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मैं सिर्फ आपका दामाद नहीं बेटा भी हूँ सासू माँ…

आपका हक़ है मुझपे। जब मेरी इतनी चिंता कर सकती हैं,  मेरे लिये प्रार्थना कर सकती हैं, तो मुझे मेरी गलती पे डाँट क्यों नहीं सकतीं?

आपका हक़ है मुझपे। जब मेरी इतनी चिंता कर सकती हैं,  मेरे लिये प्रार्थना कर सकती हैं, तो मुझे मेरी गलती पे डाँट क्यों नहीं सकतीं?

सुबह सुबह मोबाइल फ़ोन की आवाज से उषा जी की नींद खुली देखा तो उनकी बेटी नित्या का फ़ोन था, ‘इतनी सुबह नित्या ने क्यों फ़ोन किया होगा?’ थोड़ा चिंतित हो फ़ोन उठाया उषा जी ने।

“हेलो बेटा! इतनी सुबह? क्या बात है सब ठीक तो है?”

अपनी माँ की आवाज़ सुन नित्या फ़ोन पे ही रोने लग गई, “देख बेटा, मेरा दिल बैठा जा रहा है। क्या बात हो गई? रो क्यों रही हो अब बताओ भी।”

“माँ, अजय की मीटिंग थी दिल्ली और लखनऊ में। कल रात की ट्रेन थी दिल्ली से लखनऊ की। शाम को ऑफिस के गेस्टहाउस से बात हुई कि रात को ट्रेन में बैठ कर फ़ोन करेंगे, लेकिन उसके बाद वो फ़ोन ही नहीं उठा रहे।” रोते-रोते नित्या ने सारी बात अपनी माँ को बताई।

“ऐसे कैसे फ़ोन नहीं उठा रहे? अजय जी के पापा को पता है ये?” अपने दामाद की ख़बर सुन उषा जी भी परेशान हो उठीं।

“नहीं माँ, आपको तो पता है ना पापा जी को अभी दो महीने पहले ही हार्ट अटैक आया था। मैं कोई भी टेंशन की बात नहीं कर सकती। ना उनसे और ना ही मम्मीजी से।”

“ओह! देख बेटा तू चिंता मत कर। मैं तेरे पापा को बोलती हूँ। कुछ सोचते हैं हम दोनों। तब तक तू अजय जी के किसी दोस्त या सहकर्मी का नंबर हो तो पता कर।”

उषा जी ने नित्या को समझा फ़ोन तो रख दिया लेकिन खुद अपने दामाद के चिंता में पसीने-पसीने होने लगीं, ‘नित्या के पापा की भी तबीयत दो दिन से ठीक नहीं, कैसे कहुँ उनसे भी?’

इसी उधेड़बुन में फंसी वो बार बार अजय को फ़ोन लगातीं, तो कभी भगवान के सामने अपने दामाद के सलामती की मन्नत मांगतीं। दस दस मिनट में नित्या को फ़ोन कर  पता करती रहती अजय की कोई ख़बर आयी कि नहीं। उधर नित्या का और इधर उषा जी का हाल बेहाल हो रहा था और अजय की कोई ख़बर ही नहीं लग रही थी।

‘आखिर फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे? क्या कारण हो सकता है? कहाँ चले गए अजय? कहीं फ़ोन चोरी तो नहीं हो गया या फिर कहीं गिर गया हो या फिर कहीं…नहीं, नहीं! ऐसा मैं सोच भी कैसे सकती हूँ? मेरे ठाकुर जी मेरे बेटी के सौभाग्य की रक्षा करें।’ खुद से बातें करती उषा जी बेचैन हो रही थीं।

जिस ट्रेन में अजय थे, उसे नौ बजे लखनऊ स्टेशन पहुंचना था। किसे भेजे स्टेशन? किसी को जानती भी नहीं। लखनऊ में ये सोच सोच उषा जी का दिल बैठा जा रहा था। हाथ जोड़ बहुत दिल से अपने ठाकुर जी को याद किया उषा जी ने, ‘हे प्रभु! अगर जीवन में एक भी अच्छा काम किया हो तो उसका पुण्य मेरे दामाद को दे देना। उनकी रक्षा करना।’

तब फ़ोन बजा। देखा तो अजय का नंबर था, “हेलो मम्मी! इतने सारे मिस्ड कॉल? सब ठीक तो है? बहुत थकावट थी और सिर में भी बहुत दर्द हो रहा था। ट्रेन में बैठते ही दवा खा मैं सो गया था। फ़ोन भी साइलेंट मोड पे था देखा ही नहीं मैंने, क्या बात हो गई?”

अजय की आवाज़ सुन तसल्ली भी हुई और अब तक की चिंता माँ की डाँट में बदल गई, “आप मुझसे पूछ रहे हैं क्या बात हो गई? ये क्या तरीका है अजय जी? आप फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे थे?  अगर सोना था तो कॉल कर देते नित्या को या मैसेज ही डाल देते। रात भर वो परेशान रही और इधर मेरी जान निकली जा रही थी। हद से ज्यादा लापरवाही है ये।”

अपने रौ में बोलती उषा जी अचानक से चुप हो गई, ‘हे भगवान! दामाद को कैसे डाँट दिया मैंने कहीं बुरा मान बैठे तो?’

उषा जी वैसे तो बहुत स्नेह रखती थी अपने दामाद से, लेकिन संकोच भी करती थीं। कभी कोई बात करनी या पूछनी हो तो नित्या से पुछवाती थी। जब कभी अजय उनके घर आते अपने घुटनों के दर्द भूल घंटो रसोई में खड़ी रह उनके पसंद के व्यंजन बनातीं। गर्मियों में अचार हो या सर्दियों में बनने वाले लड्डू, समय से अजय के लिये भिजवा देती।

अजय जानते थे कि उनको इस उम्र में परेशानी होती होगी, लेकिन अपनी सासूमाँ का स्नेह देख चुप रह जाते। आज अपनी संकोची सासूमाँ को यूं अधिकार जताते देख अजय भी ख़ुश था, “बोलिये ना मम्मी आप चुप क्यों हो गईं?”

“माफ़ कीजिये अजय जी। वो मैं पता नहीं क्या क्या बोल गई आपको। बहुत चिंता हो रही थी, तो बस बिना सोचे समझे बोल गई।”

शर्मिंदा हो उषा जी ने कहा तो अजय हँसने लगा, “आज पहली बार तो आपकी डाँट खाने को मिली है मम्मी। अब गलती तो हुई है, तो डाँट तो मिलेगी ना। आप माफ़ी क्यों मांग रही हैं? आपका हक़ है मुझपे। जब मेरी इतनी चिंता कर सकती हैं,  मेरे लिये प्रार्थना कर सकती हैं, तो मुझे मेरी गलती पे डाँट क्यों नहीं सकतीं? आप जैसे नित्या की माँ हैं, वैसे मेरी भी तो माँ हैं।”

अपने दामाद की बात सुन ऑंखें भर आयीं उषा जी की, “सच कहा बेटा, पिछले जन्म में जरूर मैंने मोती दान किये होंगे जो आप इस जन्म में मुझे मेरे बेटे के रूप में मिले। कौन कहता है दामाद बेटा नहीं बन सकता। जब एक बेटी बहु बन सकती है, तो एक दामाद भी बेटा बन सकता है। लेकिन वादा करें आप अजय जी, आगे से ऐसी गलती दुबारा नहीं होगी।”

“वादा रहा माँ। दुबारा आपसे डाँट नहीं खानी मुझे”, हॅसते हुए अजय ने कहा तो फ़ोन पे ही उषा जी भी खिलखिला उठीं।

चित्र साभार : Bijoy Varghese/Ranta Images from Getty Images Signature, via Canva Pro

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