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तेरा दर्द मैं समझ सकती हूं लेकिन तुझे ही गाली देंगे। तेरे ही चरित्र पर उंगलियां उठाई जायेंगी। तू ये केस वापिस ले ले वरना...
तेरा दर्द मैं समझ सकती हूं लेकिन तुझे ही गाली देंगे। तेरे ही चरित्र पर उंगलियां उठाई जायेंगी। तू ये केस वापिस ले ले वरना…
चेतावनी : इस कहानी में मैरिटल रेप का विवरण है जो कुछ लोगों को परेशान कर सकता है।
“आकाश दरवाजा खोल बेटा सुबह के नौ बज चुके हैं और बहू को भी बोल दे तैयार हो के बाहर आने के लिए।”
गीता जी ने अपने बेटे और नई नवेली बहु पायल को आवाज लगायी ही थी कि “भाभी भाभी” की आवाज़ उनके कानों में पड़ी। देखा तो उनकी ननद रमा डरी सहमी सी उनकी तरफ ही चली आ रही थी।
रमा ने उनके कानों में आ के धीरे से कहा, “भाभी बाहर पुलिस आयी है। आकाश को पूछ रही है।”
“क्या कह रही हो जीजी! इतनी सुबह? लेकिन क्यों?”
“वो तो पता नहीं चला मुझे। बाहर ही सारे भैया और आप के ननदोई उन लोगों से बात कर रहे हैं।”
तभी आकाश के पिताजी रमेशचंद्र जी अंदर आते हैं। और गीता जी को अंदर कमरे में बुलाते हैं और बताते हैं कि किसी महिला ने आकाश पर बलात्कार करने का आरोप लगाया है। आकाश को पुलिस स्टेशन जाना होगा।
गीता जी अपना सिर पकड़ कर वही जमीन पर गिर जाती हैं कि तभी उनके कानों में आकाश की आवाज पड़ती हैं। जो उन्हें “माँ माँ” कहकर सभी जगह ढूंढ रहा था।
“हाँ! बेटा।”
“मैं कब से आपको बुला रहा हूं? क्या हुआ आप इतनी परेशान क्यों दिख रही हैं? जमीन पर ऐसे क्यों बैठी है?”
“बेटा! सच सच बता, तूने किसी के साथ औरत के साथ कुछ गलत तो नहीं किया ना?”
“नहीं माँ! आप ये सवाल क्यों पूछ रही हैं? पापा क्या बात है? बोलिए”
“बाहर पुलिस तुझे बुला रही हैं बेटा।”
“क्या? लेकिन क्यों? मैंने तो कुछ भी नहीं किया। किस जुर्म में लेकिन?”
गीता जी और रमेशचंद्र जी आकाश के साथ घर के बाहर निकलते हैं। आकाश पूछता रहता है कि आखिर मैंने किया क्या है? तभी पुलिसवाले बोलते हैं, “चलिये थाने पता चल जाएगा।”
गीता जी ननद को आवाज़ देती है, “जीजी! दुल्हन को पता ना चले, हम लोग अभी आते हैं।” सभी पुलिस स्टेशन पहुंचते हैं।
“इंस्पेक्टर साहब, वो लड़की एक नम्बर की झूठी है। कहाँ हैं? बुलाइये उसको।”
“मेरे बेटे की तो कल शादी हुई है वो तो कल रात अपनी पत्नी के साथ था।”
“कहिये। इंस्पेक्टर साहब! क्यों बुलाया आपने? मैं उमाकांत सिंह और ये मेरी पत्नी रूपा।”
“अरे! समधी जी! आप यहाँ क्यों?” कहते हुए उमाकांत जी की नजर साथ में खड़े दामाद और समधन पर पड़ी दोनो वहीं थे।
“क्या बतायें समधी जी, किसी ने शिकायत की है आकाश की।”
“क्या? लेकिन किस बात की?”
तभी एक सिपाही उनको अंदर बुलाता है। सब अंदर जाते हैं। देखते हैं कि लाल जोड़े में सजी हुई एक लड़की जो दिखने में तो दुल्हन लग रही थी लेकिन जिसके हांथो की लाल चूड़ियां की जगह लाल खून से लिपटे चोट ने ले ली हैं, होठो के लाल रंग की जगह सूजे हुए होठ पर दांतों के निशान, बिखरे बाल, फटे लाल रंग का जोड़ा जो चीख-चीख कर दुल्हन के साथ हुए अत्याचार को बयान कर रहा था।
दुल्हन को देखते सबकी प्रश्न करती नजरें आकाश की तरफ देखने लगी कि तभी गुस्से से तमतमाया चेहरा झुकाए हुए आकाश ने गुस्से भारी नजरो से उस लड़की को देखा। दुल्हन के साथ मौजूद महिला पुलिसकर्मी पूछती है, “पायल! क्या यही है वो पुरूष जिसने तुम्हारे साथ ये किया।”
पायल हाँ में सिर हिलाते हुए जवाब देती है। तभी उमाकांत जी अपनी बेटी की ऐसी हालत देख के रो पड़ते हैं औऱ पायल के माता पिता उसे अपने सीने से लगा लेते हैं। तभी रमेशचंद्र जी कहते हैं, “बहु तुम यहाँ कब आयीं और कैसे? अगर कोई बात थी तो हमे बताया होता। हम समझाते आकाश को। ऐसे पुलिस चौकी आ के तमाशा बनाने की क्या जरूरत थी?”
तभी गीता जी कहती हैं, “इंस्पेक्टर साहब ये कोई लड़की नहीं बल्कि हमारी बहु और आकाश की पत्नी हैं। पारिवारिक मामला है। हम मिल बैठ कर सुलझा लेंगे। चलो, बहु! घर अभी सभी मेहमान घर पर मौजूद हैं। हम आकाश को वही सजा देंगे जो तुम चाहोगी। समधन जी आप दोनों ही समझाइये। ये दोनों ही घरों के लिए शर्म की बात है। समाज में बहुत थू-थू होंगी और दस मुँह सौ बातें होंगी।”
तब उमाकांत जी कहते हैं, “इंस्पेक्टर साहब, क्या हम थोड़ी देर अकेले में बात कर सकते है? बड़ी मेहरबानी होगी।”
“ठीक है”, कह के इंस्पेक्टर वहाँ से चला जाता है।
तब उमाकांत जी कहते हैं, “बेटा ये सब क्या है?”
पायल की माँ रूपा जी रोते हुए कहती हैं, “बेटा तेरा दर्द मैं समझ सकती हूं लेकिन ये समाज तुझे ही गाली देगा। तेरे ही चरित्र पर उंगलियां उठाई जायेंगी। तू ये केस वापिस ले ले और घर चल वरना समाज तुझे बेशर्म दुल्हन कहेगा।”
पायल चुपचाप सबकी बातें सुन रही थी कि तभी आकाश बोलता है, “कहेगी नहीं माँजी! ये बेशर्म दुल्हन ही है जिसे आप लोगों ने आवश्यकता से अधिक छूट दे रखी थी। जिसका ये नतीजा है। अगर इसका चरित्र और संस्कार अच्छे होते तो आज ये ना करती। अपने ही पति को गैर मर्द बना के बलात्कार का इल्जाम ना लगाती।”
तभी एक जोरदार चाटा पायल आकाश के गाल पर मारती हैं। वहाँ मौजूद सभी लोग पायल की तरफ देखने लगते है। तब पायल ने कहा, “मिस्टर आकाश चरित्र और संस्कार की बातें तुम्हारे मुँह से अच्छी नहीं लगतीं। जिस पति ने अपनी पत्नी की बिना इच्छा जाने उसके कौमार्य की परीक्षा ली, उसको मुझे अपनी पवित्रता साबित करने के लिए खून की कुछ बूंद दिखानी पड़ीं। जो आदमी शराब के नशे में धुत अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए किसी जंगली जानवर की तरह अगर एक औरत के शरीर को नोचता है, उसे क्या कहते हैं? खून की कुछ बूंदें देखने के लिए तुमने मेरे लाख मिन्नतें करने पर भी मेरे साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए। मुझे मारा, मेरे साथ जोर जबर्दस्ती की, हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं तो तुम्हारी नजर में इसे क्या कहते हैं?”
“एक चुटकी सिंदूर लगा देने से तुम्हें ये अधिकार मिले है कि तुम कुछ भी करो मेरे साथ और मैं उस सिंदूर की कीमत चुकाऊँ और बदले में तुम्हें अपना पति मान के तुम्हारी पूजा करुँ तो ऐसा नहीं हो सकता। पति तो वो होता है, जो अपनी पत्नी के मान मर्यादा की रक्षा करता है।”
“मैं तुम्हें अपना पति नहीं मानती। ना ही मैं ये केस वापिस लूंगी। क्योंकि पति पत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास, एक दूसरे की भावनाओं के सम्मान, और प्यार पर टिका होता है। जो हमारे बीच तो नहीं हैं। जिंदगी भर समाज के डर से ये बोझ उठाने या आत्महत्या करने से अच्छा है कि मैं अभी फैसला ले लूं और हाँ तुम जैसे इंसान को सजा दिलाने के लिए लोग मुझे बेशर्म दुल्हन भी कहे तो मंजूर है। लेकिन मैं अपने सम्मान से समझौता नहीं करूंगी।”
“बाबूजी मैं रात निकल में ही निकल आयी थी जब आप का बेटा इतने शराब के नशे में था कि ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था अपने पैरों पर और आप की छुपाई गयी, हर सच्चाई को परत दर परत खोले जा रहा था।”
“समधी जी हम अपनी बेटी ले जा रहे हैं। अगर हमें आकाश की सच्चाई पहले पता होती तो हम अपनी बेटी की शादी आकाश से कभी नहीं करते।”
दोस्तों ये काल्पनिक कहानी है। लेकिन महिलाओं के शोषण का ये भी एक रूप है जिस पर लोग समाज में बात नहीं करना चाहते। अगर मेरी कहानी या शब्दों से किसी की भावना आहत हो तो माफी चाहूंगी।
मूल चित्र : rv images from Getty Images Signature, via Canva Pro
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