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अब बस! मुझे चाहिए घरेलू हिंसा से छुटकारा…

समाज के नज़रिये को अपनाने का अर्थ था, अपने आत्म सम्मान का बलिदान। जो कि उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था। अब बस और सहन नहीं करना है...

समाज के नज़रिये को अपनाने का अर्थ था, अपने आत्म सम्मान का बलिदान। जो कि उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था। अब बस और सहन नहीं करना है…

नोट : विमेंस वेब की घरेलु हिंसा के खिलाफ #अबबस मुहिम की कहानियों की शृंखला में पसंद की गयी एक और कहानी!

“अरे रिया! तुम? अकेले, दामाद जी साथ नहीं आए?” रिया की मां ने रिया से आश्चर्य से पूछा।

रिया की मां ने रिया का घर में घुसने का भी इंतज़ार नहीं किया और दरवाजे पर ही प्रश्नों की बौछार कर दी।

“नहीं मां, अमन को ऑफिस से छुट्टी नहीं मिली इसलिए वह नहीं आ सके” रिया ने अनमने मन से जवाब दिया।

रिया ने अपने माता-पिता को बताया कि वह कुछ दिन वहीं उनके साथ रहेगी।

रिया और अमन की शादी को लगभग एक साल हो गया था। अमन मुम्बई में एक आई. टी. कम्पनी में अच्छे पद पर नियुक्त था। अमन मिलनसार और हंसमुख स्वभाव का था। इसलिए हर कोई उसे बहुत पसंद करता था। रिया के माता-पिता तो अपने दामाद की तारीफ करते नहीं थकते थे।

रिया और अमन अकेले मुम्बई में रहते थे। अमन के माता-पिता अपने पैतृक स्थान कानपुर में रहते थे।

रिया और अमन में बहुत प्रेम था। अमन, रिया का बहुत ख्याल रखता था। उसकी हर एक फरमाइश पूरी करता था।

शादी के बाद के कुछ महीने कैसे बीत गए, रिया को तो पता भी नहीं चला।

शादी के वक़्त अमन ने बताया था कि वह कभी-कभी ऑफिस पॉर्टी में थोड़ी बियर पी लेता है। पर आजकल तो थोड़ा बहुत बीयर और शराब पी लेना तो जैसे फैशन सा हो गया है। इसलिए रिया या उसके माता-पिता ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

शादी के बाद कुछ दिनों तक तो अमन ने शराब को हाथ तक नहीं लगाया। फिर वह कभी-कभी घर शराब पीकर आने लगा। और रिया के पूछने पर कहता आज ऑफिस की कोई पार्टी थी।

इस तरह से कुछ महीने और बीत गए। रिया को अमन में बस इसी एक बुराई के अलावा कोई और बुराई नज़र नहीं आई। और इसे उसने बहुत आसानी से नज़र अंदाज़ भी कर दिया। और करती भी क्यूं नहीं, अमन उसको बहुत प्रेम जो करता था। उसको अच्छे-अच्छे तौहफे देता, बाहर घुमाने ले जाता। हर तरह से उसका ख्याल रखता था।

पर पिछले कुछ महीनों से अमन का शराब पीकर घर आना बढ़ गया था। और फिर एक दिन तो अमन, घर पर ही शराब ले आया और घर में भी शराब पीने लगा।

धीरे-धीरे यह रोज़ का नियम सा बन गया। और अब रिया और अमन का बाहर घुमने जाना भी बंद ही हो गया। साथ ही साथ अमन के व्यवहार में भी बदलाव आने लगा। अब वह पहले की तरह हंसमुख नहीं रहा बल्कि चिड़चिड़ा हो गया था।

रिया को लगा कि शायद अमन किसी बात को लेकर परेशान है। इसलिए वह शराब ज़्यादा पीने लगा है। पर जब कभी रिया उससे कुछ पूछने की कोशिश करती तो वह रिया को बस झिड़क देता।

एक दिन अमन के कुछ दोस्त घर आए। तब उन सबने मिलकर खूब शराब पी। उस दिन उन लोगों की आपसी बातचीत से रिया को पता चला कि अमन तो शराब पीने का बहुत शौकिन है और रोज़ शराब पीना तो उसकी पुरानी आदत है।

अभी तक तो बात शराब पीने तक सीमित थी पर एक दिन तो अमन ने हद ही पार कर दी। जब रिया ने अमन को शराब पीने से रोकना चाहा तो अमन ने रिया पर हाथ ही उठा दिया।

उस दिन तो जैसे रिया का एक सुखी घर संसार का सपना टूट ही गया। फिर अमन शराब पीकर रिया पर रोज़ हर छोटी-बड़ी बात पर हाथ उठाने लगा।

अब रिया धीरे-धीरे टूटने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? अपने माता-पिता को कैसे उनके चहेते दामाद की असलियत बताए? उसे इस बात का डर भी था कि अगर उसके माता-पिता को इस बात का पता चला तो वह काफी दुखी हो जाएंगे। वह तो इस बात से निश्चिंत हैं कि उनकी बेटी शादी के बाद बहुत सुखी है।

फिर रिया को इस बात का भी ख्याल आता था कि उसके पिता ब्लड प्रेशर के मरीज़ हैं और उन्हें एक बार दिल का दौरा भी पड़ चुका है। कहीं वह यह सच्चाई बर्दाश्त ही नहीं कर पाए और उन्हें कुछ हो गया तो। रिया बस इसी उधेड़बुन में लगी रहती थी।

साथ ही रिया को समाज का भी डर था। सब रिश्तेदार क्या बोलेंगे? सब लोगों को तो यही लगेगा कि वह ही अपना रिश्ता संभाल नहीं पाई। समाज तो खोट लड़कियों में ही निकालता है।

रिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

एक दिन उसने बस अपना समान उठाया और अपने माता-पिता के घर के लिए निकल पड़ी।

जब वह घर पहुंची तो उसकी मां उसका हालचाल पूछने की बजाय दरवाजे पर ही अकेले आने का कारण पूछने लगीं।

रिया ने अपने माता-पिता को अमन के बारे में कुछ न बताने का फैसला किया।

रिया के माता-पिता को पहले से ही रिया के अकेले आने की बात खटक रही थी और फिर रिया के गुमसुम रहने से उनके मन में शंका पैदा होने लगी।

और एक दिन उन्होंने रिया से पूछा, “क्या बात है बेटा? तुम जिस दिन से आई हो चुपचाप सी रहती हो। दामाद जी से झगड़ा हुआ है क्या?”

यह सुनकर तो जैसे रिया के सब्र का बांध टूट गया और वह बिलख-बिलख कर रोने लगी।

फिर उसने अपने माता-पिता को अपनी आपबीती सुनाई।

“अरे बेटा! औरतों को घर चलाने के लिए थोड़ा बहुत तो बर्दाश्त करना ही पड़ता है। और ऐब तो हर इंसान में होता ही है” रिया की मां ने उसकी सारी बातें सुनने के बाद कहा।

“मां!” रिया अपनी मां की बातें सुनकर अवाक रह गयी।

फिर आशा भरी नजरों से उसने अपने पिता की तरफ देखा। उसे लगा कि शायद वह तो उसकी परेशानी समझेंगे।

“बेटा, तुम्हारी मां ठीक कह रही है। वैसे भी अमन में इसके अलावा कोई और ऐब नहीं है। इतना अच्छा कमाता है और तुम्हारी हर जरूरत को पूरा करता है” रिया के पिता ने कहा।

“पर पापा! क्या भौतिक ज़रूरतें पूरी करना काफी है? क्या औरत का कोई मान-सम्मान नहीं होता?” रिया ने रूआंसी होकर पूछा।

“तो तुम क्या तलाक लेने के बारे में सोच रही हो?” रिया के पिता ने गुस्से से पूछा।

“जानती हो समाज में हमारी कितनी बदनामी होगी। हम लोगों के सवालों का क्या जवाब देंगे? समाज तुम पर ही उंगली उठाएगा। हमारी परवरिश पर भी सवाल उठेंगे। एक तलाकशुदा औरत का जीवन कितना कठिन  होता है, तुम्हें इसका जरा भी अंदाजा है क्या?” रिया के पिता ने उसकी ओर गुस्से से देखते हुए कहा।

रिया सोचने लगी कि मैं तो अपने माता-पिता की कितनी चिंता कर रही थी। पर उन्हें तो बस समाज और अपनी इज्जत की ही चिंता है। मैं क्या सोचती हूं या मुझ पर क्या बीत रही है इसकी उन्हें कोई परवाह ही नहीं है।

अब रिया इस परिस्थिति में क्या करे? उसके माता-पिता का नज़रिया तो वही था जो समाज का नज़रिया था।

पर रिया समाज के नज़रिये से बिल्कुल सहमत नहीं थी। समाज के नज़रिये को अपनाने का अर्थ था, अपने आत्म सम्मान का बलिदान। जो कि रिया को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था।

रिया की जीवन से कोई बहुत बड़ी आशाएं नहीं थी। पर एक सम्मान भरी जिंदगी की अभिलाषा उसे जरूर थी। रिया के लिए अब अमन के साथ रहना नामुमकिन हो गया था। अमन के साथ रहने के ख्याल से ही वह सिहर उठती।

उसने कई दिनों के सोच विचार के बाद अमन से अलग होने का निर्णय ले ही लिया।

यहां रिया को घर से गये इतना दिन हो चुके थे फिर भी अमन ने रिया से घर वापस आने के लिए नहीं कहा। वह तो घर पर दोस्तों को बुलाकर पार्टी और शराब पीने में मस्त था।

रिया ने अपना निर्णय अपने माता-पिता को भी बता दिया। हालांकि वह इस निर्णय के समर्थन में नहीं थे।

“पापा-मम्मी, मुझे पता है कि आज आप मेरे इस फैसले से खुश नहीं हैं। पर एक दिन आपको मेरे इस निर्णय पर नाज़ होगा” रिया की बातों में आत्मविश्वास साफ झलक रहा था।

“पापा, मैं आप लोगों पर बोझ नहीं बनूंगी। मैंने स्कूल की जो नौकरी शादी के वक़्त छोड़ दी थी उसे फिर से ज्वाइन करने का फैसला किया है” रिया ने कहा।

“और समाज का क्या है वह तो हमेशा से ही स्त्रियों पर ही उंगली उठाता रहा है। पर जब कोई समस्या आती है तो कोई साथ देने नहीं आता। इसलिए आप, लोग क्या कहेंगे, इस बात के बारे में सोचना छोड़ दें।”

रिया की इन आत्मविश्वास भरी बातों को सुनकर उसके माता-पिता को भी थोड़ा हौसला मिला और उन्होंने भी रिया का साथ देने का मन बना लिया।

रिया अब स्कूल की नौकरी के साथ-साथ सरकारी नौकरी की परीक्षा की तैयारी भी करने लगी। वैसे भी रिया हमेशा से पढ़ाई में तेज थी।

कुछ समय के पश्चात तलाक की कानूनी कार्यवाही भी पूरी हो गई और रिया को एक अपमानजनक रिश्ते से आज़ादी मिल गयी।

अब रिया कड़ी मेहनत से नौकरी की परीक्षा की तैयारी में जुट गई। उसकी मेहनत रंग लाई और रिया ने पी. सी. एस. की परीक्षा पास कर ली।

“बेटा, उस दिन तुमने सही कहा था। आज मुझे तुम पर गर्व है” यह कहते हुए रिया के पिता ने उसे गले से लगा लिया।

समाज के जो लोग उसके बारे में बातें बनाते थे अब उन्हीं लोगों का घर में बधाई देने के लिए तांता लग गया।

अगर रिया ने उस दिन समाज के नज़रिये के सामने घुटने टेक दिए होते तो वह आज भी वही अपमान भरा जीवन जी रही होती और आज का यह दिन कभी नहीं आता।

समाज क्या है? समाज हम लोगों से ही बनता है। और समाज की सोच में बदलाव लाना भी हमारी ही जिम्मेदारी है। इसके लिए जिस तरह से रिया ने हिम्मत दिखाई और तलाक लेकर अपने जीवन को एक नई दिशा दी। वैसे ही दूसरी लड़कियों को जो इस तरह के रिश्ते में प्रतिदिन मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना से गुजर रही हैं, हिम्मत दिखानी होगी। तभी वक़्त के साथ समाज के नज़रिये में भी बदलाव आ पाएगा।

मूल चित्र : Rosario Fernandes via Unsplash

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