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आज ज़िन्दगी को फिर से ढूंढते हैं…

चलो हंसने की वजह ढूंढते हैं, जिधर ना हो कोई गम ऐसी जगह ढूंढते हैं! बहुत भटक लिए ज़िन्दगी के दौड़ में, कहीं सुकून से बैठने की जगह ढूंढते हैं!

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चलो हंसने की वजह ढूंढते हैं, जिधर ना हो कोई गम ऐसी जगह ढूंढते हैं! बहुत भटक लिए ज़िन्दगी के दौड़ में, कहीं सुकून से बैठने की जगह ढूंढते हैं!

चलो हसने की कोई वजह ढूंढते हैं,
जिधर ना हो कोई गम ऐसी जगह ढूंढते हैं!
बहुत भटक लिए ज़िन्दगी के दौड़ में,
कहीं सुकून से बैठने की जगह ढूंढते हैं!

मतलबी लोगों के बीच,
कोई साथ चलने वाला हमसफ़र ढूंढते हैं!
अनजान सी गलियो में कहीं,
मंज़िल को पाने का रास्ता ढूढते हैं!

दूर हुए दोस्तों के साथ,
मुलाकात करने की वजह ढूंढते हैं!
किसी अनजान की मदद कर,
उसके मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं!

बहुत उड़ लिए आसमान में,
चलो कहीं जमीन पर सतह ढूंढते हैं!
रात के अंधेरों में,
चांद की रोशनी ढूंढते हैं!

जीने की कशमकश में,
खुशियों की लहर ढूढते है!
वीडियो कॉल के जमाने में,
अपने से मिलने की कोई वज़ह ढूंढते हैं!

ऑनलाइन खाना मंगा के खाने के चलन में,
कभी खुद बनाने का मौका ढूंढते हैं!
खुद की ख्वाहिश को पीछे रख,
कभी मां बाप की खुशियों की वजह ढूंढते हैं!

मन की उलझनों से उभरकर,
चलो कहीं चैन से रहने की जगह ढूंढते हैं!
बहुत वक्त गुजर गया भटकते हुए अंधेरों में,
चलो इस अंधेरी रात की हम सुबह ढूंढते हैं!

मूल चित्र : avid_creative from Getty Images Signature via Canva Pro

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