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मर्द करे तो ठीक, लेकिन औरत करे तो बदचलन…!

हमारे पाठकों का भी मानना है कि औरत अगर अपनी मर्ज़ी के मुताबिक कोई काम करे तो उसको रोकने के लिए समाज उसे बदचलन कह देता है।

हमारे पाठकों का भी मानना है कि औरत अगर अपनी मर्ज़ी के मुताबिक कोई काम करें तो उसको रोकने के लिए समाज उसे बदचलन कह देता है।

हमारे समाज में बदचलन की कोई एक परिभाषा नहीं है। यह परिभाषा मर्दों और औरतों के लिए अलग अलग है। एक काम अगर मर्द करे तो ठीक और वही काम अगर औरत कर ले तो वह बदचलन हो जाती है। हमारा समाज औरत को स्वतंत्रता और फैसला लेने की शक्ति नहीं देता। ऐसा समाज हमेशा ही महिलाओं को सामाजिक रोक टोक से जकड कर रखना चाहता है। महिलाएँ अपनी मर्ज़ी का काम न करें, अपनी इच्छाएँ पूरी न कर पाएं, इसके लिए समाज कई हथकंडे अपनाता है। उनमें से एक है औरत को बदचलन का करार दे देना।

औरत अगर अपनी मर्ज़ी के मुताबिक कोई काम करे तो उसको रोकने के लिए समाज उसे बदचलन कह देता है। ऐसे शब्दों से आत्मविश्वास को हानि पहुँचती है और अधिकांश परिस्थितियों में महिला का आत्मविश्वास टूट जाता है।

हमारे समाज को महिला की प्रगति से भय है। सामाजिक व्यवस्था महिला शोषण से चलती है और महिलाओं का उत्थान शोषण को खत्म करता है। महिलाओं को अपने अधिकार पूर्ती करता देख यह समाज उन्हें रोकने के लिए बहुत से षड्यंत्र रचता है।

सामाजिक विडम्बना से जुड़ा एक प्रश्न विमेंस वेब के पाठकों से हमने किया

तो आइये देखते हैं कि इस पर हमारे पाठकों का क्या कहना है। आपके कमैंट्स को देखकर समाज का कड़वा सच पता चला। इन्हीं में कुछ कमैंट्स को चुन कर देश के हर तबके की महिलाओं और लड़कियों की बात आप तक पहुंचा रहे हैं। इन्हे पढ़िए और जानिये किन किन बातों में पितृसत्ता आपका विकास रोक रही है। जानिये और समान अधिकार की लम्बी लड़ाई में शामिल हो जाइये।

लैक्स चौधरी का कहना है 

“तेज़ आवाज़ में बात करना, देर रात मोबाइल का इस्तेमाल करना, छोटे कपडे पहनना, देर रात घर लौटना या दोस्तो के साथ बाहर रहना, सिगरेट/शराब का सेवन (दोनों के शरीर के लिए हानिकारक है इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए), दूसरे लिंग से दोस्ती, घुलना-मिलना, अपनी बात खुले स्तर पर रखना ऐसी बहुत सी छोटी छोटी बातें हैं जिसको समाज, परिवार स्वीकार नहीं करता और उसको गलत का दर्जा देता है।”

निहारिका चावला सहगल एक ही लाइन में समाज की पोल खोलते हुए कहती हैं 

“औरतों द्वारा किया गया कोई भी काम जो पुरुषों की सोच पर सवाल उठता है, वो गलत मान लिया जाता है। “

दिव्या बड़े रोचक ढंग से कहती हैं 

वैसे कई सारी बातें हैं लेकिन अभी फ़िलहाल इतना ही कहना चाहूँगी –
“संस्कारी थी.. जब तक सहती रही,
बदचलन हो गयी.. जब बोल उठी!”
“बोलती लड़कियाँ/औरतें बदचलन होती है, चाहे वे सही बात ही क्यों ना कहें। बस बोलती लड़कियाँ/ औरतें किसी को बर्दाश्त नहीं।”

रीना शर्मा का के शब्दों में

“ये पूछिए ऐसी कौनसी चीज़ है जो औरत करे तो बदचलन नहीं होती। क्योंकि औरत का तो हर काम लोगों को बुरा ही लगता है। कपड़ों की बात करें तो ऐसे कपडे पहनो, कहीं आना जाना है तो पूछ के जाओ, तेज़ आवाज़ में बात करो तो कहते हैं जुबां लड़ाती है, अपने मन के मुताबिक जियो तो बदचलन कहलाओ, अपनी मर्ज़ी से शादी करे तो चालु है, नौकरी करे तो हवा में उड़ रही है और पता नहीं क्या क्या।”

एडी आरएसडी का कहना है

“एक नहीं ऐसी बहुत सारी चीज़ें हैं जैसे गाना गाते हुए सड़क पे चलना, कोई पसंद आये तो उससे अच्छे से बात करना, मन मर्ज़ी के कपडे पहनना, खुल के नाचना, ड्रिंक करना, परिवार की सभी बातों को ना मानना आदि बहुत सी बातें महिलाओं को बदचलन बना देती है।”

शहरीना शदफ ने एक पंक्ति में सब कुछ बयां कर दिया है

“अपने लिये जीने वाली और सच बात बोलने वाली औरतें।”

ममता शर्मा कहती हैं 

“चीज़ क्या औरतें के सभी काम मर्दों को बुरे ही लगते हैं। छोटी सी छोटी बात भी औरतों की मर्दों को बुरी लगती है। अगर किसी पुरुष से बात कर ले तो बदलचन समझने लग जाते हैं। अगर थोड़ी सी बन-सँवर कर रहने लगे जाए तो भी यही समस्या औऱ मर्द खुद के किये हुए काम को ही महान समझते है।”

सरिता यादव का मानना है 

“कौन सी चीज क्या, हर बात ही, चाहे वो सुबह उठने के टाइम से लेकर मर्दों के घर के आने के टाइम तक कोई भी बात उठा के देख लो। जो भी औरते मर्दों के अनुसार नहीं करती हैं तो वह गलत कहलाती हैं।”

मोनिका नारंग ने बहुत सुन्दर कहा है 

“शब्द नहीं हैं इतने किसी किताब में, दर्द छुपे हैं जितने औरत के किरदार में।”

निशु सचदेव गाँधी ने कहा है 

“अपने लिए कुछ भी करना, अपने हक़ के लिए बोलना, अपनी इच्छाओं को पूरा करना, एक आदमी को हर वो काम गलत लगता है जो औरत करती है। “

सुष्मिता बर्मन अपनी बात बताती हैं 

“शादी के बाद अपने माता-पिता की सेवा वो करें तो अच्छे और हम करे तो बुरे?”

पूजा प्रियंवदा एक हास्यास्पद बात कहती हैं जो सत्य है

“सड़क पर मूत्र विसर्जन करना।”

जूही मिश्रा अपनी बात कहती हैं 

“इस टॉपिक पर तो किताब लिखी जा सकती है-
जोर से हंसना, मर्द हसे तो ठीक, औरत हसे तो बदचलन…
मर्द देर से घर आये तो मेहनती और औरत देर से आये तो बदचलन…
मर्द दोस्तों के साथ बाहर जाये तो मस्ती, अगर औरत दोस्तों के साथ जाये तो वो हो जाती हैं सस्ती और बदचलन…
मर्द निकर में घूमे तो कूल-डूड लेकिन औरत निकर पहन ले तो देह प्रदर्शन और बदचलन…
यहाँ तक की जॉब इंटरव्यू में औरत को पूछा जाता है कि आप घर बच्चे और ऑफिस कैसे मैनेज करेंगी…
मर्द सिगरेट और शराब पीता है तो चिल करता है और यही काम औरत करे तो तो पक्का बदचलन…
मर्द अगर नाइट शिफ्ट करे तो कितना ख्याल है उसको अपनी फैमिली का और अगर यही काम औरत करे तो हो जाएगी बदचलन…”

इन बातों का कोई अंत नहीं है ठीक वैसे ही, जैसे हमारे समाज के दोगलेपन का अंत नहीं है। इसलिए बदचलन नारी हर वो नारी है जो अपने मन मुताबिक काम कर रही है, जीवन जी रही है और समाज के हथकंडों का शिकार बनकर शोषित नहीं हो रही है।

जैसा कि हमारी एक पाठक, तृप्ति शर्मा ने एकदम सटीक बात कही है 

“अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने वाली हर नारी, समाज के लिए बदचलन ही हो जाती है।
सुनो लड़कियों, घुट घुट कर मरने से बेहतर है ढ़ोंगी लोगों की नज़र में बदचलन हो जाना।”

मूल चित्र : Dhruv Kadam via Unsplash

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Sehal Jain

Political Science Research Scholar. Doesn't believe in binaries and essentialism. read more...

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