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उनकी बेटी का तालक़ हुआ है इसलिए हम वहाँ रिश्ता नहीं करेंगे…

इन बातों का असर कहीं ना कहीं सरिता के दिमाग पर भी था। शादी कर के ससुराल आयी, तो अंकिता को देखते उसकी हँसी ही गायब हो जाती।

इन बातों का असर कहीं ना कहीं सरिता के दिमाग पर भी था। शादी कर के ससुराल आयी, तो अंकिता को देखते उसकी हँसी ही गायब हो जाती।

“कान खोल के सुन लो! मैं शादी नहीं करूँगी उस घर में अपने बेटी की। समझे? चाहे तुम जो भी कहो, उनकी बेटी तलाक ले के मायके में है। सारी उम्र मेरी बेटी के सिर पे रहेगी। देखने में ही तेज है। चेहरे पे तो मुस्कुराहट ही नहीं।” शीला जी ने अपने पति अवधेश जी से कहा।

“हमें उससे क्या मतलब?”

“परिवार तो कितना सज्जन है और अंकित कितना शांत और संस्कारी हैं। तुम बात को समझो…सरिता की माँ।”

“नही! मैं अब कुछ नहीं सुनना चाहती। अंकित की माँ भी इस दुनिया में नहीं है, इस कारण पूरे घर पे तो उसका ही राज ही होगा। सब उसकी ही सुनेंगे। बड़ी बहन जो है।”

“पर मैंने तो हां बोल दिया है। सरिता और अंकित ने भी एक दूसरे को पसंद किया है। तो क्या बोल के मना करूँगा? मुझे तो अब कुछ समझ नहीं आ रहा…”, अवधेश जी ने कहा।

“जैसे राजा दशरथ हैं आप? जो वचन दे दिया तो वापिस नहीं ले सकते। गलती उनकी है। तब हमें उन्होंने हमें ये बात क्यों नहीं बतायीं? वरना इतना आगे बढ़ती ही ना बात। वो तो हमारी किस्मत अच्छी थी, जो समय रहते पता चल गया”, शीला जी ने कहा।

“कल उन्होंने बुलाया है शादी से जुड़ी बाकी बाते करने के लिए। तो क्या कारण बताऊंगा? तुम भी हद करती हो। वो अपना जॉब करती है। बैंगलोर रहती है। तो इस बात से क्या फर्क पड़ता है?”  अवधेश जी ने बोला।

“लेकिन मुझे पड़ता है। बस! मुझे कुछ और नहीं सुनना जिंदगी भर पछतावा करने से अच्छा है अभी मना कर दें।”

अगली सुबह अवधेश जी अंकित के घर गए। ये सोच के कि शादी से मना कर देंगे। पर अंकित और अंकित के परिवार के नम्र व्यवहार से इतना प्रसन्न हुए की मना नहीं कर पाए। शादी का दिन, तारीख सब तय हो गयी।

घर आ के अवधेश जी ने जैसे ही ये बात शीला जी को बतायी वो उन पर बरस पड़ी। तब अवधेश जी ने कहा, “सुनो सरिता की माँ! मैं भी सरिता का पिता हूं और उसकी भलाई ही सोचूँगा। तुम बेकार में ही गलत सोच रही हो।”

“ठीक है, पर कल को कोई बात हुई तो अच्छा नहीं होगा समझ लेना।”

सरिता और अंकित की शादी सकुशल सम्पन्न हुई। पर पूरी शादी में शीला जी की निगाह सिर्फ अंकित की बहन अंकिता पर ही थी। सरिता के परिवारवालों और रिश्तेदारों की नज़रों में अंकिता एक घमंडी और परिवार तोड़ने वाली महिला का चरित्र बन गया था जिसने अपनी शादी तोड़ दी। सभी को डर था कि कहीं इस बात का असर अंकित और सरिता के रिश्ते पर ना पड़े।

इन बातों का असर कहीं ना कहीं सरिता के दिमाग पर भी था। शादी कर के ससुराल आयी, तो सबसे अच्छे से मिली। लेकिन अंकिता को देखते उसकी हँसी ही गायब हो जाती।

कुछ दिनों बाद अंकिता बैंगलोर चली गई। अंकिता के जाने के बाद सरिता कि माँ का फ़ोन आया।जैसे ही उनको पता चला कि अंकिता चली गयी है। वो बहुत खुश हुई। और बोला, “बेटा! अब घर और अंकित को जितना जल्दी अपना बना सके उतना अच्छा है।”

“हाँ मां। तुम सही कह रही हो। अब तो मुझे भी लगता है। आपके दामाद तो अपनी बहन को माँ के बराबर सम्मान देते हैं। अच्छा रखती हूं। पापा जी के चाय का समय हो गया है”, कहते हुए सरिता ने फ़ोन रख दिया।

सरिता के अंदर एक अलग ही युद्ध चल रहा था। जहाँ दिल कहता कि अंकित तो कहता है कि जो दीदी ने हम लोगों के लिए किया वो किसी भी लड़की के लिए कर पाना मुश्किल होता। और दिमाग दुनिया की बातें मानता कि नहीं दीदी कहीं अच्छा होने का दिखावा तो नहीं करती? सोचते हुए चाय उबल के गिर गयी, “ये क्या हो गया है मुझे। क्यों उस बात को इतना सोच रही हूं? अब तो दीदी चली गयी हैं। और अंकित और पापा जी मुझे कितना प्यार करते है। पापा जी भी मुझ में और दीदी में कोई फर्क नहीं करते।” ये हर दिन की लड़ाई सरिता ख़ुद ही खुद से लड़ती।

अगली सुबह अंकित और सरिता एक साथ चाय पी रहे थे कि तभी अंकित ने कहा, “सरिता तुम्हें  पता है, तुलसी और अदरक की चाय तो दीदी बहुत अच्छी बनाती हैं।” इतना सुनते ही सरिता के चेहरे का रंग उड़ गया।

“अच्छा! मुझे पुरानी बातें सुनने और जानने का कोई शौक़ नहीं, समझे।”

अंकित ने कहा, “मैं तो सिर्फ तुमसे शेयर कर रहा थाऔर तुम दीदी का नाम सुनते ही अजीब सा बर्ताव क्यों करती हो? तुम्हें पता भी हैं वो मुझसे 12 साल बड़ी हैं। जो कुर्बानी उन्होंने मेरे लिये, पापा के लिये और इस घर के लिए दी है, वो दूसरी लड़कियां सोच भी नहीं सकतीं।”

“ओह प्लीज़! मुझे ना महान बनने का शौक है, ना किसी की महानता सुनने का। तो प्लीज! अगली बार से हम इस विषय पे ना ही बात करे तो अच्छा होगा। मैं जा रही हूं, मुझे बहुत काम है।”

“ठीक है जाओ। लेकिन इतना सुनती जाओ कि तुमसे आज के बाद दीदी के बारे में कभी बात नहीं  करूंगा। लेकिन इतना जरूर समझ लेना, अपने इस व्यवहार के लिए तुमको एक दिन बहुत पछतावा होगा। रही बात मेरी दीदी की तो उनकी जगह इस घर में और हमारे दिलों में कोई नहीं ले सकता।”

सरिता इतना सुन के चली आयी। लेकिन फिर उसके अंतर्मन की लड़ाई शुरू हो गयी। क्यों गुस्सा आ गया मुझे? क्या होता जा रहा है मुझे?

कुछ दिनों बाद  सरिता को पता चला कि वो माँ बनने वाली है तो बहुत खुश हुई। उसने ये बात अंकित को जब बतायी। वो भी बहुत खुश हुआ ।उसने अपने पापा को और दीदी को भी ये बात बताई। सब बहुत खुश थे।

अंकिता अंकित को फ़ोन पे समझा रही थी कि सरिता का पूरा ध्यान रखना। उसकी पसंद ना पसंद का भी अच्छा और हेल्थी खाने के लिए कहना, “और जब भी जरूरत हो मुझे बता देना मैं आ जाऊँगी।”

लेकिन इधर सरिता नहीं चाहती थी कि उसकी डिलीवरी के समय अंकिता घर पे रहे। तो उसने अंकित से अपने घर जाने की जिद की। किसी का भी मन नहीं था सरिता को मायके भेजने का।

अंकित ने कहा, “लेकिन सरिता मैं चाहता हूं कि हमारा बच्चा, यहीं जन्म ले और यहाँ सब कुछ तो है। घर के कामों के लिए नौकर हैं। फिर दीदी ने बोला तो है कि दाई माँ को वो साथ ले के आएंगी।वो हमारे घर को बहुत अच्छे से जानती हैं। हम सब के जन्म के समय थीं वो। वो बुजुर्ग और हमारे घर के सदस्य के जैसी हैं।”

“नहीं अंकित घर के जैसे होने और घर वाले होने में फर्क होता है। अगर तुम्हारी मम्मी होती तो मैं  नहीं जाती। प्लीज! मुझे जाने दो।”

“ठीक है। जैसा तुम ठीक समझो।”

सरिता अपने मायके चली गयी। वहाँ उसकी डिलीवरी हुई और उसने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। सभी मिलने आये। अंकित,अंकिता और उसके बाबूजी । सब ने बच्चे को बारी-बारी गोद में लिया। पर जैसे ही अंकिता ने लेने के लिये हाथ बढ़ाया, सरिता बोली, “अब बस कीजिए। उसको मुझे दीजिये, उसके दूध पीने का समय हो गया है और डॉक्टर ने भी ज्यादा छूने से मना किया है।”

जैसे ही अंकित बोलने को हुआ, अंकिता ने अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, “हाँ अंकित सरिता सही कह रही है। दे दो उसे बेबी को।” अंकित लाचार नजरों से दीदी की तरफ देख रहा था। उसने बच्ची सरिता को दे दी।

कमरे से बाहर निकलते ही उसने बोला, “दीदी मुझे माफ़ कर दो।”

“पर क्यों छोटे?”

“दीदी वो सरिता के व्यवहार के लिए।”

ओह्ह… तू भी ना अभी बच्चा ही है। कोई बात नहीं, हर माँ को अपने बच्चे की चिंता होती है। और पहली बार में कुछ ज्यादा ही होती है।” अंकिता को पता चल चुका था कि सरिता उसे पसंद नहीं  करती।

दोनों भाई बहन को बातें करते सरिता की माँ ने सुन लिया। और जा के सरिता को बताया, “बेटा तेरी ननद तो बड़ी तेज है। खुद का ससुराल तो संभाल ना सकी और दामादजी को समझा रही थी, जैसे एक बच्चे की मां को। बहुत चालाक है। बच के रहना।”

कुछ दिनों बाद सरिता ससुराल आ गयी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। सरिता को मदद करने के लिए अंकिता दाई माँ को रख के गई थी। तो बिना परेशानी के सब कुछ अच्छे से हो जाता।

छ: महीने की हो गयी थी अंकित की बेटी। तब अंकिता घर पे आ गयी। अंकित ने बताया था, “दीदी अब हमारे साथ ही रहने वाली हैं। और इनका ट्रांसफर भी इसी शहर में हो गया है।”

अंकित के चेहरे पे खुशी थी लेकिन सरिता की खुशी गायब हो गयी थी। वो किसी ना किसी बहाने से बेटी को उसके पास जाने से रोक देती। ये अब हर रोज की बात हो गयी थी।

इधर कुछ दिनों से रह रह कर सरिता को तेज बुखार आ रहा था उसकी तबीयत ठीक नहीं रह रही थी। एक दिन अंकित ने कहा, “फिर से बुखार आया? तुमको चलो डॉक्टर को बता देते हैं।”

लेकिन सरिता को नार्मल थकावट की वजह से लग रहा था। तभी अंकिता भी वहाँ आ गयी और उसने जोर दे के बोला, “चुपचाप जा के डॉक्टर को दिखाओ। बिना डॉक्टर को दिखा ये दावा खाने से दस और बीमारी पकड़ लेगी।” सरिता को आज पहली बार अंकिता ने तेज़ आवाज़ में बोला।

सरिता डॉक्टर के पास गई तो पता चला उसको टी वी हो गया है। और उसे छ: महीने अपनी बच्ची से भी दूर रहना होगा। सरिता को चिंता होंने लगी।अब क्या होगा मेरी बेटी का? कैसे सब कुछ होगा? उसने सोचा ना अब मायके जा सकती है, ना ही मम्मी को बुला सकती है।

ये सब सोचते हुए अंकित और सरिता घर पहुंचे। देखा तो पीहू बुआ की गोदी में थी। अंकित ने जब ये बात घर मे बतायी। तो अंकिता ने सरिता के सिर पे हाथ रखते हुए बोला, “चिन्ता मत करो।हम सब मिल के सब ठीक कर लेंगे। अपना ध्यान रखो। पीहू को मैं संभाल लूंगी।”

सरिता को समझ नहीं आ रहा था कि जिसको इतने दिनों तक वो हर चीज़ से दूर करने की सोच रही थी, आज सब कुछ वही संभाल रही हैं। सरिता को टाइम से दवा देना और उसके सारे काम अंकिता ही करती। अब सरिता की सोच अपनी ननद के लिए बदलने लगी थी। लेकिन हर बार अंतर्मन का युद्ध शुरू हो जाता। आखिर ये इतनी अच्छी हैं तो इनका तलाक क्यों हुआ?

छ: महीने हो चुके थे। अब सरिता ठीक हो चुकी थी। अब सरिता का नजरिया भी अंकिता के लिए बदलने लगा था। तभी शाम की चाय ले के अंकित कमरे में आया तो सरिता ने अंकित से कहा, “अंकिता दीदी कितनी खुश होती हैं पीहू के साथ। अच्छा!सुनो कल मैं ऑफिस नही जाऊंगा। कल मुझे दीदी के साथ कोर्ट जाना है।”

“कोर्ट! लेकिन क्यों?”

“कल इस केस का फाइनल हो जाएगा। कल का केस दीदी जीत जाए, तो मेरे मन का बोझ हल्का हो जाएगा।”

“मतलब! कैसा केस?”

“सरिता तुमको पता है माँ को ब्लड कैंसर हो गया था और देखभाल करने वाला भी कोई नहीं था।अगर उस समय दीदी नहीं होतीं, तो मैं और पापा कुछ नहीं कर पाते। जैसे ही ये बात दीदी को पता चली, दीदी ने जीजाजी को ये बात बताई और बोला कि जब तक माँ बीमार हैं मैं उनके साथ रहना चाहती हूँ। पर जीजाजी दीदी को आने से मना करने लगे। दीदी के जिद करने पर उन्होंने बोला कि  मुझमें या अपनी माँ में किसी एक को चुनना होगा।

तब दीदी ने माँ को चुना। और बोला अगर मैं एक बेटी का धर्म नहीं निभा पायी तो, पत्नी का भी नहीं  निभा पाऊँगी। तो जीजा जी ने एक साल के बेटे को रख लिया। और दीदी को तलाक देने का फैसला किया। कोर्ट में दीदी पे तरह तरह के इल्जाम लगे। कल उस के कस्टडी का फैसला आने वाला है।”

“तो तुमने ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?”

“तुम सुनना ही कहाँ चाहती थीं दीदी के बारे में कुछ कि मैं तुम्हें कुछ बताता?”

आज सरिता अंकिता के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि उनकी खुशी उन्हें मिल जाये। उसको मन हो रहा था कि उनके गले लग के माफी मांग ले। आज अपनी ही नज़रो में सरिता शर्मिंदा थीं। किसी ने सच ही कहा जाता है बिना पूरा सच जाने किसी के बारे में कोई धारणा नही बनानी चाहिये।

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मूल चित्र : Still from short film Dwand, YouTube

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