कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
पहली बार दिल्ली पुलिस में किसी को लापता बच्चों को तलाशने के लिए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया गया और ये हैं महिला हेड कॉन्स्टेबल सीमा ढाका...
पहली बार दिल्ली पुलिस में किसी को लापता बच्चों को तलाशने के लिए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया गया और ये हैं महिला हेड कॉन्स्टेबल सीमा ढाका…
ऐसा पहली बार हुआ है जब लापता बच्चों को तलाशने के लिए किसी को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया गया हो। 2006 से कारर्यत दिल्ली पुलिस की महिला हेड कॉन्स्टेबल सीमा ढाका को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया गया है। अब सीमा ढाका जो कि अभी आउटर-नॉर्थ जिले के समयपुर बादली थाने में तैनात हैं वे अब कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद असिस्टेंट सब-इंस्पैक्टर बन जाएंगी।
दरअसल, पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव ने गुमशुदा बच्चों को तलाशने के काम में तेजी लाने के लिए पुलिसवालों को प्रोत्साहित करने के मकसद से एक नई इंसेंटिव स्कीम का ऐलान किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि कोई भी कांस्टेबल या हेड कांस्टेबल एक साल के भीतर 14 वर्ष से कम उम्र के 50 बच्चों को खोज लेगा तो उन्हें आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया जाएगा। और सीमा ने सिर्फ तीन महीने में 76 बच्चों को खोज निकाला।
इसकी जानकारी दिल्ली पुलिस के कमिशनर एस एन श्रीवास्त्व ने अपने ट्विटर हैंडल पर देते हुए कहा, “परिवारों में फिर खुशी लाने के लिए आपको सलाम।”
Women HC Seema Dhaka, PS Samaypur Badli, deserves congratulations for being the first police person to be promoted out of turn for recovering 56 children in 3 months under incentive scheme. Hats off to fighting spirit and joy brought to families. @LtGovDelhi @HMOIndia @PMOIndia— CP Delhi #DilKiPolice (@CPDelhi) November 18, 2020
Women HC Seema Dhaka, PS Samaypur Badli, deserves congratulations for being the first police person to be promoted out of turn for recovering 56 children in 3 months under incentive scheme. Hats off to fighting spirit and joy brought to families. @LtGovDelhi @HMOIndia @PMOIndia
सीमा ढाका का ये काम वाकई सलाम के काबिल है। खोजे गए 76 में से 56 बच्चे 14 साल से कम उम्र के हैं। कुछ बच्चे दिल्ली के बाहर अन्य राज्यों में खासकर पंजाब और पश्चिम बंगाल तक से बरामद किए गए हैं। ये सभी बच्चे राजधानी दिल्ली के अलग-अलग पुलिस थाना क्षेत्रों से लापता हुए थे। इस काम में सीमा ने अन्य राज्यों की पुलिस से भी मदद ली।
सीमा अपने गांव की पहली लड़की थी जो अकेले साइकिल से कॉलेज जाती थी। गांव से कॉलेज की दूरी करीब 6 किमी थी। कभी ऐसा भी वक्त आता था कि खेतों में एक भी इंसान नहीं दिखाई देता था। चारों ओर सुनसान रहता था। इसके बारे में न्यूज़ 18 से बात करते हुए सीमा ढाका कहती हैं, “ऐसे में अगर किसी एक आदमी की निगाह भी मेरे पर पड़ जाती थी, तो जब तक मैं सेफ जगह नहीं पहुंच जाती थी वो मेरी हिफाज़त करता था। गांव की यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती थी लेकिन दिल्ली आकर मुझे यह सब देखने को नहीं मिला।”
सीमा का कहना है कि “मैं खुद 8 साल के बच्चे की मां हूं। जब मैं किसी के बच्चे के गुम होने की बात सुनती हूं तो बहुत ही अजीब लगता है। मैं बर्दाश्त नहीं कर पाती हूं कि किसी का बच्चा उससे बिछड़े। इसलिए एक मीटिंग के दौरान मैंने अपने अफसरों से गुमशुदा बच्चों को तलाशने वाली सेल में काम करने की इच्छा जाहिर की। अच्छी बात यह है कि सभी अफसरों का मुझे पूरा सपोर्ट मिलता है।”
महिला और बाल विकास मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, भारत में औसतन हर 10 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दर पर, भारत में पिछले एक वर्ष में लगभग 54,750 बच्चों के लापता होने की सूचना मिली होगी और उनमें से लगभग आधे बच्चों का पता लगाया गया होगा, यदि कोई लापता बच्चों पर पुलिस रिकॉर्ड दर्ज करता है तो।
अगर हम NCRB ने कुछ अन्य चौंकाने वाले आंकड़े भी देखे, जैसे कि 2016 में 1,11,569 बच्चे एक साल से अधिक समय से लापता थे और लापता बच्चों में से लगभग आधे बच्चे ही पाए गए थे तो पता चलता है कि भारत में बच्चों की क्या स्थिति है। जिस भारत में 18 वर्ष से कम आयु के 400 मिलियन से अधिक बच्चे हैं, और उन देशों में से एक माना जाता है, जिनमें युवाओं और बच्चों की आबादी 55% से अधिक है।
ऐसे में हमें ज्यादा से ज्यादा सीमा ढाका जैसे अफसरों की ज़रूरत है जो हमारे बच्चों को सुरक्षा प्रदान कर सकें। उम्मीद है, इनसे प्रेरणा लेकर न केवल दिल्ली पुलिस बल्कि पूरे भारत की पुलिस हमारे परिवारों में खुशियाँ फिर से लोटा सकें और बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण मिल सके।
मूल चित्र : Twitter, Punjab Kesari
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
Please enter your email address