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वो बता भी नहीं पाई कि कोई है जो उससे शादी करना चाहता है। उसकी मामूली शक्ल से उसे कोई दिक्कत नहीं है। उसने सिर्फ उसकी सीरत देखी थी।
“क्या हुआ मम्मी? सब ठीक तो है?” आरती ने मम्मी का उदास चेहरा देख कर पूछा।
“हाँ सब ठीक है”, उन्होंने आरती की तरफ देखे बिना कहा।
“तू अगर गोरी हो गई होती तो क्या हो जाता?” एक दम से उन्होंने कहा था।
“माँ!” आरती हैरान होकर बोली। उन्होंने तो कभी ऐसा नहीं कहा था। बल्कि जब वो खुद कहती कि मैं आपकी तरह क्यों नहीं हूँ, बाबा की तरह क्यों हूँ, तो वो बड़े प्यार से समझातीं, “तू तो हमारी खूबसूरत जिंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफा है। रंग रूप क्या होता है? ये तो ऊपर वाले की देन है। सूरत नहीं सीरत अच्छी होनी चाहिए। जो मेरी बेटी में कूट-कूट कर भरी। मेरी कल्लो तो सबसे अच्छी है।” आखिर में वो बोली तो, जो बहुत खुश होकर सब सुन रही थी, नाराज होकर चली गई। और मम्मी के हंसने की आवाज देर तक आती रही।
मम्मी-बाबा दोनों उससे बहुत प्यार करते थे, फिर ऐसा क्या हो गया कि आज पहली बार मम्मी ने ऐसा बोला।
“माँ क्या हुआ है बता दीजिये प्लीज़?” वो उनका हाथ पकड़ कर पूछ रही थी।
“तेरे बाबा ने तेरी शादी जब तू आठवीं में थी तभी अपने दोस्त के बेटे के साथ तय कर दी थी और अब उन्होंने बात अधूरी छोड़ दी।”
“माँ!” वो हैरान होकर उनको देखने लगी। ये कैसे हो सकता है? आपने तो कभी बताया भी नहीं और…”
“तेरे बाबा ने बिना मुझसे पूछा ही तय कर दिया था। बाद में जब मुझसे बताया तो मैंने कहा तुमसे पूछने के लिए मगर उन्होंने मना कर दिया था। बोले राहुल बहुत अच्छा लड़का है। हमारी बेटी की शक्ल ऐसी नहीं है कि रिश्ते ठुकराते फिरें। वो तो संजय से मेरी इतनी पक्की दोस्ती है कि मेरी परेशानी जानकर उसने तुरंत ही ये रिश्ता दे दिया। मैंने देखा है राहुल को बहुत प्यारा बच्चा है और अभी कौन सा हम शादी किए दे रहे हैं। जब वक़्त आएगा तभी करेंगे। तुम कभी भी अपनी ज़ुबान से ना निकालना ये बात। और हाँ होगा वही जो मैं चाहूंगा। अब तुम्हारे बाबा ने संजय भाई से शादी के लिए कहा तो वो तो तैयार हो गए हैं, मगर उनका बेटा वो तुमसे शादी नहीं करना चाहता। उसे गोरी लड़की चाहिए।” अब वो चुप हो गईं थी।
“तो इसमें प्राब्लम क्या है मम्मी? वो शादी नहीं करना चाहता, तो कोई बात नहीं। मैं आपको एक बात बताती हूँ…”
“तुम नहीं जानती!” उन्होंने उसकी बात सुनी ही नहीं, “संजय भाई और तुम्हारे बाबा नहीं मान रहे हैं, मैंने भी मना किया। मगर दोनों जिद पर अड़ गए हैं। डर है कहीं ये जिद कुछ गलत ना कर दे।” वो बहुत दूर का सोच रही थीं।
“मगर मम्मी…”, वो एक दम परेशान हो गई।
“मगर वगर कुछ नहीं।”
तभी बाबा की आवाज आई, “तुम्हारी शादी वहीं होगी और इसी महीने होगी। मैं अब कुछ नहीं सुनना चाहता। अरे वो तो लड़का है, शादी हो जाएगी तो सब सही हो जाएगा। सुनो आरती की मम्मी, तारीख़ निकल आई है। ज़रा मेरे साथ आना, क्या क्या कैसे करना है उसके बारे में बात करनी है।”
मम्मी एक नज़र बेटी पर डाल कर उठ गईं। वो बता भी नहीं पाई कि कोई है जो उससे शादी करना चाहता है। उसकी मामूली शक्ल से उसे कोई दिक्कत नहीं है। उसने सिर्फ उसकी सीरत देखी थी।
शादी की तैयारियां शुरू होकर खत्म भी हो गईं। उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया। फोन भी बंद कर दिया। क्योंकि वो बार बार फोन करके बोल रहा था कि मैं अपने मम्मी पापा को लेकर आ जाता हूँ। मेरे घर वाले बात कर लेंगे मगर उसने मना कर दिया। जानती थी बाबा कभी नहीं मानेंगे फिर क्या फायदा।
शादी करके वो ससुराल आ गई। सास ससुर बहुत अच्छे थे। और तो कोई था नहीं। राहुल ने पहले ही दिन बोल दिया था कि वो ना तो इस शादी को मानता है ना उसमें कोई दिलचस्पी है, “तुम मेरे मम्मी पापा की बहू बन कर आई हो वही रहो, कभी मेरे करीब आने की कोशिश भी ना करना। मैंने तुमको देखा था। तुम मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। कहाँ मैं और कहाँ तुम!” उसने अपनी तरफ इशारा किया। वो वाकई में बहुत खुश शक्ल का मालिक था।
“लड़कियां मरती हैं मुझपे। मैंने सोचा भी नहीं था कि तुम जैसी लड़की मेरी बीवी बनेगी। अगर मेरे बस में होता ना तो मैं भाग जाता मगर क्या करुं भाग भी नहीं सकता। खैर, कोई नहीं। तुम्हारी किस्मत बहुत अच्छी थी कि मेरे जैसे खूबसूरत लड़के की बीवी बन गईं। अपनी किस्मत पर बड़ा नाज़ हो रहा होगा ना तुम्हें?” वो बहुत घमंड से बोल रहा था।
पहली रात। पहली मुलाकात। ऐसे अल्फ़ाज़। इतना घमंड। उसका दिल किया राजा के बारे में बताकर उसकी बोलती बंद कर दे। जो इनसे हर मामले में बहुत अच्छा था। मगर खामोश रही।
उसने खामोशी को अपना हथियार बना लिया और इस शादी को अपना नसीब। खामोशी से सब काम करती। सास-ससुर की सेवा करती। राहुल का काम भी करती मगर उसने कभी तारीफ का एक लफ्ज़ भी नहीं निकाला। ना तो उसका दिल पसीझा।
एक बार वो बीमार भी पड़ गया था कितनी रातें उसने जागकर काट दी मगर उस पत्थर दिल इंसान में कोई तब्दीली नहीं आई। उसके दिल में अब भी उसके लिए नफ़रत ही भरी थी। शादी के तीन साल बाद आखिर एक दिन उसके सब्र का घड़ा भर ही गया। उसने उसके सामने खड़े होकर पूछ ही लिया की ये कब तक चलेगा? अगर इतना ही नापसंद है तो छोड़ क्यों नहीं देता?
उसको उम्मीद नहीं थी कि वो ऐसे सवाल करेगी। पहले तो वो हैरान हुआ फिर आराम से बेड पर तकिये के सहारे टेक लगा कर बैठ गया, “ओहो! क्या बात है भाई? मुझे तो पता ही नहीं था कि आप भी बोल लेतीं है। खैर, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, आप मेरी तरफ से एकदम आजाद हैं। मुझे तुममें ना तो पहले दिलचस्पी थी ना अब है। अभी तक तो मैं तुम्हारे ऊपर एहसान कर रहा था कि अगर तुम्हे छोड़ दूंगा तो तुम्हारा क्या होगा? तुम्हें कौन अपनाएगा? ये दुनियाँ, ये रिश्तेदार, ये समाज मुझे नहीं तुम्हें ही कुसुरवार कहेगी। और तो और मेरे जैसा जीवन साथी कहाँ मिलेंगा? तीन साल मेरी जिंदगी को अजाब बना दिया तुमने।”
“ठीक है! मैं भी अब आपके साथ नहीं रहना चाहती। इतने साल तक मैंने हर तरह से कोशिश करके देख लिया मगर तुम नहीं पिघले। अब मैं इतनी भी महान और बेवकूफ नहीं हूँ कि तुम जैसे इंसान के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर दूं”, वो बिना डरे बोल रही थी। उसने फैसला कर लिया था कि अब उसके साथ नहीं रहेगी। इसलिए उसके अंदर हिम्मत भी आ गई थी।
“ठीक है! जाओ चली जाओ। मैं भी देखता हूँ कैसे जवाब देती हो सबको।”
“उसकी फिक्र आप बिल्कुल ना करें। अपनी फिक्र करें कि अपने घर वालों को आप क्या बताएंगे?” पता नहीं कहा से इतनी हिम्मत आ गई थी उसमें। फिर वो रुकी नहीं। सास ससुर का पैर छू कर हाथ जोड़कर उनका आशिर्वाद लिया और घर से निकल गई। वो दोनों कुछ समझ ही नहीं पाए थे।
घर वापस आकर उसने कुछ नहीं छुपाया और सब बता दिया। मम्मी तो बीमार ही हो गई और पापा एकदम खामोश। इसमें कसूर किसका था? राहुल का? उसके बाबा का? राहुल के बाबा का? राहुल की मम्मी का? पता नहीं। शायद सभी अपनी जगह सही हों या शायद ना हों। मगर दो जिंदगियाँ तो बर्बाद हो ही गईं।
राहुल ने इस बार किसी की बात नहीं मानी और आरती को तलाक दे दिया। इस बार राहुल के मम्मी पापा भी खामोश थे और आरती के भी। आरती के बाबा ने उससे माफी मांग ली। वो कुछ कर भी तो नहीं सकते थे।
राजा ने अभी तक शादी नहीं की थी। उसे जब आरती के बारे में पता चला तो इस बार उसने भी देर नहीं की और अपने घर वालों को भेज दिया रिश्ता लेकर। राजा वाकई बहुत अच्छा था हर लिहाज़ से।
काश आरती ने हिम्मत करके सब पहले बताया होता, तो क्या उसके घर वाले मान जाते? शायद नहीं। बिल्कुल भी नहीं। जब तक खुद को चोट नहीं लगती तब तक कहाँ किसी और के चोट का एहसास होता है? क्यों रंग रुप इतना मायने रखता है? घर वाले क्यों बच्चों को समझ नहीं पाते? सबकी जिंदगी आरती की तरह वापस तो नहीं संवर जाती ना।
मूल चित्र : Extreme Photographer from Getty Images Signature via Canva Pro
Arshin Fatmia read more...
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