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प्रश्न आने वाली पीढ़ियों को खोखली मान्यताओं से आज़ाद कर, वास्तविकता से जुड़ी परंपराओं को बिना उलझाए, संभाल-सहेज रख आगे बढ़ाने का है!
सुनो स्त्रियों, अपने व्रत-त्यौहार की सदियों पुरानी कथाओं को बाँच-सुन-पढ़ कर व्रत संपूर्ण करने से पहले, जरूरी लगे तो बेधड़क करो उनमें कुछ ज़रूरी बदलाव !
जहां लिखा हो ‘पुत्रवती’ भव, एडिट करो ‘संतानवति’ भव! जहां लिखा हो सभी ‘पत्नियां व्रत करें, एडिट करो सभी ‘दंपति’ व्रत करें !
क्योंकि प्रश्न आने वाली पीढ़ियों को खोखली मान्यताओं से आज़ाद कर, वास्तविकता से जुड़ी परंपराओं को बदलते सामाजिक परिवेश में प्रैक्टिकल होते रिश्तों के तानेबाने में बिना उलझाए बुनकर, संभाल-सहेज रख आगे बढ़ाने का है!
क्योंकि प्रश्न तीज-त्योहारों की इन लोक कथाओं को, चुपचाप, श्रद्धापूर्वक सुनकर मन ही मन रोती उस स्त्री का भी है, जो माँ हैं ‘बेटी’ की, जो पालती हैं ‘पति’ को, जो चलाती हैं ‘घर’ को !
मूल चित्र : Intellistudies from Getty Images via CanvaPro
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