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अब वो बदल चुकी थी और उसके रिश्तों के मायने भी…

बहु जो होना था हो गया। ये सब तो भगवान की मर्जी होती है। लगता है कि समधन जी के कर्मों की कमाई अच्छी नहीं थी जो पति और बेटा दोनो चले गए।

बहु जो होना था हो गया। ये सब तो भगवान की मर्जी होती है। लगता है कि समधन जी के कर्मों की कमाई अच्छी नहीं थी जो पति और बेटा दोनो चले गए।

रमा अस्पताल में तेज कदमों से भागा दौड़ी में लगी हुई थी। कभी बिल काउंटर पर जाती तो कभी नर्स के आगे पीछे। इमरजेंसी रूम के बाहर तेज कदमों से इधर से उधर करती रमा अकेली खड़ी थी कि तभी उसके पति रमेश का फोन आया।

रमेश ऑफिस के काम से दो दिनों के लिए शहर से बाहर गया हुआ था।

“हेल्लो! रमा कहाँ हो?”

“सेकंड फ्लोर पर आ जाओ। यही हूँ इमरजेंसी वार्ड के बाहर।” रमा ने कहा।

“रमा ये सब कैसे हुआ? अभी कल तक तो माँ ठीक थी?” रमेश ने कहा।

थोड़ी देर में ननद सुधा और नदोई सुरेश भी आ गए। एक ही शहर मे होने की वजह से ननद नदोई को आने में देर ना लगी।

“रमेश! वो अचानक माँ जी रात का खाना खाते खाते गिर गयी और बोल नहीं पा रही थी। तो मैं तुरंत अस्पताल ले के आ गयी।”

तभी सुधा अपने भाई से गले लग के रोने लगी। “भाई माँ को कुछ होगा तो नही ना।मुझे बहुत डर लग रहा है।”
“नही सुधा। तू चिंता मत कर। सब अच्छा होगा।”

दोनो भाई बहन को देखकर रमा पुरानी यादों में चली गयी।

“हेल्लो! पापा ये क्या बात हुई? आप लोग शादी में नही आ रहे हो। सिर्फ एक सप्ताह की तो बात थी। इसी बहाने मिलना भी हो जाता। फिर आप भाई के साथ विदेश चले जाते। पता नहीं फिर कब मिलना होगा। शादी का घर नहीं होता तो मैं खुद ही आ जाती।”
“बेटा! तू अपनी जिम्मेदारी निभा। ससुराल की इकलौती बहु है और लड़की की शादी में तो वैसे भी ढेरों काम होते हैं। अच्छे से खयाल रखना अपनी ननद का। यही यादें हर लड़की के साथ जिंदगी भर रहती है बेटा। बहुत खास होता है ये पल हर लड़की के जीवन का। अगर अभय (रमा का भाई) को जरूरी काम ना होता तो हम रुक जाते। अच्छा! समधन जी से कहना कि शादी में ना शामिल हो पाने के लिए हमे माफ करें। अपनी ननद को मेरा आशीर्वाद देना।”

“वाह! पापा”
“अच्छा लो अब अपनी माँ से बात करो।”

“हेल्लो! रमा तू उदास क्यों होती है? फोन पर बात होती रहेगी। वहाँ के लिए तेरी जिम्मेदारी पहले बनती है। तो तू अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभा।”
“माँ! पहले तो 3 घंटे के रास्ते के लिए मुश्किल से आने को मिलता था। इतनी दूर विदेश कहां आने देंगे ये लोग?”
“अच्छा! सुन ध्यान से मेरी बात मन दुःखी मत कर।”

तभी जोर की आवाज़ हुई… आआआआआ… बचाओ… धड़ाम…

“माँ, माँ, माँ… क्या हुआ? हेल्लो माँ”

अचानक खामोशी छा गयी।

रमा के आंखों से आंसू बहने लगे। उसने अपने सास ससूर, रमेश सबको ये बात बतायी। लेकिन किसी ने कोई भी उत्तर नही दिया। सब अपने कामों में व्यस्त….
तभी रमा का फोन बजा।
रमा ने फोन रिसीव किया।
पता चला कार का एक्सीडेंट हो गया है। सब अस्पताल में एडमिट है। रमा कपड़े पैक करने लगी।

तो सास ने आ के कहा “अरे! तुम कहाँ जाओगी? पता नही कितने दिन लगे शादी का घर हैं, हजारों काम पड़े है। तुम अपने चाचा के लड़कों से कह दो।वो लोग चले जायेंगे। तुम शादी बाद चले जाना।”

रमा के आंसू अब गुस्से में बदल गए। उसने अपने आँसुवो को पोंछते हुए कहा “माँ जी! आज मुझे बेटी की जिम्मेदारी निभाने से कोई नही रोक सकता।”

“शादी क्या, मैं अपने माता पिता के लिए दरवाजे पर बारात भी छोड़ के चली जाऊं। जिसको जो समझना है समझता रहें। मुझे कोई फर्क नही पड़ता।”
रमा को रमेश से उम्मीद थी कि कम से कम वो तो उसका ही साथ देगा लेकिन उसने भी चुप रह कर अपने परिवार का ही साथ निभाया।

रमा अस्पताल पहुंची लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उसके पिता और भाई इस दुनिया से जा चुके थे। माँ ICU में एडमिट थी जिनकी हालत भी ठीक नहीं थी।
ये खबर रमा के ससुराल वालों को भी मिली। अगले दिन रमेश भी आये। लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए।
रमेश ने रमा को फोन दिया और कहा “रमा! ये लो मां बात करना चाहती है।”

रमा ने फोन लिया। तो सास ने कहा “बहु जो होना था हो गया। ये सब तो भगवान की मर्जी होती है। लगता है कि समधन जी के कर्मों की कमाई अच्छी नहीं थी जो पति और बेटा दोनो चले गए। और वो बच गयी। ये सब तो अच्छे बुरे कर्मो का ही फल होता है। तुम रमेश के साथ चली आना। कब तक वहाँ रूकोगी। सुधा को सारे काम करने हो रहे हैं। बेचारी कुछ दिन तो आराम कर ले। ससुराल जाने से पहले। आखिर तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है तुम इस घर की बहु और उसकी भाभी हो।”

इतना सुनते ही रमा ने गुस्से से फोन फेंक दिया और कहा “रमेश आज के बाद तुम अपनी माँ से मेरी बात कभी मत कराना। मैं यहाँ से तब तक नही जाऊंगी जब तक मेरी माँ ठीक नही हो जाती। भले चाहे शादी बीत जाए। अगर मैं आज एक बेटी का फर्ज नही निभा पायी तो मैं शायद कोई और जिम्मेदारी कभी नही निभा पाऊंगी।”

तभी नर्स ने कहा “चलिये! आपको आपकी माँ बुला रही है। उनकी हालत बहुत सीरियस है।”

रमा भागते हुए अंदर गयी।

तभी रमा की माँ ने उसका हाथ पकड़ कर कहा “बेटा तू यहाँ क्यों आयी? अपनी दुनिया संभाल बेटा। और बिलकुल भी रोना नहीं। शायद भगवान की यही मर्जी थी। तेरे रोने से दामादजी और सभी परेशान होंगे। खुशी खुशी शादी में शामिल होना। बहु, पत्नी, भाभी होने के फर्ज निभाना बेटा।”
कहते ही उनकी साँसे टूट गयी।

रमा जोर से दहाड़ मारते हुए रोने लगी। “माँ… माँ… लौट आओ माँ।”

एक पल में रमा की पूरी दुनिया ही पलट गई। अपना कहने और मायके के नाम पर अब कुछ नही बचा था।
अंतिम क्रिया कर्म रमा के चाचा के परिवार ने किया। सबके समझाने पर रमा शादी में शामिल हुई। लेकिन अब रमा बदल चुकी थी और रिश्तों के मायने भी। ये बदलाव सबने महसूस भी कर लिया था। पूरी शादी में सब खुश थे। खूब धूमधाम मचाया गया।
तभी रमेश ने कहा “देखो रमा! तुम बेकार में बात को तूल दे रही हो। शादी के घर मे ऐसे मनहूस सा चेहरा बना के मत घूमो। मरना तो सबको है एक दिन और जो चला गया वो चला गया। आज नहीं तो कल ये तो होना ही था। ऐसे ना सही किसी और तरीके से, तो रो धो के कोई मतलब नहीं।

रमा ने कोई जवाब नहीं दिया। बस ये निश्चय कर लिया कि वो अब इन लोगो के आगे कभी भी रोयेगी नहीं। नाही कभी भी सबके सामने ना अपना दुःख सुनाएगी।
तभी डॉक्टर ने बाहर आ के कहा “ब्रैनस्ट्रोक हुआ है। अभी हालत बहुत सीरियस है। कुछ भी नहीं कहा जा सकता।”
डॉक्टर की बातो से रमा अपनी यादों से बाहर आयी।
पूरे एक सप्ताह बाद डॉक्टर ने कहा “आप घर ले जाकर सेवा कीजिये। कुछ नहीं हो सकता।”

रमा दिनों रात उनकी सेवा चुपचाप करती। तभी बुआ सास मिलने आयी। और रमेश से कहा “क्या करोगे बेटा? सबको अपने कर्म यही भोगने है। किसी जन्म का कुछ बाकी होगा। जो ये दुख देखने पड़ रहे है।”

रमेश और सुधा को इतना सुनते ही गुस्सा आ गया। रमेश ने बुआ को सुनाया “कि क्या किसी के दुःख में ऐसे बात करते है?”

तभी सुधा ने कहा “भाभी! आप चुपचाप सब सुन रही थी और कुछ भी नहीं कहा। आखिर वो आपकी भी सास है। मैं देख रही हूं जब से माँ बीमार हुई है। आपके चेहरे पर कोई शिकन नहीं है।ऐसा व्यवहार तो कोई पत्थर दिल ही करता है। आपकी माँ के साथ भी ये होता तो भी क्या आप यही करती।”

रमा ने कहा “इसमें इतना नाराज होने वाली क्या बात है? ये सब तो भगवान के हाँथ में ही हैं। और जो भी होता है सब अच्छे बुरे कर्मों का फल ही होता है। क्यों रमेश? मनहूस सा चेहरा बना के रखने से कुछ ठीक तो होने वाला नही। और आज नहीं तो कल। ऐसे नहीं तो वैसे। सबको ये दिन तो देखना ही होता है। सही कहा ना मैंने रमेश।”

“और सुधा रही बात माँजी की  तो वो मेरी सास हैं तभी मैं सब कुछ उनका खुद कर रही हूं। दुःख दिखाने के लिए ढोल पीटने की जरूरत नहीं मुझे। भगवान ने चाहा तो बहुत जल्द वो ठीक भी हो जाएंगी। रही बात मेरी माँ की तो क्या सच मे हम दूसरे की माँ को अपनी माँ मान के दुखी हो सकते है? जो दुःख तुम्हे आज महसूस हो रहा है। वो मैंने पहले ही झेला है लेकिन अफसोस तब किसी ने मेरे दुःख को नहीं समझा।”

किसी ने सच ही कहा है”जा के पैर ना फटे बेवाई ते का जाने पीर पराई।”

कह के रमा वहाँ से चली जाती है। पीछे सुधा और रमेश निरुत्तर खड़े रहे।

दोस्तों उम्मीद करती हूं मेरी ये नयी रचना आप सबको पसन्द आएगी। ये पूर्णतया काल्पनिक कहानी हैं। इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नही है। किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए माफी चाहूँगी। इसका सार सिर्फ इतना है कि अपने दुःख के साथ साथ हमे दूसरों के दुःख को भी समझना चाहिए। ना कि अनगरल बातें कर के उसके दुःख को और बढ़ाना चाहिए।

मूल चित्र : Chandrakant Sontakke via Unsplash

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