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रूप रंग की माया!

नहीं है और मुझको सजना सँवरना, तोड़ दिया मैनें वह दन्भी आईना, सँवारना है अब खुद को खुद से, मुझे मोहब्बत है अपने वजूद से!

क्या हूआ जो नहीं है मुझमें रूप रंग की माया, मूरत के साँचे में ढली नहीं है मेरी काया!

दही बेसन खूब लगाया
फिर भी निखरी नहीं हूँ मैं,
ज़रा ज़रा सा टूट गई हूँ
अभी बिखरी नहीं हूँ मैं,
क्या हुआ जो है
रंगत मेरी साँवली,
शरारत करती हूँ
हूँ थोड़ी बावली,
क्या हूआ जो नहीं है मुझमें
रूप रंग की माया,
मूरत के साँचे में
ढली नहीं  है मेरी काया!

बस बहुत हुआ,अब रहने दो
यह रूप रंग का ताना,
रख लो तुम सहेजकर
अपना खूबसूरती का पैमाना,
नहीं है और मुझको सजना सँवरना
तोड़ दिया मैनें वह दन्भी आईना,
सँवारना है अब खुद को खुद से
मुझे मोहब्बत है अपने वजूद से!

यह नीला गगन,यह उन्मुक्त आकाश
हक़ है मेरा बराबर इसपर,
होने दो हमको यह आभास
मंजिलें चाहे दूर हो कितना,
अब तय करना है हर फ़ासला
जो भी हो, जैसा भी हो,
बस हो यह अपना फैसला
गर कुछ नहीं बचा तो क्या,
अब भी बचा है मेरा हौसला।

चित्र साभार : Nivedita Singh, Pexels.com via Canva Pro

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