कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
उम्मीद थी अशोक भैया शायद भाभी को कुछ कहें, पर बड़े घर की बीवी और दहेज के सामान ने उनकी बुद्धि बदल दी थी।
“दीदी स्टेशन पे आ गया हूँ मैं, तुम अपने सीट पे ही रहना मैं आ जाऊंगा…”
“हाँ ठीक है वीनू”, मैंने कहा और फ़ोन वापस अपने पर्स में रख मैंने नज़रे खिड़की के बाहर टिका दी। पेड़, पौधे, खेत और घर सब तेजी से पीछे की ओर भाग रहे थे और मेरा मन भी मेरे बचपन की ओर भाग रहा था।
अशोक भैया, मैं और विनीत, जिसे प्यार से मैं वीनू कहती, अपने माँ बाबूजी के साथ बनारस में रहते थे। बाबूजी पोस्टऑफिस में बड़ा बाबू थे। माँ एक घरेलु महिला थी। पुश्तैनी घर था हमारा बनारस में, कमाई तो ज्यादा नहीं थी बाबूजी की लेकिन प्रेम बेहिसाब था।
तीनों भाई बहन संग संग खेलते बड़े हो रहे थे। बहुत मेहनत से बाबूजी और माँ ने हम तीनों भाई बहन को पढ़ाया लिखाया था। अशोक भैया की नौकरी बैंक में लग गई अच्छी नौकरी थी रिश्ते भी बड़े बड़े घरों से आने लगे।
सब देख सुन के ऋचा भाभी का परिवार पसंद आ गया सबको। भाभी भी देखने में सुन्दर और पढ़ी लिखी थी जल्दी शादी हो गई।
मायका समृद्ध था, भाभी का खूब दहेज मिला साथ में। भाभी का सामान भी एक से बढ़ कर एक था। इतने सुन्दर सुन्दर गहने, कपड़े, मेकअप का सामान देख मेरी ऑंखें फटी रह जाती। उम्र भी ऐसी ही थी की स्वतः मन आकर्षित हो जाता।
एक दिन भाभी को कमरे में ना पा उनकी लिपस्टिक लगाने लगी तभी भाभी ने देख लिया और घर में हंगामा मचा दिया, “ख़बरदार जो मेरे सामान को हाथ भी लगाया। कभी देखा भी है ऐसी ब्रांडेड मेकअप के सामान को…?” ऑंखें दिखाती भाभी मुझे पे बरस पड़ी और माँ ने अपनी क़सम दे मुझे चुप करा दिया।
उम्मीद थी अशोक भैया शायद भाभी को कुछ कहें, पर बड़े घर की बीवी और दहेज के सामान ने उनकी बुद्धि बदल दी थी। वो भी आये और मुझे ही डांट कर चले गए, और अपमानित होकर भी मैं चुप लगा बैठी रही।
घर में आने वाले समय को शायद बाबूजी ने भांप लिया था और जल्दी मेरी शादी नवीन से हो गई।ससुराल ऐसा मिला जहाँ पहले से ही मेरी सासू माँ ने हर रंग हर ब्रांड के मेकअप और कपड़ों से मेरा कमरा सजा दिया था।
इधर मैं विदा हुई और साल लगते लगते माँ बाबूजी भी एक एक कर चले गए। अशोक भैया तो भाभी के पल्लू से पहले ही बंध गए थे और भाभी ने भी मुझसे कोई संबन्ध रखना उचित नहीं समझा।
मेरा मायका अब ख़तम हो चूका था फिर भी हर तीज त्योहारों में मायके के यादों की टीस उठती और स्वतः दब भी जाती।
कुछ सालों बाद वीनू की नौकरी भी लग गई और अपने साथ काम करने वाली एक लड़की से उसने कोर्ट मैरिज भी कर लिया। करता भी क्या कोई बड़ा था भी नहीं जो उसे घोड़ी चढ़ाता।
एक झटके से ट्रेन रुकी खिड़की से झाँक कर देखा तो वीनू नज़र ही नहीं आ रहा था।
दिल घबरा उठा दिल्ली जैसे शहर में वीनू नहीं आया लेने तो क्या करुँगी? मैं अभी सोच ही रही थी की आवाज़ आयी, “दीदी!” पलट के देखा तो वीनू था, मेरा भाई।
“कितना बड़ा हो गया रे तू वीनू”, कह गले लग गए हम दोनों भाई बहन की ऑंखें आंसुओ में डूब गईं।
“चलो दीदी!” सामान उठा हम घर की ओर चल दिये।
दरवाजा ऋतू ने खोला मेरे वीनू की पत्नी गुलाबी सूट बड़ी बड़ी ऑंखें और मुस्कुराता चेहरा झट से मेरे पैर छू गले लग गई जैसे बरसों से जानती हो। मैंने वीनू को देखा तो वो भी मुस्कुरा रहा था।
“सफर कैसा था दीदी?”
“बढ़िया था ऋतू कोई परेशानी नहीं हुई”, मैंने कहा।
नहा धो कर आयी तो खाना तैयार था।
“देखो दीदी सब कुछ तुम्हारी पसंद का बना है आज। ये देखो दही-बड़े भी बनाये हैं ऋतू ने। याद है माँ बनाया करती थीं और आप चुपके चुपके कितना खा जाती थीं?” उत्साह से वीनू बोलता जा रहा था।
“खाना बहुत स्वाद बना है ऋतू”, मेरे कहते ही बच्चों सा चेहरा खिल उठा।
दो दिन रही वहाँ और दोनों दिन मेरे छोटे भाई भाभी ने मुझे सिर आँखों पे बिठा के रखा। थोड़ा अजीब भी लगा। आदत ही नहीं थी मायके के ठाट और मायके के लाड लगवाने की।
वापस आने वाले दिन ऋतू सुन्दर सी साड़ी, बिंदी, सिंदूर और एक लिफाफा ले कर आयी, “ये भी रख लीजिये दीदी।”
“नहीं नहीं, इसकी क्या जरुरत है ऋतू?”
“क्यों नहीं दीदी? अगर माँजी होती तो आपको देती ना? फिर भी आप मना करती क्या?ये तो आपका हक़ है, तो हक़ से लीजिये दीदी।”
अपनी छोटी भाभी के मुँह से ये सब सुन ऑंखें बरस पड़ीं, “सच कहा ऋतू, ये तो मेरा हक़ है। जरूर लूंगी”, और दोनों नंद भाभी गले लग रो पड़ीं। हमें देख वीनू की ऑंखें भी भर आयी।
“मुझे पाता है दीदी, इतनी बार बुलाने पर भी आप क्यों नहीं आती थीं, लेकिन दीदी सारी भाभियाँ एक सी नहीं होतीं। आपका मायका हमेशा बना रहेगा ये मेरा वादा है।”
अपने भाई भाभी को ढेरों आशीर्वाद और प्यार दे मैं आ गई वापस अपने ससुराल, अगली छुट्टियों में वापस जाने को क्यूंकि मेरी छोटी भाभी ने आज मेरा मायका जो लौटा दिया था।
मूल चित्र : FatCamera from getty Images Signature via Canva Pro
read more...
Please enter your email address