कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

ये मम्मियों वाले काम मेरे से नहीं होते…

जब से सोहम हुआ था निधि का अकेले अपने दोस्तों के साथ कहीं आना जाना बंद हो गया था, जबकि नीलाभ अपने दोस्तों के साथ घूमने निकल जाता।

जब से सोहम हुआ था निधि का अकेले अपने दोस्तों के साथ कहीं आना जाना बंद हो गया था, जबकि नीलाभ अपने दोस्तों के साथ घूमने निकल जाता।

“नीलाभ, प्लीज ज़रा सोहम को थोड़ी देर देख लो मुझे पड़ोस वाली सीमा भाभी ने जरुरी काम से थोड़ी देर के लिये बुलाया है।”

“क्या यार निधि ये मम्मियों वाले काम मुझसे नहीं होते। तुम इसे साथ ले जाओ या फिर जाओ ही मत लेकिन मैं बेबी सिटींग नहीं करूँगा।”

“इसमें बेबी सिटींग की क्या बात है नीलाभ? सोहम बेटा है तुम्हारा। उसका सारा काम तो मैं ही करती हूँ। आज तुम घर पे हो तभी तो बस आधे घंटे सोहम को संभालने को बोला तुम्हें।”

“मुझसे नहीं होगा निधि तुम खुद देख लो!” इतना कह नीलाभ अपने फ़ोन में लग गया और बात आगे ना बढ़े इसलिए निधि ने सोहम को अपने साथ ही ले जाना ही उचित समझा।

निधि अपने पति नीलाभ और दो साल के बेटे सोहम के साथ दिल्ली में रहती थी। उनका सारा परिवार कानपुर में था। नीलाभ अपने बेटे से प्यार तो खूब करता लेकिन उसका कोई काम अगर निधि करने को कह देती तो वो ये कह कि ये तो ‘मम्मियों वाले काम हैं’ मुझसे नहीं होगा, कह पल्ला झाड़ लेता।

छोटे बच्चे के साथ निधि परेशान हो जाती। जब से सोहम हुआ था उसका अकेले अपने दोस्तों के साथ कहीं आना जाना बंद हो गया था, जबकि नीलाभ अपने दोस्तों के साथ जब मौका मिलता घूमने निकल जाता।

निधि को अपने पति पे बहुत गुस्सा आता लेकिन घर में तनाव ना हो तो वो चुप रह जाती। कुछ समय बाद नीलाभ के मम्मी पापा का दिल्ली आने का प्लान बना।  निधि ने अपने सास ससुर का बहुत ख्याल रखती और मान देती थी। वे दोनों भी निधि को बेटी सा स्नेह देते। अपने दादु-दादी के साथ सोहम खूब खेलता और ख़ुश रहता। अब निधि को भी थोड़ा आराम हो गया था।

निधि के ससुर जी मोहन जी ने ये नोटिस कर लिया था कि नीलाभ सिर्फ साफ सुथरे और हँसते सोहम को ही खिलाता। जब भी सोहम रोता या खुद को गन्दा कर लेता, नीलाभ “निधि-निधि” चिल्लाने लगता, “निधि सोहम ने गीला कर दिया चेंज कर दो” या फिर “सोहम रो रहा है, इसे चुप कराओ।”

जब भी मोहन जी कहते, “नीलाभ, अगर सोहम रो रहा है तो इसे बाहर घुमा दो” या “निधि रसोई में है, इसके कपड़े तुम बदल दो”, तो नीलाभ का तो एक ही रटा रटाया जबाब होता, “क्या पापा अब ये मम्मियों वाला काम भी मैं ही करूँ क्या?” मोहन जी को भी अपने बेटे के इस व्यवहार पे बहुत गुस्सा आता।

इस बीच ख़बर आयी कि निधि के पापा की तबीयत ठीक नहीं, तो निधि अपने भाई के साथ मायके चली गई और पीछे से नीलाभ का एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया। ईश्वर का शुक्र था ज्यादा चोट नहीं आयी थी बस पैर में माइनर फ्रैक्चर था और डॉक्टर ने चार हफ्ते के लिये बेड रेस्ट बोला था।

निधि ने सुना तो वापस आने को बेचैन हो गई, “पापा आप और मम्मी, आप परेशान हो जायेंगे अकेले।”

“नहीं बेटा! हम बिलकुल परेशान नहीं होंगे। सब संभल जायेगा लेकिन इस वक़्त तुम्हारा वहाँ रहना जरुरी है”, और मोहन जी ने निधि को समधी जी की तबीयत संभलने तक वही रुकने को कह दिया।

एक दोपहर नीलाभ की मम्मी को मार्किट का कुछ काम था, तो वो मार्किट चली गईं। पीछे से नीलाभ ने अपने पापा को आवाज़ दी।

“हाँ नीलाभ, बोलो क्या बात है?”

“पापा भूख लगी है। माँ ने बोला था, खाना बना के रख गई है। आप बस प्लेट में निकाल कर के दे दो मुझे और मेरे बॉटल में पानी भी नहीं है, वो भी भर दीजिये प्लीज।”

नीलाभ की बात सुन कर भी अनसुनी कर मोहन जी मुस्कुराते हुए वहीं आराम कुर्सी पे बैठ अख़बार पढ़ने लगे। अपने पापा को अख़बार पढ़ते देख नीलाभ को लगा शायद उन्होंने सुना नहीं, “पापा खाना दे दो, बहुत भूख लगी है।”

“देख बेटा, ये मम्मियों वाले काम मुझे ना बोल। ये तो तेरी मम्मी मार्किट से आ कर ही तुझे देंगी। हाँ पापा वाले कोई काम हो तो बता, वो मैं अभी कर देता हूँ।”

“ये क्या कह रहे हैं आप पापा? मुझे भूख लगी है, खाना ही तो देना है। इसमें मम्मी और पापा के काम कहाँ से आ गए?” नीलाभ ने चौंक कर पापा को कहा।

“अब इसकी परिभाषा तो तुझे ही पता होगी नीलाभ क्यूंकि मैंने तो तेरे ही मुँह से अक्सर सुना है जब तू निधि से कहता है। जब कभी वो सोहम का कोई काम तुझे करने को कहती है, तो तेरा यही ज़वाब होता है, ‘ये तो मेरे नहीं मम्मियों वाले काम हैं!'”

मुस्कुराते हुए मोहन जी ने कहा तो नीलाभ भी मुस्कुरा उठा, “मैं समझ गया पापा, आप मुझे क्या समझना चाहते हैं। सॉरी पापा, मैं निधि की मदद नहीं करता सोहम को संभालने में, लेकिन आज मैं समझ गया। जब बात बच्चे को पालने की होती है, तो कोई भी काम मम्मी या पापा का नहीं, उनका साँझा होता है।

“आज जिंदगी का बहुत बड़ा पाठ अपने कितनी आसानी से समझा दिया पापा। मैं वादा करता हूँ आइंदा आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।” अपने बेटे की बातों को सुन मोहन जी ने उसे गले लगा लिया।

“अब तो खाना खिला दो पापा। अब आपकी बहु को कभी परेशान नहीं करूँगा”, अपने कान पकड़ नीलाभ बोला तो मोहन जी भी खिलखिला उठे।

मूल चित्र : greenperture from Getty Images Signature, via Canva Pro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,907,737 Views
All Categories