कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

और एक मां को उसका सबसे बेहतरीन तोहफा मिल गया था…

रूपा को डर था कि राघव के हर डिमांड को बिना सोचे पूरा कर देते हैं ऐसे तो चीज़ों की वैल्यू उसे कभी समझ नहीं आयेगी लेकिन आज...

रूपा को डर था कि राघव के हर डिमांड को बिना सोचे पूरा कर देते हैं ऐसे तो चीज़ों की वैल्यू उसे कभी समझ नहीं आयेगी लेकिन आज…

दिवाली का त्यौहार पास जैसे जैसे आ रहा था राघव की ज़िद भी बढ़ती जा रही थी।

रूपा और अनिल का एकलौता लाडला बेटा था राघव। दस साल का राघव ऐसे तो बहुत प्यारा था लेकिन जो दिल में बात आ जाती वो करवा के ही मानता। अपने बेटे को जिद्दी बनाने में अनिल का पूरा हाथ था जब भी रूपा टोकती, “आप राघव के हर डिमांड को बिना सोचे पूरा कर देते है ऐसे तो चीज़ो की वैल्यू उसे कभी समझ नहीं आयेगी।”

“तुम भी ना रूपा बच्चा है अभी राघव जो दिल आये करने दो बड़ा होगा तो सीख जायेगा।” रूपा मन मसोस के रह जाती।

इस बार भी नये कपड़े और ढेरों पटाखे दिलवाने के बाद भी और पटाखों की ज़िद कर बैठे गया था साथ में टॉय कार भी चाहिये थी, “नो, राघव पहले ही इतना कुछ दिलवाया है पापा ने अब और नहीं।”

“प्लीज मम्मा! ये लास्ट इसके बाद कोई डिमांड नहीं सिर्फ पढ़ाई।” अपनी माँ को लाड लगाते राघव ने भोली सूरत बना रूपा के पल्लू को पकड़ पीछे पीछे घूमना शुरु कर दिया। थक के रूपा ने भी हाँ कर दी, “ठीक है शाम को मॉल चलेंगे। जो लेना हो, ले लेना लेकिन इसके बाद कुछ नहीं मिलेगा।”

“हुर्रे… हुर्रे… एप्पी…”, खुशी से कूद फांद शुरु कर दी राघव ने। बेटे को यू ख़ुश देख रूपा भी मुस्कुराये बिना ना रह पायी।

शाम को मॉल में अपने खिलौने और पटाखे ले राघव बहुत ख़ुश हो गया, रूपा ने भी दिवाली की जरुरी चीज़ें खरीद ली। मॉल के बाहर ही बहुत ही टेस्टी मोमोज़ वाला स्टॉल लगाता था जब भी रूपा मॉल जाती वहाँ के मोमोज़ जरूर खाती।

“राघव मोमोज़ खाने है।”

“नहीं मम्मा मुझे नहीं खाने”

“ठीक है फिर तुम यही स्टूल पे बैठो मैं मोमोज़ ले कर आती हूँ।”

जहाँ राघव बैठा था वही पास में एक औरत टोकरी में कुछ मिट्टी के दिये ले कर बैठी थी, साथ में उसका सात आठ साल का बेटा भी था जो ललचाई नज़रो से राघव के हाथों के पटाखे और खिलौने देखने लगा।

“क्या देख रहा है अच्छे है ना?” राघव ने उस बच्चे से पूछा।

“बहुत अच्छे हैं।”

“तूने ले लिये पटाखे?”

ना में सिर हिला उस बच्चे ने कहा, “मुझे नहीं चाहिये।”

“क्यों?”

“मुझे खाना चाहिये। माँ ने कहा है जब ये सारे दिये बिक जायेंगे फिर मुझे पेट भर खाना मिलेगा।”

नन्हा राघव उस बच्चे की बात सुन दंग रह गया। कभी अभाव ना देखने वाले राघव के लिये आज उससे भी छोटे बच्चे को पटाखे खाने के इंतजार में बैठा देख राघव चौंक उठा। ऐसे भी होता है ये तो राघव जानता ही नहीं था। फिर ना जाने राघव के नन्हे से मन में क्या बात आयी उसी पल उसने उस बच्चे को सारे खिलौने दे दिये।

“नहीं मुझे नहीं चाहिये”, मासूमियत से उस बच्चे ने कहा।

“ले लो दिवाली गिफ्ट है, मेरे पास तो घर पे और भी है मैं वो चला लूंगा।”

राघव से तोहफे ले वो बच्चा खुशी से झूम उठा अपनी माँ को खुशी खुशी दिखाने लगा और उसकी माँ गीले आँखों से अपने दोनों हाथों को राघव को आशीर्वाद देने को उठा दिया।

दूर खड़ी रूपा सब देख रही थी। ऑंखें छलक उठी उसकी। आज उसका नन्हा बेटा कितना बड़ा हो गया था। जो काम हम बड़े भी दो बार सोच के करते हैं, उसे करने में राघव ने एक पल नहीं लगाया था। आज अपनी परवरिश पे गर्व हो उठा था रूपा को। अपने बेटे के सिर को सहला गले लगा लिया।

“मम्मा घर चलें।”

“चलो बेटा दिवाली के दिये भी तो सजाने हैं।” इस दिवाली राघव ने वो सीख लिया था जो रूपा चाह कर भी सीखा नहीं पायी थी।

मूल चित्र : VikramRaghuvanshi from Getty Images Signature via CanvaPro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,907,561 Views
All Categories