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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और संतकवि सियारामशरण गुप्त की पोती अभिजीता गुप्ता अपनी किताब से अब बन गयी हैं 'वर्ल्डस यंगेस्ट ऑथर'...
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और संतकवि सियारामशरण गुप्त की पोती अभिजीता गुप्ता अपनी किताब से अब बन गयी हैं ‘वर्ल्डस यंगेस्ट ऑथर’…
सभी परिस्थियों में ख़ुशी ढूंढ लेना एक कला है जो हम सभी को आनी चाहिए। उम्मीद पर विश्वास करके अभिजीता ने आज इतनी कम उम्र में इतना ऊँचा पड़ाव हासिल किया है और अपने देश, समाज और परिवार का नाम रोशन किया है।
जहाँ सभी ओर कोरोनावायरस के फैलने से माहौल में अशांति और भय फ़ैल गया है और सभी लोग नाउम्मीद हो रहे हैं, वहीं 7 वर्षीय अभिजीता गुप्ता ने इस माहौल में उम्मीद और ख़ुशी को ढूंढने का प्रयास किया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और संतकवि सियारामशरण गुप्त की पोती अभिजीता को अपनी किताब ‘हैप्पीनेस आल अराउंड’ के लिए सबसे युवा लेखक के अवार्ड से नवाज़ा गया है।
अभिजीता अपने माता पिता के साथ गाज़ियाबाद में रहती हैं और उनके मन में बचपन से ही कला और रचना की छाप है। इस किताब में उनकी स्वरचित कविताओं का एक संकलन है जिसके साथ उन्होंने चित्रकारिता भी करी है। यह सारी कविताएँ उन्होंने कोरोनावायरस महामारी के बीच में लिखी हैं और भारतीय बुक ऑफ़ रिकार्ड्स के अनुसार वो गद्य और पद्य लिखने वाली सबसे युवा लेखिका हैं। अंतर्राष्ट्रीय बुक ऑफ़ रिकार्ड्स ने उनको ‘वर्ल्डस यंगेस्ट ऑथर’ के खिताब से नवाज़ा है और एशिया बुक ऑफ़ रेकॉर्डस ने उन्हें ‘लेखन में ग्रांडमास्टर’ का पद दिया है।
उनके माता पिता के अनुसार, उन्होंने 5 वर्ष की उम्र से लेखन प्रारम्भ कर दिया था और सकारात्मक रहने के लिए उन्होंने कोरोनावायरस के समय इस शौक को पंख दे दिए। अभिजीता का कहना है कि उन्हें छोटी से छोटी चीज़ें प्रेरणा देती हैं। वह सभी देखी , सुनी और महसूस करी सभी सकारात्मक चीज़ों के बारे में लिखती हैं। 7 वर्षीय इस बच्ची के मन में कितनी सकरात्मकता और रचनात्मकता है यह उसकी किताब पढ़के अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
इस उदाहरण से हम यह समझ सकते हैं कि बालमन पर किन किन चीज़ों का असर पड़ता है। बचपन से उनके माता पिता नियम से उनके साथ किताबें पढ़ते थे। वह उन्हें सभी चीज़ों के सकरतात्मक पहलु के बारे में बताते रहते थे। इस आदत से उनके मन पर रचनात्मकता और सकारात्मकता की गहरी छाप छोड़ी है और उनका रुख अभिव्यक्ति की ओर किया है। अपने दादा और अंकल के साथ वह क्लिनिक विजिट पर भी जाती थीं जिससे उनके मैं में अपने दादा और अंकल की तरह पेडिअट्रिशन बनकर गरीबों की मदद करने की भावना जाएगी।
रचनात्मकता से व्यक्ति में संवेदनशीलता आती है। यह हम अभिजीता के जीवन में भी देख सकते हैं। इतनी छोटी उम्र में दूसरों के दुःख को समझने की संवेदना उनकी रचनात्मकता की देन है। अपनी किताब से होने वाले सभी मुनाफे को वो गरीबों की मदद करने में लगाना चाहती हैं।
हम सभी को अभिजीता गुप्ता, वर्ल्डस यंगेस्ट ऑथर, से सकारात्मकता की सीख लेनी चाहिए और अपने आप को नाउम्मीद नहीं होने देना चाहिए। आज के इस कोरोनावायरस के समय में शरीर को स्वस्थ रखने से भी ज्यादा ज़रूरी है मन को सवस्थ रखना। सकारात्मक मानसिकता रखने से हमारे शरीरी की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और इस समय रोग के प्रतिरोध के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है।
अभिजीता की सुन्दर कविताओं और रचनात्मक कलाकृतियों से हमें सीख लेनी चाहिए और नकारत्मकता को अपने जीवन से बहार कर देना चाहिए। सभी परिस्थियों में ख़ुशी ढूंढ लेना एक कला है जो हम सभी को आनी चाहिए। उम्मीद पर विश्वास करके अभिजीता ने आज इतनी काम उम्र में इतना ऊँचा पड़ाव हासिल किया है और अपने देश, समाज और परिवार का नाम रोशन किया है। एक उम्मीद की किरण जीवन को कैसे रोशन कर देती है यह हम देख सकते हैं।
चित्र साभार : India Today
Political Science Research Scholar. Doesn't believe in binaries and essentialism. read more...
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