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एक औरत की संवेदना!

खटकते, तड़पते,आहें भरते, क्यूँ किसी को याद नहीं आता, मैं भी एक जीती जागती इंसान हूं! मुझे भी तकलीफ़ उतनी ही होती है जितनी तुम्हें। 

खटकते, तड़पते,आहें भरते, क्यूँ किसी को याद नहीं आता, मैं भी एक जीती जागती इंसान हूं! मुझे भी तकलीफ़ उतनी ही होती है जितनी तुम्हें। 

मैं औरत हूँ
मेरे लिए हर दिन
एक जैसा ही होता है।

किसी त्योहार पर्व का कोई
खास फर्क़ नहीं पड़ता
मेरे जीवन में,
आता है और आँखें भिगोकर
चला जाता है।

कुछ सिसकियाँ,
कुछ किस्से,
कुछ बातेँ,
अनकहे हिस्से
रह जाते हैं पीछे!

खटकते तड़पते
आहें भरते
क्यूँ किसी को याद नहीं आता,
मैं भी एक जीती जागती
इंसान हूं!

मुझे भी तकलीफ़
उतनी ही होती है जितनी तुम्हें,
पर मैं उम्मीद ही
क्यूँ रखूं तुमसे।

क्या दिया है
तुमने आज तक
जो अब दोगे…

चित्र साभार : Chad Maadden via Unsplash

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Shivangi Srivastava

I am a person who believes that happiness lies in enjoying little things in life. Love to read. At times prefer to write to pour my heart out on paper. read more...

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