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अगर तुम कहते हो कि घर मेरा है तो इसे अपना लगने तो दो…

जहां मेरे देर से आने को जिम्मेदारी समझा जाये, मौज नहीं और जहां मुझे भी थकने पर अदरक वाली चाय मिले, नसीहत नहीं...

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जहां मेरे देर से आने को जिम्मेदारी समझा जाये, मौज नहीं और जहां मुझे भी थकने पर अदरक वाली चाय मिले, नसीहत नहीं…

मेरा घर कहाँ है?
जहाँ गर्म रोटियाँ
मेरी भी हों, 
सुबह का अखबार
मेरा भी हो,
निर्णय में राय मेरी भी हो। 

जहां ना हो मेरे
साधारण खर्चों का हिसाब,
जहा मैं बेबाक अपनी माँ को रहने को कह दूँ
जहां मेरे पापा हक से आएँ। 

जहां मेरे देर से आने को
जिम्मेदारी समझा जाये, मौज नहीं
जहां मुझे थकने पर
अदरक वाली चाय मिले, नसीहत नहीं। 

जहां मैं गलती करूँ
और लोग आसानी से भुला जायें,
जहां मेरा अपना कोना हो
सब पूछ के आएँ। 

जहाँ मेरी इज्जत हो,
आखिर मुझे भी 
कुछ सुकून चाहिए,
कुछ और चाहिए
कुछ अपनापन, थोड़ा प्यार, थोड़ी ममता
थोड़ा सम्मान, थोड़ी फिक्र। 

अगर तुम कहते हो कि घर मेरा है
तो इसे अपना लगने तो दो…

मूल चित्र : Media Production from Getty Images Signature, via CanvaPro 

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Gayatri Prabha Karan

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