कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मैं सिर्फ आपकी बहु नहीं, बेटी भी हूँ माँ…

दस साल की बच्ची के मुँह से ये सुन रूपा को बहुत गुस्सा आया, "बिहेव योर सेल्फ सलोनी। वो दादी हैं तुम्हारी और जरुरी नहीं जो नानी करें वही दादी भी करें तुम्हें।"

दस साल की बच्ची के मुँह से ये सुन रूपा को बहुत गुस्सा आया, “बिहेव योर सेल्फ सलोनी। वो दादी हैं तुम्हारी और जरुरी नहीं जो नानी करें वही दादी भी करें तुम्हें।”

रूपा के ससुर जी की अकस्मात् मृत्यु के बाद रूपा की सास को रूपा अपने साथ ले आयी थी। वैसे भी अकेले उम्र के इस पड़ाव में उनका गाँव में रहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था।

रूपा और उसके पति विनय दोनों ही अच्छी जॉब में थे। उन दोनों की एक दस साल की बेटी थी सलोनी। दिल्ली में अपना फ्लैट था। साल में एक दो बार गाँव भी आते जाते रहते थे। रूपा और विनय के कई बार कहने पर भी रूपा के सास-ससुर दिल्ली उनके पास रहने नहीं आये जबकि विनय इकलौता बेटा था उनका। उन्हें अपनी गाँव की आबो-हवा और खुले वातावरण के आगे महानगर के फ्लैट में बंद होना नहीं पसंद था।

दो दिन भी बीमारी में ही रूपा के ससुर जी चल बसे कोई कुछ समझ या कर ही नहीं पाया। सारा कर्म कांड होने के बाद घर पे ताला लगा विनय अपनी माँ (राधा ) को ले कर दिल्ली आ गया।

बेटे के घर अपनी पोती के साथ राधा जी का मन बहल जाता, समय निकल रहा था। एक दिन सब की छुट्टी थी तो विनय ने बाहर खाना खाने का प्लान बना दिया। सब तैयार हो निकले रेस्टोरेंट के लिये। रेस्टोरेंट के बाहर बहुत से आइसक्रीम और गुब्बारे वाले भी खड़े थे। जब तक रूपा और विनय कार पार्क कर के आते,  सलोनी गुब्बारे के लिये मचलने लगी।

“दादी एक गुब्बारा दिला दो प्लीज। मम्मा नहीं दिलाती मुझे गुब्बारे, आप दिलाओगी तो वो गुस्सा भी नहीं होंगी प्लीज दादी मान जाओ।”

राधा जी परेशान हो गईं। पैसे तो थे ही नहीं उनके पास जो वो अपनी पोती की इस छोटी सी ख्वाईश पूरी कर पातीं।

जब तक पति थे उनसे पैसे ले लेती थीं खर्चों के लिये। लेकिन यहाँ दिल्ली आने के बाद सारे खर्च रूपा या विनोद करते थे। पति साधारण किसान थे तो कोई पेंशन भी नहीं थी। राधा जी आँखों में आंसू झलक उठे। आज पति के जाने के बाद पहली बार खुद को इतना लाचार महसूस कर रही थीं।

बेटा बहु से कुछ मांगने में उन्हें शर्म आती और जरुरत की सारी चीज़ें वे लाते ही थे। किसी बात को कोई कमी ना होने देते दोनों, लेकिन हाथ खाली थे उनके। इतने पैसे भी नहीं थे कि अपनी ख़ुशी से अपनी पोती को कुछ दिला सकती थीं। बहुत शर्म भी आ रही थी कि बच्ची ने एक गुब्बारा माँगा वो भी ना दे पायी। क्या सोचेगी कैसी दादी है मेरी?

तब तक रूपा और विनय भी आ गए। सलोनी अपने पापा को देख उनसे गुब्बारे दिलाने की ज़िद करने लगी। सलोनी को गुब्बारे दिला सबने खाना खाया। रूपा को राधा जी थोड़ी उदास सी लग रहीं थीं।

‘माँ उदास सी क्यों लग रही है?  शायद बाबूजी की याद आ गई होगी।’ ये सोच रूपा ने उस वक़्त कुछ पूछना उचित ना समझ चुप रह गई।

घर लौटते लेट हो गया, “चलो सलोनी जल्दी से कपड़े बदल सोने चलो। आज तुम्हारा बैग मैं सेट कर देती हूँ नहीं तो कल नींद नहीं खुलेगी”, इतना कह रूपा ने सलोनी को उसके रूम में भेज दिया और खुद जल्दी से कपड़े बदल सलोनी का बैग सेट करने लगी।

“मम्मा एक बात पूछूं?”

“हाँ पूछो बेटा, लेकिन जल्दी से पूछ कर सोने चलो।”

“दादी बहुत कंजूस हैं। एक गुब्बारा नहीं दिलाया मुझे। उल्टा गुब्बारा नहीं दिलाना पड़े, इसलिए  रोनी सूरत बना ली। मेरी तो नानी कूल हैं, जो बोलो वो झट से दिला देती हैं और कितने गिफ्ट्स भी देती हैं। दादी तो कुछ भी नहीं देती।”

दस साल की बच्ची के मुँह से ये सुन रूपा को बहुत गुस्सा आया, “बिहेव योर सेल्फ सलोनी। वो दादी हैं तुम्हारी और जरुरी नहीं जो नानी करें वही दादी भी करें तुम्हें।”

“तुम्हें नानी का गिफ्ट याद है, लेकिन दादी का प्यार नहीं दिखता? दो लोगों की तुलना कभी नहीं करते, चलो सो जाओ अब और आइंदा ये मैं नहीं सुनना चाहती।”

अपनी मम्मा को गुस्सा करते देख सलोनी ने झट से सॉरी बोला और सोने चली गई। रूपा की नींद उड़ चुकी थी सारा माजरा अब वो समझ चुकी थी और अपने बेवकूफी पर बहुत शर्मिंदा भी थी।

अगले दिन विनय और सलोनी को स्कूल और ऑफिस भेज रूपा भी ऑफिस के लिये रेडी हो गई और जाते वक़्त राधा जी के हाथों में कुछ पैसे दे बोली, “ये रख लीजिये माँ। कहीं कुछ जरुरत पड़े तब काम आयेंगे।”

“लेकिन मुझे क्या जरुरत होगी बहु? सब कुछ तो है घर में”, राधा जी सकुंचा के बोलीं।

“फिर भी माँ। कुछ नहीं तो सलोनी को आइसक्रीम खिला दीजियेगा या फिर शाम को अपने पार्क की सहेलियों के साथ चाय पार्टी कर लीजिएगा।”

“लेकिन बहु मैं… ”

“क्यों माँ विनय देते तो भी आप माना करतीं क्या? नहीं ना? फिर मैं भी तो आपकी बेटी हूँ और आपकी बहु भी कमाती है माँ। अपनी माँ को एक बेटी अपने पैसे तो दे ही सकती है। अब मना मत कीजियेगा माँ, नहीं तो मुझे बहुत दुःख होगा।”

कांपते हाथों से राधा जी ने पैसे ले लिये और अपनी बहु को गले लगा ढेरों आशीर्वाद दे दिये उनके दिल की बात जो उनका बेटा ना समझ सका आज उसे बहु ने जान लिया था।

प्रिय पाठक, हाथखर्च की जरुरत तो इंसान को हर उम्र में होती है। अपने पोते पोती को एक चॉकलेट भी जब दादी नानी खुद से दिलाती है तो एक अलग ही आनंद का अनुभव होता है। पति के जाने के बाद अगर पेंशन भी ना हो तो एक औरत ले लिये बहुत कठिन हो जाता है, जैसे राधा जी के लिये हो गया लेकिन उनकी बहु ने उनकी दिल की बात भांप लिया और बात संभाल ली। लेकिन राधा जी जैसी सब की किस्मत नहीं होती।

आशा है कहानी पसंद आयी होगी अपना प्यार लाइक, कमेंट और फॉलो करके दे किसी भी त्रुटि के लिये माफ़ी चाहूंगी।

चित्र साभार : GCShutter from Getty Images Signature via CanvaPro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,907,586 Views
All Categories