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देवर-भाभी के बीच में अब कुछ मत बोलना…

जबसे अजय को पता चला है कि भाभी मां बनने वाली है, तब से वह अपनी भाभी की सेवा में लगा है, कभी फ्रूट्स ले आता है तो कभी जूस ले आएगा।

“अजय का यू वक्त बेवक्त अपनी भाभी के पास आ जाना तुझे अच्छा नहीं लगता है ना?” अम्माजी के मुंह से यह बात सुनकर आशा जी सकपका गईं।

जुन की तपती दोपहरी मे‌ अचानक किसी ने डोर बेल बजाई। आशा जी उस समय नींद में थी जब तक वह आंखें मसलते हुए बाहर आई तब तक तीन चार बार जल्दी-जल्दी डोर बेल बज चुकी थी आशा जी बड़बडाती हुई बाहर आईं, “अरे कौन है इतनी गर्मी में? जरा सब्र तो रखो, आ रही हूं मैं।”

दरवाजा खुलते ही अजय, “भाभी ओ भाभी! जल्दी बाहर आओ, कहां हो? अरे आइसक्रीम पिघल गई, जल्दी आओ।”

“अरे ओ भाभी के लाडले देवर! तुझे क्या धूप नहीं लगती? इतनी गर्मी में कहां से लाया आइसक्रीम?”

“ताई जी बाजार में है ना राजा कुल्फी वाला, बस उसी से लाया हूं। भाभी को पसंद है ना।”

“अरे वह भी अभी थक कर सोई है। ला मुझे दे, मैं दे आती हूं उसे कमरे में। ठीक है? और तू भी घर जा कर आराम कर। इतनी धूप में इधर-उधर मत भटक, लू लग जाएगी।”

“ठीक है ताई जी, यह लो आइसक्रीम। चलो बाय, मैं जा रहा हूं”, कहकर अजय भागता हुआ अपने घर चला गया।

आशा जी शर्मा निवास की बड़ी बहू है और अजय उनके देवर का बेटा है। आशा जी के परिवार में पति, सास, बेटा और बहू है और सबसे जरूरी बात, बहुरानी मां बनने वाली है। आशा जी के देवर देवरानी तीन मकान छोड़कर पड़ोस में ही रहते हैं।

जबसे अजय को पता चला है कि भाभी मां बनने वाली है, तब से वह हमेशा अपनी भाभी की सेवा में लगा रहता है। कभी फ्रूट्स ले आता है तो कभी जूस निकाल कर ले आएगा। कभी आइसक्रीम ले आएगा तो कभी घर में बनी हुई कोई स्वादिष्ट पकवान। रोज सुबह शाम बहु रानी को वॉक के लिए लेकर जाने की जिम्मेदारी भी उसी ने उठा रखी है।

अब तो भाभी को भी चस्का लग गया है। कुछ भी चाहिए, अपने लाडले देवर को बोल देती है और वह तुरंत हाजिर भी कर देता है। फिर चाहे रात के 11:00 बजे हो सुबह के 6:00 या दोपहर के 2:00 बजे हों, भाभी को जो भी, जब भी चाहिए हमेशा अजय को ही बोलती और अजय भी बिना ना नूकर किए भाभी का हर काम करने को तत्पर रहता था। शुरुआत में तो आशा जी को भी बहुत अच्छा लगता था लेकिन अजय का यू वक्त बेवक्त उनके घर आना न जाने क्यों अब आशा जी को खटकने लगा था। उस दिन भी यही हुआ।

रात के 11:30 बजे बहु रानी को चॉकलेट खाने का मन हुआ फ्रिज में देखा तो चॉकलेट तो खत्म हो चुकी थी। अजय से पूछा, तो अजय ने बताया कि उनकी फ्रिज में पड़ी है। पांच मिनट के अंदर अजय चॉकलेट लेकर हाजिर हो गया। चॉकलेट देखकर तो आशा जी के बेटे सोमेश का भी मन डगमगा गया तीनों ने मिलकर चॉकलेट इंजॉय किया। बारह बजे अजय अपने घर चला गया। आशा जी ने सब कुछ देख लिया था। अजय को इतना लेट अपने घर भी देख कर उन्हें बहुत बुरा लगा लेकिन इतनी लेट किसी से कुछ कह कर वह किसी का मन खराब नहीं करना चाहती थी इसीलिए चुप रह गई।

दूसरे दिन सुबह से ही आशा जी गुस्से में थीं। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर अचानक से उन्हें क्या हुआ जो इतना गुस्सा है। परंतु अम्मा जी की पारखी नजरें सब कुछ समझ चुकी थीं। दोपहर में जब आशा जी अम्माजी के कमरे में पानी रखने गई तो अम्माजी ने उन्हें अपने पास बिठा लिया।

“बहू क्या हुआ है? सुबह से देख रही हूँ तू परेशान है।”

“कुछ भी तो नहीं हुआ अम्माजी।”

“देख आशा, तुझे इस घर में ब्याह कर आए हुए 35 साल हो चुके और मैं तुझे बहुत अच्छे से जानती हूं। चाहे तू मुझे कुछ बताएं या ना बताएं मैं सब समझती हूं। अजय का यू वक्त बेवक्त अपनी भाभी के पास आ जाना तुझे अच्छा नहीं लगता है ना?” अम्माजी के मुंह से यह बात सुनकर आशा जी सकपका गई।

“नहीं नहीं अम्मा जी ऐसी कोई बात नहीं है। वह तो मैं बस ऐसे ही…शायद तबीयत ठीक नहीं है।”

“अब ज्यादा नखरे मत कर,  मैं सब जानती हूं, समझी ना।”

“सही कहा अम्माजी आपने। अजय का यूं वक्त बेवक्त घर आना, उस पर जब भी आता है, कुछ ना कुछ खाने को लेकर ही आता है। कोई देखेगा तो क्या सोचेगा कि हम बहू को खाने को नहीं देते जो हर चीज अजय ले आता है? किससे कहूं? कौन मेरी बात समझेगा?”

“आशा बात तो तेरी बिल्कुल ठीक है। कोई देखेगा तो जरूर उल्टा मतलब ही निकालेगा। आशा एक बात तो है, तेरी बहू तेरी तरह चटोरी है। तुझे याद है जब तुझे सोमेश होने वाला था, तब तू भी बहू की तरह चटपटा खाने के लिए कितना मचलती थी। और मैं हमेशा परेशान हो जाती थी कि ज्यादा तीखा चटपटा खाने की वजह से तेरा स्वास्थ्य खराब ना हो जाए।”

“हां अम्माजी ये तो बिल्कुल सही कहा आपने। मुझे चटपटा खाने का बहुत शौक होता था और याद है आपको कैसे में देवर जी को बोलकर वो रामलाल की चाट मंगवाती थी और देवर जी चाट के साथ-साथ फल भी ले आते थे और कहते थे कि चाट खानी है तो फल भी खाने पड़ेंगे।”

“और जब तुझे एसिडिटी हो जाती थी तो मुझसे ज्यादा वह परेशान हो जाता था। कभी कहता भाभी को सौंफ दो, कभी कहता भाभी को पुदीन हरा दो, कभी कहता अजवाइन दो। और फिर तुझे जबरदस्ती बरामदे में चक्कर कटवाता था, ताकि दिक्कत ना हो।”

“हां अम्मा जी देवर जी ने ऐसे समय में मेरा बहुत ख्याल रखा है। राजेश तो हमेशा अपनी नौकरी के चलते बाहर ही रहते थे। देवर जी हमेशा साए की तरह मेरे आगे पीछे घूमते रहते थे ताकि मुझे कोई तकलीफ ना हो और मैं भी हमेशा से यही कहती थी कि ऐसा देवर सबको मिले।” मुस्कुराते हुए आशा जी बोली।

“तो फिर आज जब तेरी बहू को तेरे जैसा देवर मिला है तो तो क्यों परेशान हो रही है? सिर्फ इसलिए कि लोग क्या कहेंगे?  आशा ये पड़ोसी, ये  समाज जब तक किसी के बारे में दो चार उल्टी-सीधी बातें ना कर ले इनको खाना हजम नहीं होता। इसलिए इन सब की चिंता छोड़ दे और जिस तरह तूने अपनी गर्भावस्था में अपने देवर से लाड लडाया था ना वैसे ही अपनी बहू को भी मौका दे।  छोटी छोटी बातें कब गलतफहमियां बन जाए और रिश्तो में दरार डाल दें पता नहीं चलता इसीलिए समय रहते संभल जा।  तुमने भी अपनी जिंदगी जी है उसे भी जीने दे। देवर-भाभी के बीच में अब मत बोलना,  ना ही कुछ फालतू सोचना।”

“आप सही कहती है अम्मा जी जब से घर में बहू बन कर आई हूं हमेशा आपने मुझे पूरा मान सम्मान दिया है, प्यार दिया है, तो फिर मैं क्यों अपनी बहू को इस सौगात से दूर रखूं? और यह तो देवर भाभी के बीच की बातें हैं वही जाने मैं क्यों बीच में पढूं? वैसे एक बात तो है अम्मा जी आपकी अनुभवी नजरों से कुछ नहीं छिप सकता।”

‘”अच्छा मस्का लगा रही है। चल जा चार बज गए हैं, तू भी थोड़ा आराम कर ले। दादी बनने वाली है, अब तु भी बुड्ढों की लिस्ट में आ जाएगी।”

“ठीक है अम्माजी।”  इतना कहकर आशा जी ने अम्माजी को गले लगा लिया।

चित्र साभार : Insatants from Getty Images Signature, via Canva Pro 

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