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जब भी मैं मनु को फोन करती तो या तो उसकी सास या संकेत फोन उठाकर कहते हैं कि 'बिजी है, थोड़ा बाद में कर लेगी बात', और फोन काट देते।
जब भी मैं मनु को फोन करती तो या तो उसकी सास या संकेत फोन उठाकर कहते हैं कि ‘बिजी है, थोड़ा बाद में कर लेगी बात’, और फोन काट देते।
“आज लता जी खुश थीं, आज उन्होनें अपनी बेटी मान्यता को न्याय दिलवा दिया था पूरे 1 साल बाद। लता जी जानती थीं कि बेटी को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया है। ख्यालों में थी वह कि तभी लता जी के कन्धे पर रमा जी ने हाथ रखा। वे मान्यता की बुआ थीं। वे बोलीं, “मुझे भी माफ कर दो लता, मान्यता की गुनहगार तो मैं भी हूँ! मैं उसके नजदीक रहकर भी उसे ना बचा पाई।”
“नहीं नहीं दीदी, आप तो मनु का भला ही चाहती थीं! आपको भी कहाँ पता था, कि वे लोग ऐसे होंगे? बस किस्मत को और कुछ मंजूर था”, लता जी बोलीं और चाय बनाकर अपने कमरे में चली गईं।
अभी तो पैदा हुई थी मेरी मनु। कितने मन्नतों के बाद भी वो मेरी गोद में आई थी। छोटी-छोटी अंगुलियां मेरे गाल पर रखी थी उसने, सारे दर्द भूला बैठी थी मैं। अपनी तुतलाती जबान से ठीक से माँ भी नहीं बोल पाती थी। पैरों पर पैर रखकर चलना सीखी थी वह। कोई भी गलती हो जाने पर पापा के पीछे छुप जाया करती थी और पापा ढेरों खिलौनों की लाइन लगा देते थे। पापा की लाडली जो थी।
स्कूल जाने पर कितना रोई थी वह! और साथ में मैं भी, कभी अकेली बाहर ना जाती थी वह। स्कूल, कॉलेज जब हुआ तब सारी बातें आकर बताती थी मुझे। बहुत प्यार करती थी हमें, बहुत जल्दी सभी काम सीख जाती थी वह। सिलाई, कढ़ाई सब में तेज थी वह। पढ़ाई में हमेशा प्रथम स्थान लाती थी।
मनु हमेशा से ही निडर लड़की थी, लडकों से कम नहीं थी। कभी रमा दी कह भी दे, “लता एक लड़का होता तो अच्छा होता।” मनु यह सुनकर हमेशा कहती, “बुआ जी मैं अपनी मम्मी पापा के बेटे जैसी ही हूँ! कम नहीं हूँ किसी से।” कॉलेज में भी लड़कियों के हक के लिए लड़ जाती थी वह। मैं बोलती भी थी कि बेटा मत किया करो ये सब, तो हमेशा कहती, “माँ अगर हम डर गये सबसे, तो दुनिया और डरायेगी।” सही भी थी वह।
कॉलेज खत्म होने के बाद हमें उसकी शादी की चिंता सताती रहती थी। वह हमेशा पूछती, “माँ मेरा दूल्हा कैसा होगा?” और मैं बोलती, “बिल्कुल तेरे पापा जैसा!” और वह खुश हो जाती। कुछ दिनों बाद मनु की बुआ उसके लिए एक रिश्ता लाई, जो कि उनके पड़ोसी थे। बुआ जी ने कहा वे बहुत ऊँचे और प्रतिष्ठित लोग हैं।
मनु के पापा तो मना ही कर रहे थे कि इतने बड़े लोग हैं और हम उनके जैसे नहीं। हमारी बेटी कैसे करेगी?” पर दीदी बोलीं, “मैं जानती हूं, अच्छे और सभ्य लोग हैं वो।”
फिर मैनें मनु से बात की और वह तैयार हो गयी। दीदी बोलीं, “लड़के का नाम संकेत है और उसका अपना बिजनैस है और 2 घर हैं। हमारी बेटी राज करेगी।
रविवार के दिन संकेत अपने मम्मी पापा के साथ आ गया और उन लोगों ने मेरी मनु को पसंद कर लिया। लग भी सुंदर रही थी मनु गुलाबी साड़ी में। 2 महीने के बाद हमने दोनों की शादी करा दी। बहुत खुश थी मेरी लाडो। उसकी पंसद का लंहगा, ज्वेलरी सभी ली थी। अपनी हिम्मत से ज्यादा खर्च किया था उसकी शादी पर।
मेरी मनु विदाई के वक्त बहुत रोई थी और मुझे बोलीं, “आई हेट टीयर्स लताजी।”
हम बहुत खुश थे कि हमारी बेटी को अच्छा ससुराल मिला था। जब वह पगफेरे पर आई थी, लाल साड़ी में राजकुमारी लग रही थी और बहुत खुश भी थी वह संकेत के साथ। फिर 4 महीने बाद उसने हमें खबर दी कि वह माँ बनने वाली है, खुशी के मारे पूरे मोहल्ले में मिठाई बांट आई थी मैं। फोन पर मनु सब बताती ही थी मुझे। पर कहते हैं ना खुशियों को नजर लग जाती है, मेरी खुशी को मेरी ही नजर लग गयी।
कुछ दिनों से जब भी मैं मनु को फोन करती तो या तो उसकी सास या संकेत फोन उठाकर कहते हैं कि ‘बिजी है, थोड़ा बाद में कर लेगी बात’, और फोन काट देते। ऐसा तो कोई ज्यादा काम भी नहीं है कि वहां गिने चुने लोग हैं। सास ससुर और दादी जिनकी सेवा के लिए पायल नाम की लड़की रहती है। मैं मनु के पापा से बोलती। वे कहते, “होगी कहीं बिजी, चिंता मत करो।” पर मैं तो माँ हूँ, चिंता तो होगी और दिल भी घबराता उसे लेकर।
और फिर वही हुआ जिसका डर था, एक दिन मनु का फोन आया वह हड़बड़ी में फोन कर रही थी और बोली, “माँ मुझे बचा लो, ले जाओ यहां से।” इतना कहकर फोन कट गया।
मैं घबराकर मनु के पापा को बोली, “मनु का फोन आया! कुछ बात जरूर है। हम फ़ौरन निकल गये, लेकिन रास्ते में फोन आया कि आप हास्पिटल आ जाओ मान्यता एडमिट है। हम गिरते पड़ते वहां पहुंचे और देखा कि हमारा संसार उजड़ गया है। मेरी मनु दुनिया छोड़ के जा चुकी थी। हम दोनों धम्म से वहीं गिर गये। उसके ससुराल वाले बोले सीड़ियों से उतरते वक्त गिर गयी वह और यह सब हो गया।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था उन पर और फिर मनु का फोन। मनु के जाने का सदमा उसके पापा को बर्दाश्त नहीं हुआ और उनको अटैक आ गया था। मैं बिल्कुल टूट गयी थी और अकेली भी, हम सभी तरफ से हार चुके थे कि तभी मनु के यहाँ काम करने वाली पायल ने एक चिठ्ठी मुझे दी और बोली दीदी ने देने को कहा। पर मैनें देने में देर कर दी। वह मनु की चिट्ठी थी, उसमें उसने लिखा था…
प्यारी माँ,
मैं आपकी मनु।
आप तो बोली थीं कि बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं और ये लोग तो नहीं मानते हैं। आप लोगों की तरह प्यार नहीं देते हैं। पहले सब ठीक था लेकिन जब से मैं प्रेगनेंट हुई तो सासू माँ ने जबरदस्ती यह पता लगाया कि मेरी कोख में क्या है और जब से पता चला लड़की है, ये सब उसे मारने के लिए लगे हैं। बोलते हैं लड़के से ही वंश आगे बढ़ेगा और संकेत भी उनका साथ देते हैं और कभी-कभी मारते भी हैं। मैं बहुत रोती हूँ माँ और आपको याद करती हूँ। इन्होंने फोन भी छीन लिया है मेरा। माँ मैं बहुत लड़ी अपने लिए पर ये नहीं समझे। आपको और पापा को मारने की धमकी तक देते हैं। माँ तुम तो बोली थीं, मेरा दूल्हा पापा जैसा होगा पर, मेरा दूल्हा पापा जैसा नहीं है। माँ मुझे और मेरी कोख को बचा लो माँ।”
आपकी मनु।
मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गयी, मैनैं और मनु के पापा ने उनपर केस कर दिया। वे लोग पैसे वाले थे। बड़ी मुश्किलें खड़ी कीं, हमें डराया धमकाया, पर मैं नहीं पीछे हटी। हमारे पास सबूत नहीं थे, लेकिन फिर पायल ने गवाही दी कि तनु दीदी बहुत अच्छी थी। सारा दिन हंसते हुए काम करती थीं। लेकिन जब से इन लोगों को पता चला का वह बेटी को जन्म देने वाली हैं, ये सब उन्हें बच्चा गिराने को बोलने लगे। वो विरोध करतीं, तो उन्हें मारते थे और नींद की गोलियां देते ताकि वे इनके खिलाफ आवाज न उठा सकें। उन्होंने भागने की कोशिश की तो बहुत मारा था उनको। डॉक्टर ने मना भी किया की समय ज्यादा हो चुका है अब नहीं होगा, लेकिन इन्होंने जबरदस्ती अबॉर्शन करा दिया, जिससे ज्यादा रक्तस्राव के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
मैं और मनु के पापा दोनों रो रहे थे और जज साहिबा ने जब चिठ्ठी पढ़ी उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने उसके ससुराल वालों को आजीवन कारावास और उस डॉक्टर का लाइसेंस रद्द करने का फैसला किया। उन्होंने मेरी बेटी को पूरे 1 साल बाद इंसाफ दिया, लेकिन उसका क्या वह तो जा चुकी थी और अपने साथ अपनी नन्ही सी जान को भी ले गयी थी। शादी के 1 साल में ही चली गयी थी। वह कभी हारने वालों में से नहीं थी और वह पर समाज की सोच के आगे हार गयी थी।
मैं आप सबसे पूछती हूँ, क्या गलती थी मनु की? यही कि वह लड़की पैदा करती या वह खुद एक लड़की थी। उसकी सास भी तो औरत ही थी फिर भी? मैनें मनु को इंसाफ दिला दिया और आगे भी मनु जैसी बेटियों को इंसाफ दिलाती रहूंगी, पर मैं अपनी बेटी की कोख नहीं बचा पाई, क्योंकि समाज में फैली कुरीतियों की भेंट चढ़ गयी थी वह।
प्रिय दोस्तों, नमस्कार आज की ये कहानी, कैसी लगी आप बताएं। अच्छी लगे तो कमेन्ट करें, अपने अपनों से शेयर करें और लाइक करें। मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है, अगर किसी को मेरे शब्दों से बुरा लगे तो क्षमाप्रार्थी हूँ।
#अबबस
चित्र साभार : Kailash Kumar from Getty Images via CanvaPro
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