंधन में किसी भी कीमत पर नहीं बांधना चाहती।

मूल चित्र : rv images from Getty Images Signature via Canva Pro

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