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अरे! बहु तुम्हे क्या पता सास क्या होती है। वो तो तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो मुझ जैसी सीधी सास मिली वरना तो लोग बहु के...
अरे! बहु तुम्हे क्या पता सास क्या होती है। वो तो तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो मुझ जैसी सीधी सास मिली वरना तो लोग बहु के…
रमा की सास सावित्री जी जब भी किसी से बात करती। हर बात में खुद को महान जरूर बताती, “हम तो बहु को बेटी की तरह रखते हैं। मुझे तो सास बनना ही नहीं आता। हमारे तो दामाद भी कहते हैं कि माँजी आप बहुत सीधी सास है।”
रमा को हर रोज़ ये बातें ना चाहते हुए भी सुननी पड़ती। घर के एक काम मे उनका सहयोग नहीं होता। लेकिन अगर कभी भूल चूक से कोई मदद कर दे तो वो पूरे महीने का काम हो जाता। फोन पे, हर आने जाने वाले से वो अपने काम की तारीफ करती।
रमा को ये सब सुनते सुनते एक साल हो गए थे। बहुत बार अपने पति अशोक से ये बात उसने कही लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। अशोक सुन के भी अनसुना कर देते। लेकिन जब रमा प्रेग्नेंट हुई तो उसकी तबियत ठीक ना रहने पर जब भी सावित्री जी को काम करना पड़ता। वो रमा को दिन भर सुनाती रहती।
“अरे! बहु तुम्हे क्या पता सास क्या होती है। वो तो तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो मुझ जैसी सीधी सास मिली वरना तो लोग बहु के गर्भवती होते ही उसके मायके भेज देते हैं।” काम से ज्यादा फोन पर ही लगी रहती।
जैसे तैसे नौ महीने बीते और रमा ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। घर आयी तो सावित्री जी ने सख्त चेतावनी दी कि अपने और अपनी बेटी के काम तुम खुद करना। 30 दिनों बाद ही रसोई छूनी है।
सारे रस्मों रिवाज हुए जैसे तैसे एक महीने बीते। कभी उसको नाश्ता मिलता तो दोपहर का खाना नहीं। कुल मिला के मुश्किल से दो वक्त का खाना मिलता और पतिदेव बिचारे माँ नाम की पट्टी आंखों पर बांध के घूमते रहते।
एक दिन सावित्री जी अपनी बहन से बात कर रही थी। तभी रमा ने सुना, “अरे! क्या बताऊँ जीजी सुबह से काम कर के थक गयी। आज तो फ्रिज से भिंडी निकाली, फिर उसको धोई, कपड़े से पोछ के सुखाया, फिर पूरी भिंडी को काट के उसके बाद उसकी सब्जी बनायी। फिर चावल को चुनना पड़ा कि कही कुछ कीड़े या पत्थर ना हो, धुला कुकर में डाला, बंद किया चावल बनाया। मतलब कि सावित्री जी ने पूरे प्रॉसेस को अपने काम मे गिन लिया बजाय ये कहने के कि चावल,दाल, सब्जी, रोटी पूरा खाना ही बनाया है।”
अब रमा पहले की तरह काम नहीं कर पाती थी। तो भी उसको हर बात में ताने मिलते, “हमने भी बच्चे बड़े किये हैं। पूरे घर के काम समय से खत्म कर के।”
एक दिन सावित्री की बहन उनसे मिलने आयी। रमा ने उनको चाय नाश्ता कराया। पूरे घर का काम किया। अगले दिन सुबह रमा की आंख देर से खुली, तब तक उसकी मौसी सास चाय बना चुकी थीं। सावित्री जी मुँह फुलाये बैठी थीं क्योंकि उनकी बहन को काम करना पड़ा।
रमा ने बिना बोले चुपचाप घर के काम खत्म किये। लेकिन दोपहर का खाना जैसे ही देने गयी उनकी बातें शुरू हो गयीं, “कोई घर आये मेहमान के साथ ऐसा व्यवहार करता है क्या भला?”
मौसीजी जी भी आग में घी डालने का काम कर रही थीं, “अरे! जाने दे क्या हुआ।”
तब तक सावित्री जी ने कहा, “नहीं दीदी! ये सीधी सास मिलने का फायदा उठाया जाता हैं। कोई टेढ़ी सास मिलती तो पता चलता।”
“पता भी है जीजी ने कितने काम किये। दूध निकाला, फिर चाय का बर्तन चढ़ाया, गैस जलाया। जीजी माँ ने संस्कार सिखाये होते तो ये ना होता।”
“बस कीजिये मम्मीजी! भगवान बचाये आप जैसी सीधी सास से। अगर आप की तरह मैं भी कामों की गिनती करूँ तो शायद आपको गिनती भूल जाएगी। माफ कीजियेगा। मैं कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन अगर आप ने मेरी माँ औऱ संस्कार पर उंगली उठायी है तो सुनिये…
ये उनके संस्कार ही है जो मैं आप के अत्याचारों पर भी चुप रहती हूं। ये सोच के की आप बड़ी हैं लेकिन आप मेरी चुप्पी का गलत फायदा उठती रही अब तक। अगर आप सच मे इतनी ही सीधी थी तो अपनी ही सास ननद से रिश्ता क्यों नहीं कायम रख पायीं? आपकी इकलौती ननद आपके दरवाजे पर नहीं आती। घर से दस कदम दूर आपकी सास रहती हैं। कभी आप दादीजी से मिलने नहीं जाती। और अपने बच्चों को भी गलत कहानियां सुना के नफरत भर दी है उनके दिलों में अपने ही परिवार के प्रति।
अगर आपकी तरह मैं भी करुँ तो कैसा लगेगा आपको? जब आपकी पोती ही आप के खिलाफ आपको भला बुरा कहे। खुद को बेचारी और हर बात में सीधा कहना बंद कीजिए।
और एक आखिरी बात, अब मैं सिर्फ बहु या पत्नी नही माँ भी हुँ। तो अपनी बेटी का ख्याल रख के ही कोई काम कर पाऊंगी। क्योंकि आप तो सीधी सास हैं सिर्फ अपनी जुबान से। आपको पोती और बहु के तकलीफ से तो कोई मतलब है नहीं। लेकिन मैं सीधी बहु नहीं हूँ ना ही मुझे आप जैसा सीधा बनना है।” कह के रमा वहाँ से चली गयी।
आज सावित्री जी को जवाब समझ नहीं आ रहा था।
दोस्तों दूसरों को उपदेश देने में जितना अच्छा लगता है खुद उसका पालन करना उतना ही कठिन होता है।
मूल चित्र : Shudipto Sarker via Unsplash
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