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रेडीमेड के ज़माने में रसोई की टेंशन क्यों लें…

रवि मुझे समझ नहीं आ रहा कि सब काम का इतना टेंशन क्यों ले रहे हैं? जबकि मिठाई से लेकर सजावट के समान तक सब कुछ बाजार में मिल जाते हैं।

रवि मुझे समझ नहीं आ रहा कि सब काम का इतना टेंशन क्यों ले रहे हैं? जबकि मिठाई से लेकर सजावट के समान तक सब कुछ बाजार में मिल जाते हैं।

“बहु! बस चार दिन बचे हैं दीवाली में, सामान की लिस्ट बना लो तो आज शाम को ही बाजार से लेते आएंगे।” गरिमा जी ने गुलाब जामुन तलते हुए अपनी बहू रंगोली को आवाज देते हुए कहा।

गरिमा जी अपनी देवरानी सुगंधा के साथ रसोई में दीवाली की मिठाईयां बना रही थी।
जवाब में रंगोली ने अपने कमरे से “अच्छा! मम्मी जी” कहकर चुप हो गयी।

रंगोली की शादी गरिमा जी के बेटे रवि से लव मैरिज हुई थी। रंगोली एकल परिवार से आधुनिक विचारों की थी। और रवि का संयुक्त परिवार जो आधुनिकता के साथ साथ अपनी सभी संस्कृति और पारंपरिक परम्पराओं को मानता था।

रंगोली ने अपने पति रवि से कहा, “रवि मुझे समझ नहीं आ रहा कि सब काम का इतना टेंशन क्यों ले रहे हैं? जबकि मिठाई से लेकर सजावट के समान तक सब कुछ बाजार में मिल जाते हैं।”

तभी गरिमा जी आँचल में हाँथ पोछते हुए हॉल में आयीं और सोफे पर बैठते हुए कहा, “बहु सामान की लिस्ट देना।”

रंगोली ने सामान की लिस्ट देते हुए कहा, “माँजी पहले तो ये पानी पीजिए। पिछले एक सप्ताह से आप दीवाली के कामों में परेशान हैं। मुझे आपको यू परेशान होते देखा नहीं जा रहा इसलिए कह रही हूँ। मैं और रवि ऑफिस के काम मे व्यस्त रहते हैं। और मुझे कुछ ज्यादा पता भी नहीं इन रस्म रिवाजों के बारे में।  कोरोना की वजह से  किसी को हेल्प के लिए भी नहीं बुला सकते। इसलिए अब बस! आपने और चाचीजी ने बहुत काम कर लिए।”

गरिमा जी ने लिस्ट पढ़ते हुए कहा, “जरा पेन देना तो बहु।”

“ये लीजिये माँजी”, रंगोली ने कहा।

“आओ बैठो बहु कुछ बताती हुँ तुम्हें। पता है रंगोली तुमने सही कहा, बाजार में सब कुछ मौजूद है। पैसों से सब कुछ मिलेगा। लेकिन पता है रंगोली इस घर मे मौजूद चीज नहीं मिलेगी। वो है हम सब का एक दूसरे से प्यार, लगाव और सहयोग की भावना।”

पिछले कुछ महीनों से हम सब एकसाथ इस घर में हैं। लेकिन कभी किसी ने किसी काम को लेकर शिकायत नहीं की। तुमने ये नोटिस नहीं किया शायद। क्योंकि इस घर के हर काम को माँजी ने (दादी सास) ने हम सब को मिल बाँट कर करना सिखाया। तुम्हारी पहली दीवाली है इस घर में  इसलिए तुम्हें नहीं पता। दीवाली के अगले दिन हम सब घर की औरतें आराम और पुरूष मिल कर घर के काम करेंगे।”

“क्या सच्ची माँजी? सच दादी?” रंगोली ने आश्चर्य से पूछा। “लेकिन मुझे तो कोई काम ही नहीं  बताया किसी ने कि मैं क्या करूँगी।”

तब सुगंधा ने कहा, “हमारी रंगोली बहु दीवाली की रंगोली और घर की साज सजावट तुम्हें ही करनी है। मैं और दीदी रसोई सम्भालेंगे। वैसे भी कल दोपहर में ही रात का भी खाना बन जाएगा तो बस आराम ही आराम।”

चाची जी ये तो दो मिनट का काम है रंगोली के स्टिकर ला कर लगा दूँगी और लाइट्स तो हो गया।

“”ना बहु, रंगोली तो रंगोली के रंग बिरंगे रंगों से बनेगी और मिट्टी के दीयों से घर सजेंगे”, दादी सास ने कहा।

“लेकिन दादी इतना क्यों करना? कोई बाहर से तो आने वाला नहीं सजावट को देखने, हम घर के ही लोग रहेंगे। तो फिर इतना क्यों करना?” रंगोली ने कहा।

“बहु रानी हर काम दूसरों को दिखाने के लिए क्यों करना? कुछ काम आत्मसंतुष्टि के लिए और परिवार के साथ खुशी मनाने के लिए भी करना चाहिए।”

ईश्वर की दया से हम इस महामारी से बचे हुए हैं। ईश्वर ने हमें मौका दिया है खुशी को एक साथ मनाने का तो हमें वो मौका नहीं गवाना चाहिए। खुशी खुशी हम सब मिलकर पारम्परिक तरीके से दीवाली त्यौहार मनाएंगे।”

“लेकिन माँजी मिट्टी के दीये जलाकर तेल क्यों बर्बाद करना?” रंगोली ने कहा।

“बहु मिट्टी के दीये खरीद कर हम एक गरीब का घर भी रौशन करेंगे और बिजली की बचत भी।  और जो रौनक दीये की रोशनी में है, वो इस बिजली के सजावट में कहाँ? हमारे देश में त्यौहार केवल जश्न मनाने या दिखावे के लिए नहीं होते। हम त्यौहार तो अपनो से मिलने, एकदूसरे से प्यार और खुशियाँ बाँटने के लिए मनाते हैं”, गरिमा जी ने कहा।

“जी माँजी आप सब बिलकुल सही कह रही हैं। मैं भी रंगोली की कुछ डिजाइन सर्च करती हूँ क्योंकि मैंने पहले कभी बनाई नहीं। लेकिन कोशिश जरुर करूँगी।”

तभी पीछे से आकर रवि ने कहा, “तुम चिंता मत करो, मुझे आती है। मैं बना दूंगा, तुम बस मेरी मदद कर देना।”

“क्या ?तुम्हें रंगोली बनानी आती है?” रंगोली ने कहा।

“हाँ ,रंगोली मुझे रंगोली बनानी आती है क्योंकि इससे पहले मैं ही रंगोली बनाता था हर साल दीवाली पर।”‘

“वाओ! फिर तो ये दीवाली बहुत ही अमेजिंग होगी।” और सब मिलकर हँस पड़े।

चित्र साभार : rvimages from Getty Images Signature via CanvaPro 

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