कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

आपकी छोटे घर की बहु दहेज नहीं लायी…

अपनी नंद की बातों को सुन अनीता जी के चेहरे का रंग उड़ गया। शांति जी ने अपनी भाभी को सच का ऐसा आईना दिखलाया कि उनकी बोलती बंद हो गई।

अपनी नंद की बातों को सुन अनीता जी के चेहरे का रंग उड़ गया। शांति जी ने अपनी भाभी को सच का ऐसा आईना दिखलाया कि उनकी बोलती बंद हो गई।

शांति निवास आज फूलों से सजा हुआ था, कोने कोने में गुलाब के फूलों से सज्जा की गई थी। घर का एक एक कोना रोशनी से जगमगा रहा था। अवसर ही ऐसा था। शांति जी और अशोक जी के इकलौते बेटे आदित्य और पूजा की शादी जो थी।

शांति जी को एक मिनट की फुर्सत नहीं थी, एकलौते बेटे की शादी में कोई कसर नहीं रहने देना चाहती थीं। घूम-घूम के सारे इंतजाम खुद देख रहीं थी वह, कभी मेहमानों की आवभगत करतीं तो कभी हलवाई के पास खाने का इंतजाम देखतीं।

जयमाल के वक़्त बेटे और बहु की जोड़ी को देख आँखे भर आयीं, ऐसी सुन्दर जोड़ी! धूमधाम से वर-वधु का गृह प्रवेश हुआ।  पूजा भी पढ़ी-लिखी, समझदार तो थी ही, देखने में भी बेहद खूबसूरत लड़की थी।

अपनी बहु के गृह प्रवेश के वक़्त शांति जी की ख़ुशी संभाले नहीं संभल रही थी। आरती का थाल हाथों में ले दिल से लाखों आशीर्वाद दे बेटे बहु का स्वागत किया। अपनी बहु की शुभ हथेलियों के छापे पूजा घर की दीवाल पे आलता से लगवाए शांति जी ने।

मुँह दिखाई की रस्म के वक़्त सब ने जी खोल के तारीफ की नई बहु की। “वाह दीदी, बहु नहीं चाँद का टुकड़ा लायी हो आप”,  शांति जी की भाभी अनीता जी ने पूजा को तोहफा में सोने के कंगन देते हुए कहा।

एक एक कर सारे मेहमान घर से विदा हो गए और घर में रह गए, शांति जी और उनका परिवार। पूजा का जैसा नाम था वैसा ही गुण था। अपनी सास का माँ समान आदर करती। घर के कामों को खुशी-ख़ुशी अपनी जिम्मेदारी समझ करती और अपनी सास के साथ मिलजुल कर प्रेम से रहती थी।

अपनी नंद के घर से जाते-जाते अनीता जी ने अपने बेटे की शादी का निमंत्रण शांति जी को देके  गईं थी, जो कुछ ही महीनों बाद थी और ये भी कह गई थीं कि पूजा बहु को भी जरूर लाना।

अपनी सास के मायके जाने के लिये पूजा भी बहुत उत्साह से सारी तैयारी करने लगी। नई-नई शादी के बाद पहली शादी में जाने का एक अलग ही उत्साह पूजा में था।

शांति जी के भाई भाभी संपन्न लोग थे खूब धूम धाम से शादी हुई। नई बहु अपने साथ लाखों का दहेज़ और नई चमचमाती कार ले कर आयी थी। नई बहु के गृहप्रवेश के रस्म के बाद मुँह दिखाई की रस्म होने लगी।

“जाओ पूजा बेटा अपनी देवरानी की मुंहदिखाई की रस्म कर दो और जो तोहफा लायी हो वो भी दे दो”, अपनी बहु को नई बहु की मुंह-दिखाई के लिये शांति जी ने कहा। जैसे ही पूजा ने तोहफा दे अपनी देवरानी की मुंह-दिखाई की रस्म की, अनीता जी, जो जैसे इसी मौके की ताक में बैठी थीं,  ने पूजा पे सब के सामने व्यंग करते हुए कहा, “देख लो पूजा बहु मेरी नई बहु तो सुन्दर भी है और दहेज़ भी लायी है तुम्हारी तरह खाली हाथ नहीं आयी।”

अपनी मामी सास के मुँह से ये सब सुन पूजा का सारा उत्साह ठंडा पर गया। सबके सामने यूँ अपमानित होते देख उसके आँखों में आंसू आ गए। शांति जी वहीं खड़ी सब देख सुन रही थी अपनी बहु का अपमान होते देख उन्हें बहुत गुस्सा आया, “ये क्या तरीका है भाभी मेरे बहु से बात करने, इस तरह सबके सामने अपमानित करने का आपको क्या अधिकार है?”

अपनी नंद की बातें सुन अहंकारी अनीता ने कहा,  “इसमें नाराज़ होने की क्या बात है दीदी सच ही तो कह रही हूँ मैं मेरी छोटी बहु के भी कार मिली है। अब तो दो-दो कार मेरे दरवाजे पे खड़ी हैं। बुरा मत मानना दीदी, आदित्य के लिये तो लाखों का दहेज़ मिल जाता लेकिन आपकी पूजा तो खाली हाथ ही आ गई ना। कोई समान लाई और ना ही कार…

“भाभी हमने तो दहेज़ माँगा ही नहीं था पूजा के पिताजी से। हमने तो पूजा के गुणों और संस्कारों को देख के शादी की है अपने बेटे की।”

“पूजा अच्छे परिवार से है। अगर हम कहते तो किसी बात की कोई कमी नहीं करते लेकिन हमें तो सिर्फ गुणी और परिवार साथ ले कर चलने वाली बहु चाहिये थी जो हमें पूजा बेटी के रूप में मिल गई।”

अपनी नंद की बात सुन अनीता हँसने लगी, “क्या दीदी, अपनी बहु के तो गुण गाती ही थीं, अब उसके मायके वालो के भी गाने लगीं?”

“मानती हूँ भाभी मेरी बहु छोटे घर से आयी है, आपकी बहुओं जैसी बहुत बड़े घर से नहीं आयी, लेकिन जो संस्कार वो अपने साथ लायी है, उसका मुकबला कोई नहीं कर सकता। सब जानती हूँ मैं कि आपकी बड़ी बहु आपकी कितनी इज़्ज़त करती है और आपकी बातों का कितना मान देती है।  माफ़ी चाहूंगी कि आपकी आपस की बातों को सुन लिया मैंने लेकिन बहु की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि वो खुद ही मेरे कानों तक पहुंच गई।

धन-दौलत तो एक दिन ख़त्म हो जायेंगे भाभी, लेकिन जो संस्कार मेरी बहु ले कर आयी है वो तो कभी ख़त्म नहीं होंगे। अपने पिताजी को दहेज़ के कर्ज में डूबता देख कौन सी लड़की अपने सास ससुर को माता पिता का सम्मान दे पायेगी? मुझे बिना दहेज़ के आयी अपनी बहु से सम्मान पाना ज्यादा प्यारा है।”

अपनी नंद की बातों को सुन अनीता जी के चेहरे का रंग उड़ गया। शांति जी ने अपनी भाभी को सच का ऐसा आईना दिखलाया कि उनकी बोलती बंद हो गई। अपनी सासूमाँ के पास खड़ी पूजा गर्व से भर उठी। सम्मान तो पहले भी पूजा के दिल में अपनी सासूमाँ के लिये बहुत था लेकिन आज वो स्थान और ऊंचा हो गया था।

दोस्तों, किसी भी लड़की की गुणों की तुलना धन से करना बहुत गलत है धन दौलत तो ख़त्म हो सकते है लेकिन संस्कार वो तो अमिट होते हैं। शांति जी ने अपनी बहु को दहेज़ के ऊपर रखा और अपनी बहु की नज़रो में अपना सम्मान हमेशा के लिये बना लिया। आपको शांति जी का निर्णय कैसा लगा मुझे जरुर बताये कहानी पसंद आये तो लाइक, कमैंट्स और फॉलो करना ना भूलें। किसी भी त्रुटि के लिये माफ़ी चाहूंगी। 

मूल चित्र : jessicaphoto from Getty Images Signature, via Canva Pro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,909,207 Views
All Categories