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मैं तीज त्यौहार पर व्रत रखूँ या नहीं, यह सिर्फ मेरी इच्छा पर निर्भर करेगा! 

घरेलु हिंसा, मानसिक शोषण और एक ख़राब शादी, कोई भी चीज़ उन्हें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए किसी भी तीज त्यौहार पर व्रत करने से नहीं रोकती।

घरेलु हिंसा, मानसिक शोषण और एक ख़राब शादी, कोई भी चीज़ उन्हें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए किसी भी तीज त्यौहार पर व्रत करने से नहीं रोकती।

अनुवाद : सेहल जैन

मैं अपने पति की लंबी उम्र के लिए तीज त्यौहार पर व्रत नहीं रखती तो इससे बहुत लोगों को तकलीफ़ होती है। क्या मेरी पसंद कुछ मायने नहीं रखती? कुछ हफ़्तों पहले हरतालिका तीज का त्योहार था। यह त्यौहार शिव और पार्वती के मिलने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे कई किस्से और कहानियाँ है और जल्द ही महिलाओं ने इस दिन या किसी भी तीज त्यौहार पर व्रत करके अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करने की प्रथा बना दी।

मैंने बचपन से ही अपनी माँ, मौसी, चाची और अन्य पड़ोसी महिलाओं को अपने पति की लम्बी उम्र के लिए ख़ुशी ख़ुशी भूखे रहते हुए देखा था। मैं भी पूरे उत्साह से साथ प्रसाद बनाने, मेहंदी लगवाने, खेलने और रात तक होने वाले नाच गाने में हिस्सा लेती थी। अपनी माँ के हाथ का खाना खाकर ही यह त्यौहार ख़त्म होता था। यह त्यौहार बहुत ही मज़ेदार और हंसी और नाचे गाने से पूरा होता था।

महिलाओं की तीज त्यौहार पर व्रत न करने की इच्छा

जैसे जैसे में बड़ी होती गयी, मैंने देखा की बहुत सी महिलायें व्रत नहीं करना चाहती, फिर भी समाज के डर से करती आ रहीं है। मुझे उनका व्रत करना काफी व्यंगात्मक लगता था। घरेलु हिंसा, शारीरिक दर्द, मानसिक शोषण और एक ख़राब शादी, कोई भी चीज़ उन्हें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत करने से रोकने में अक्षम थी।

मेरा अक्सर यह सवाल होता था की पति अपनी पत्नियों के लिए व्रत क्यों नहीं रखते? पर इसे बहुत ही क्रांतिकारी मन जाता था।  खैर, यह तो एक अलग ही मुद्दा है। मेरी शादी के बाद न तो कभी मेरे मन में अपने पति की लम्बी उम्र के लिए हरतालिका तीज का व्रत या और कोई व्रत करने का विचार आया और सुकून की बात तो ये है की मेरी सास ने भी कभी मझसे कोई व्रत रखने को नहीं कहा। और तो और उन्होंने मेरे व्रत न करने का कारण भी कभी नहीं पूछा।

मेरे और मेरी सास के व्रत ना रखने से सबको काफी तकलीफ़ हुई

बाद में मुझे पता चला की मेरी सास ने भी कभी हरतालिका तीज का व्रत नहीं रखा था। मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई की में कोई निराला काम नहीं कर रही। मैं खुश थी और मेरे परिवार को इससे कोई परेशानी नहीं थी।

परेशानी तो जब शुरू हुई जब सबने मेरे पत्नी होने पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।  जैसे – ‘तुम व्रत क्यों  नहीं रखती?’ ‘साल में एक ही बार तो रखना होता है’ ‘क्या तुम अपनी शादी में खुश नहीं हो?’ ‘क्या तुम अपने पति की लम्बी उम्र नहीं चाहती?’ ‘तुम्हें  व्रत रखना चाहिए’ आदि। और सबसे रोचक सावल तो मेरे साथ काम कर रहे व्यक्ति की महिला ने किया, ‘क्या तुम इससे शादी नहीं करना चाहती थी? कोई और चक्कर था क्या?’ इस सवाल से में हतप्रभ रह गयी। साल दर साल ये सवालों की लिस्ट बढ़ती चली गयी।

पहले मैंने इन सवालों को चुनौतियाँ माना

शुरुआत में बहुत सालों तक, मैंने इन सभी सवालों का जवाब एक चुनौती समझकर दिया। मैं अपना नज़रिया सबको बताना चाहती थी। मैं कहती, “वो भी व्रत नहीं रखता”, “मैं सावन और जन्माअष्टमी  पर व्रत रखती हूँ”, “मैं भी अपने परिवार की ख़ुशी के लिए प्रार्थना करती हूँ”, “मेरे परिवार ने मुझे कभी व्रत रखने को नहीं कहा” आदि।

सुनने वाले मुस्कुरा के चले जाते थे। पर फिर मुझे समझ आने लगा की में दूसरों के व्यवहार को तो नियंत्रित नहीं कर सकती, पर अपने जवाबों को तो नियंत्रित कर सकती हूँ। वैसे भी, ऐसे संकुचित मानसिकता वाले लोगों के प्रति मेरी कोई जवाबदारी नहीं हो। और मैं कितने भी जवाब दे दूँ, ये सवाल कभी ख़त्म नहीं होंगें। इसलिए अब मैंने सिर्फ न करके कंधे उचकाके वहाँ से चले जाना सीख लिया है।

पर इस सब के बाद भी मेरा तीज त्यौहार पर उत्साह कम नहीं हुआ है

इतना तिरस्कार सहने के बाद भी मेरे मन में पता नहीं कैसे, उनके प्रति पूरा आदर और सम्मान है जो इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करते है। मैं तो हर साल हरतालिका तीज की तस्वीरों का बेसब्री से इंतज़ार करती हूँ जिससे मेरी फोन की गैलरी मेरी बेहेन के मेहंदी वाले हाथों से, माँ की बनारसी साड़ी से और भाभी के ज़ेवरों के फोटो से भर जाए।

मुझे इन सबको देख कर  बहुत खुशी होती है। ज़िन्दगी इन्ही खूबसूरत पर मुश्किल फैसलों और इच्छाओं का नाम है। जब कोई चीज़ हम अपनी इच्छा से करते हैं तो उसके प्रति हमारा समर्पण थोपी हुई चीज़ो से ज्यादा होता है। पर महिला होने के नाते हमें बचपन से यह सिख्या जाता है कि सब तीज त्यौहारों का पालन हमें ही करना हैं – बिना ये सोचे और विचारे की हम क्या चाहते हैं।

हमारे ऊपर थोपा हुआ ये पक्षपात हमारी इच्छा से बड़ा कैसे हो जाता है? जैसे जैसे समय बदल रहा है, मैं ये उम्मीद करती हूँ की हम एक दिन ये तीज त्यौहार बिना किसी माँ, बहन और बीवी पर बिना सवाल उठाये माना पाएंगे। ये सभी रीति रिवाज़ हमारे जीवन का एक हिस्सा है, हमारा जीवन नहीं। मैं उस दिन का इंतज़ार करती हु जब ये त्यौहार सभी को सामान रूप से स्वीकार करेंगे।

तो जीन पॉल सत्र के शब्दों में, ‘हम वही हैं जो हमारी पसंद है’ आइये अपनी पहचान का अभिवादन करें और ख़ुशियाँ मनायें।

नोट : शिल्पी प्रसाद का ये लेख अंग्रेजी में यहां पब्लिश हुआ

मूल चित्र : rvimages from Getty Images Signature via Canva Pro

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Shilpee Prasad

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