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हम फिर से उठेंगे, एक समाज की इज्जत की तरह नहीं, एक बराबरी पाने वाले व्यक्ति की तरह, हम, फिर से जीएँगे, एक साधन की तरह नहीं, पर अपने लिए।
हमारे शरीर को तार-तार किया गया हमारे ज़िस्म को बार बार दर्द दिया गया मुँह बंद कर, हमारी पीड़ा को भी सताया गया हम, कुछ नहीं जैसे, वैसे हमे तड़पाया गया।
हम, वो हैं जो घुटें, दबे, सहमे हैं हम, रोते, बिलखते, अपने से ही नफरत करते, क्योकि वो कहते हमारे पास अब कोई चारा नहीं।
वो, हमे साधन समझते, अपने बदले का, नफरत का, धोखा देने का, औक़ात दिखाने का, और इसलिए, “मैं”, मैं नहीं इज्जत हूँ उनके समाज की।
हम, उनकी शर्म हैं, अभिमान नहीं, सम्मान नहीं, तभी, हमारी यौन सुरक्षा जरुरी, सपनों की सुरक्षा नहीं। हम, पवित्रता हैं समाज की, बाधाओं से मुक्ति की भी धर्म, जात-पात के भेदभाव से मुक्ति की भी तभी तो, वो बांधते हैं हमे रोकते हैं हमे, पितृसत्ता को चुनौती देने से, नया सम्मानता से भरा समाज बनाने से।
पर, हम फिर से उठेंगे, एक समाज की इज्जत की तरह नहीं, एक बराबरी पाने वाले व्यक्ति की तरह। हम, फिर से जीएँगे, एक साधन की तरह नहीं, पर अपने लिए।
वो जो कलंक लगा था हम पर , वो हमारा था ही नहीं, क्योकि हम पहले भी बेदाग़ थे और आज भी। हम फिर से चलेंगे, अपने हक़ की खातिर क्योकि जब तक हम कमजोर हैं, वो मज़बूत रहेंगे।
मूल चित्र : CartLane from Getty Images Signature via Canva Pro
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