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रिद्धिमा के पिताजी अत्यन्त रूढ़िवादी विचारधारा के थे और उन्होंने रिद्धिमा को कभी ना अपनाने की कसम खा रखी थी।
ट्रिंग-ट्रिंग ट्रिंग-ट्रिंग!
सुबह-सुबह फोन की आवाज से रिद्धिमा की नींद खुली। घड़ी की तरफ देखा तो अभी सिर्फ साढ़े पांच बजे हैं, “इतनी सुबह किसका फोन हो सकता है?” मन में किसी अनहोनी की आशंका हो उठी। रिद्धिमा घबराती हुई फोन उठाकर हेलो बोलती है।
उधर से जवाब में हेलो की आवाज़ सुनकर रिद्धिमा पहचान जाती है कि ये उसके पिताजी की आवाज़ है। अचानक ही उसके दिमाग में ये सवाल कौंध उठता है कि इतने सालों बाद पिताजी का फोन…? फिर भी खुद को संभालती हुई वो बात आगे बढ़ाती है। उधर से बहुत सीमित और औपचारिक तरीके से बात होती है और ये बता दिया जाता है कि तुम्हारे मां की तबियत खराब है वो एक बार तुमसे मिलना चाहती हैं।
फोन कट जाता है और रिद्धिमा अपने अतीत में खो जाती है। वो दस साल पहले का सारा मंजर उसके आंखो के सामने नाच उठता है। कैसे वो अपने पिताजी के पैरो में गिरकर विनती कर रही होती है कि उसकी शादी किसी और से ना करें। वो विहान से प्रेम करती है। पर जवाब में उसको सिर्फ थप्पड़ पड़ता है और कहीं और शादी का फैसला सुना दिया जाता है।
“रिद्धू रिद्धू क्या हुआ किसका फोन था?” विहान की आवाज़ से वो वर्तमान में लौटती है और उनको सब कुछ बता देती है। विहान पेशे से चिकित्सक है और उनका इस समय शहर से बाहर जाना नामुमकिन है। उन्होंने फटाफट रिद्धिमा के लिए फ्लाइट की टिकट करवाया और यहां की कोई चिंता ना करने को कहते हुए उसकी पैकिंग करवाने लगे।
बंगलौर से वाराणसी की फ्लाइट थी। समय बहुत कम था। जो भी थोड़ा बहुत समझ में आया वो पैक करके रिद्धिमा और विहान एयरपोर्ट के लिए निकल गए।
“अपना ख्याल रखना रिद्धू ,कुछ भी जरूरत हो तो फोन कर देना”, ऐसा बोलकर विहान ने रिद्धिमा को विदा किया।
फ्लाइट में बैठने के कुछ देर बाद रिद्धिमा को नींद आ गई। वाराणसी एयरपोर्ट पहुंचकर वो उठती है और अपना समान लेकर एयरपोर्ट से बाहर आ जाती है। रिद्धिमा कैब में बैठकर खिड़की के शीशे पर अपना सिर टिका लेती है और फिर कुछ अतीत के पन्ने उसके दिमाग में पलटने लगते हैं।
उसकी शादी के कुछ समय बाद जब वो अपनी चचेरी बहन से फोन पर बात करके रो पड़ती है और बोलती है, “मुझे मां की बहुत याद आ रही है दीदी। क्या मां मुझे भूल गई है?” दीदी उसको बतातीं हैं कि उसकी मां उसे बहुत याद करतीं हैं। हमेशा आंखें भर जाती हैं उनकी रिद्धिमा के बारे में बात करके, “मां बोलती हैं कि मेरी रिद्धिमा को कोई मेरे घर से निकाल सकता है मेरे दिल से नहीं…”
गाड़ी के अचानक ब्रेक लगने से रिद्धिमा वापस वर्तमान में आती है और बस शून्य सी बैठी अपने शहर को देखने लगती है, काफी कुछ बदल चुका है इन दस सालों में।
रिद्धिमा और विहान ने घर वालों के विरुद्ध जाकर प्रेम विवाह किया था। कुछ महीनों बाद विहान के घरवाले इस रिश्ते को अपना लिए। लेकिन रिद्धिमा के पिताजी अत्यन्त रूढ़िवादी विचारधारा के थे। उन्होंने रिद्धिमा को कभी ना अपनाने की कसम खा रखी थी। हालांकि रिद्धिमा की मां को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी। उनकी हमेशा से यही इच्छा थी कि बेटी और दामाद को स्वीकार कर लिया जाए, पर वो अपने पति के सामने कुछ नहीं बोल पाती थीं। समय बीतता गया, रिद्धिमा की मां बीमार रहने लगीं। वो हमेशा रिद्धिमा को याद करतीं और कहतीं कि एक बार उन्हें रिद्धिमा और विहान से मिलना है।
गाड़ी दरवाज़े पर आकर रुकती है। वो अपने मां से मिलने को, उन्हें गले लगाने को और उनसे बातें करने को बहुत आतुर थी। पर ये क्या! ये मंजर तो रिद्धिमा ने कल्पना में भी नहीं सोची थी!
मां का पार्थिव शरीर…!
रिद्धिमा की आंखो से अविरल अश्रुधारा निकलने लगती है। वो अपनी मां को गले लगाकर जी भर रोती है। लेकिन मां तो चली गई अपनी बेटी से मिलने की इच्छा को अपने सीने में दबाए।
मां के अंतिम संस्कार की क्रियाविधि सम्पन्न होने के बाद रिद्धिमा अंदर के कमरे में उदास बैठी है तभी उसके कानों में एक आवाज़ आती है जो को उसके पिताजी की है। वो रिद्धिमा की बुआ से कह रहें हैं कि इस लड़की को तो में कभी नहीं बुलाता लेकिन पत्नी की अंतिम इच्छा के कारण बुलाना पड़ा।
रिद्धिमा की आंखो में आंसू भर गए। वो सोचने लगी कि क्या यही थी मां की अंतिम इच्छा? मां की तो हमेशा से ये इच्छा थी कि बेटी दामाद को अपना लिया जाए और ये इच्छा तो मां अपने दिल में लेकर चली गई।
अब रिद्धिमा ने यहां रुकना उचित नहीं समझा। उसने विहान को फोन करके वापसी कि टिकट करवाने को कहा। अपना बैग उठाकर वो कमरे से बाहर निकली और अपने पिताजी से सिर्फ इतना बोल पाई, “आप एक बार अपने हृदय से पूछिए क्या यही थी मां की अंतिम इच्छा? और जवाब होगा नहीं। आप मां की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाए पिताजी…”
रिद्धिमा वहां से एक बार फिर निकल गई,पर अब कभी वापस ना आने के लिए।
मूल चित्र : KlJ077 from Getty Images via Canva Pro
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