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दुल्हन बनने का ख्वाब वह कब का छोड़ चुकी थी, पर किस्मत…

पर माँ बाप कहाँ मानने वाले होते हैं? कन्या दान किये बिना तो मोक्ष कैसे मिलेगा और बेटी के हाथ पीले किये बिना बूढ़े माँ बाप मरना नहीं चाहते थे।

पर माँ बाप कहाँ मानने वाले होते हैं? कन्या दान किये बिना तो मोक्ष कैसे मिलेगा और बेटी के हाथ पीले किये बिना बूढ़े माँ बाप मरना नहीं चाहते थे।

फोन रखते ही पापा का उदास चेहरा देखकर ही रमा समझ गई थी कि इस बार भी लड़के वालों ने शादी के लिए मना कर दिया है। रमा की माँ ने फ़ोन रखते ही मनोज जी से पूछा क्या कहा उन्होंने। पर मनोज जी की चुप्पी सब कह गई। रमा नम आँखों के साथ अपने कमरे में आ गई।

32 बसंत देख चुकी रमा ने तो दुल्हन बनने का ख्वाब कब का छोड़ दिया था। पर माँ बाप कहाँ मानने वाले होते हैं? कन्या दान किये बिना तो मोक्ष कैसे मिलेगा और बेटी के हाथ पीले किये बिना बूढ़े माँ बाप मरना नहीं चाहते थे। शायद इसी चाह में इतनी बड़ी बीमारी और दो बार हार्ट अटैक आने के बाद भी मनोज जी मौत को छूकर वापस आ चुके थे। अब बस यही चिंता थी कि जीते जी बेटी की शादी हो जाये बस।

रमा की भाभी रोहिणी को भी आज अपनी गलती का पछतावा हो रहा था। वो गलती जो उन्होंने 10 साल पहले की थी। रमा जब कॉलेज से पी.जी. कर रही थी। कॉलेज में ही उसकी पहचान केशव से हुई थी। साथ में पढ़ते हुए दोस्ती कब प्यार में बदल गई वे खुद भी समझ नहीं पाये। रमा के पिताजी मनोज की का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया था सो पूरी फैमिली बनारस को छोड़ भोपाल में आ बसी।

रमा के भैया भी भोपाल में ही जॉब करने लगे। अब रमा और केशव के रिश्ते का एकमात्र जरिया फोन ही था। अब उनका मिलना भी बहुत मुश्किल सा हो गया था। फिर भी केशव 2-3 महीने में एक बार मिलने जरूर आता। रमा भी कोई न कोई बहाना बनाकर घर से निकल जाती दिन भर दोनों साथ में भोपाल की सैर करते। केशव जब भी भोपाल आता रमा से घर दिखाने की बात करता सब से मिलने की इच्छा बताता पर रमा को कहीं न कहीं यह डर था कि जब पिताजी का केशव के दूसरे कास्ट के होने का पता चलेगा तो क्या होगा इस परिणाम के डर से केशव को कभी अपना घर का रास्ता न बता सकी।

पर कहते हैं न प्यार छुपाए नहीं छुपता। एक रोज रमा की भाभी ने रमा को बात करते पकड़ लिया। जब यह बात भैया को पता चली तो उन्होंने रमा से फोन छीन लिया सिम भी निकाल कर तोड़ डाली। रमा भी डर के मारे कुछ न बोल सकी पर उस रोज के बाद से रमा और केशव का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो गया। रमा ने तो कभी इसकी कल्पना भी न की थी। केशव के दोस्तों से संपर्क तो शहर बदलते ही टूट चुका था और अब केशव से संपर्क करने के सारे रास्ते बंद थे।

खुद को गम से उबारने के लिए रमा ने स्कूल जॉइन कर लिया। धीरे धीरे जिंदगी रफ्तार पकड़ने लगी। रमा के लिए शादी के लिए रिश्ते ढूंढे जाने लगे पर कही भी बात बन न सकी। इस बीच रमा के पिताजी भी दो बार दिल के दौरे से गुजर चुके थे। देखते देखते समय गुजरता रहा। इस बात का रमा की भाभी को भी दुख था कि काश उस समय उतावलेपन में न आकर अगर रमा का साथ दिया होता तो आज रमा केशव के साथ अपनी जिंदगी गुजार रही होती। मोहन जी भी कई बार रमा से पूछ चुके थे अगर कोई पसंद था तो एक बार बताया तो होता पर अब किसी के हाथ में कुछ भी नहीं था। रमा कभी भी केशव को भुला नहीं सकी। अब तो परिवार ने भी इसे रमा की किस्मत समझ कर स्वीकार कर लिया था।

एक रोज रमा घर की छत पर टहल रही थी तभी घर के सामने एक बड़ा सा ट्रक आकर रुका। शायद सामने वाले घर के मालिक रहने के लिए आ गए थे। जो अभी कुछ महीनों पहले ही बिका था। रमा की आँखे चमक उठी जब सामान के साथ आई गाड़ी में से उसने केशव को उतरते देखा। एक बार तो मन चाहा कि दौड़ के केशव के गले लग जाऊ पर दूसरे ही पल कदमों को रोक लिया, ‘इतने साल हो गये। पता नहीं अब वो मुझे पहचानता भी होगा या नहीं। अब तक तो उसकी शादी भी हो गई होगी। आंखों में आई चमक एकदम से खो गई। पर केशव का उसके सामने यू अचानक से आना कोई इत्तेफाक था? कहीं केशव उसे ढूढ़ते हुए तो…? नहीं नहीं!’ मन में खुशी और गम की चहल पहल चल ही रही थी कि भाभी की आवाज से तंद्रा टूटी।

“सामने वाले घर से हमारे नए पड़ोसियों का निमंत्रण आया है कल गृह प्रवेश की पूजा रखी है हमें सहपरिवार आमंत्रित किया है”, भाभी ने रमा को बताया।

अगले दिन सभी पूजा में जाने को तैयार थे। पर रमा का मन तो किसी ओर ही चिंता में लगा था।

“आप सभी जाओ मेरा मन नहीं है”, रमा ने माँ से कहा।

“अरे कौन सा दूर जाना है इतने प्यार से उन्होंने हमें बुलाया है और वैसे भी कॉलोनी में नए है मिलेंगे जुलेंगे नहीं तो जान पहचान कैसे होगीं?” बातों बातों में माँ ने रमा को तैयार कर ही लिया।

पूजा में कई लोग आए हुए थे। पर रमा की आँखें तो सिर्फ एक चेहरे हो ही तलाश रही थीं। तभी अचानक से किसी ने उसके हाथ को खींचा। इससे पहले वो कुछ समझ पाती वो केशव के सामने थी। बहुत से सवाल रमा को केशव से करने थे, बहुत से सवाल और शिकायतें केशव को भी रमा से थी। पर दोनों के जज़्बात जुबान पर आने से कतरा रहे थे।

“तुम यहाँ ऐसे…”, रमा ने कुछ बोलना चाहा पर केशव ने अपने हाथों को उसके होंठो पर रख लिया।

“मैं आज भी तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूं। मुझसे शादी करोगी?” केशव अपने घुटनों पर रमा के सामने था। अब तक रमा और केशव के घर वाले भी आ चुके थे। पर रमा अब अपना प्यार और दूसरा मौका खोना नहीं चाहती थी। बिना किसी की परवाह किये रमा ने हाँ में सिर हिला दिया।

कहते हैं गर प्यार सच्चा हो तो कामयाब जरूर होता है| रमा और केशव के सच्चे प्यार ने ही उन्हें दोबारा मिलाया।

मूल चित्र : Extreme Photographer from Getty Images Signature, via Canva Pro

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Babita Kushwaha

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